राजस्थान में डायलिसिस के मरीज इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों में दर-दर भटक रहे हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों में करोड़ों की डायलिसिस मशीनें धूल खा रही हैं. पिछली गहलोत सरकार ने आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले, 50 करोड़ रुपये खर्च करके 182 डायलिसिस मशीनें खरीदीं और इन्हें राज्य भर के अस्पतालों में भेज दिया. मगर आज तक इन मशीनों का उपयोग शुरू नहीं हो सका है, जिससे मरीजों को भारी परेशानी हो रही है.
दौसा के अस्पताल में डायलिसिस के लिए आए मरीज ऋषभ को हर दूसरे दिन डायलिसिस कराना पड़ता है. अस्पताल के स्टाफ सोनू शर्मा ने बताया कि दो मशीनें खराब हैं और मरीजों को जयपुर रेफर करना पड़ता है. वेटिंग इतनी है कि मरीजों को हफ्ते भर बाद की तारीख दी जाती है.
सरकारी अस्पताल में करोड़ों की मशीने बंद पड़ी
लालसोट जिला अस्पताल में हाल और भी बदतर है. यहां दस महीने से नई मशीनें स्टोर में पड़ी धूल खा रही हैं. अस्पताल अधीक्षक यमदन लाल ने बताया कि मशीनें लगाने के लिए प्रशिक्षित स्टाफ नहीं है और उच्चाधिकारियों को बार-बार लिखने पर भी जवाब नहीं मिला.
75 किलोमीटर दूर बांदीकुई के अस्पताल में दिसंबर 2023 में आईं दो मशीनें भी अधूरी पड़ी हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी सुनील कुमार सोनी ने बताया कि मशीनों के जरूरी पार्ट नहीं आए हैं. अधिकारी कहते हैं कि जब पूरे राज्य में इंस्टालेशन होगा, तब यहां भी हो जाएगा.
मरीज प्राइवेट अस्पतालों में भटकने को मजबूर
राजस्थान के करीब 70 सरकारी अस्पतालों में ऐसी ही हालत है. तीन साल की वारंटी में से एक साल बीत चुका है. दूसरी ओर, मरीजों को निजी अस्पतालों में डायलिसिस के लिए 4200 रुपये प्रति सत्र खर्च करने पड़ रहे हैं. सरकारी भ्रष्टाचार और संसाधनों के दुरुपयोग का दोषी कौन है, यह सवाल आज भी खड़ा है.