वंदे मातरम् पर संसद में बहस ऐसे वक्त हो रही है, जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव का पूरा माहौल बन चुका है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो पहले से ही चुनावी तैयारियों में जुटी हुई है, बीजेपी तो हर चुनाव ही जंग की तरह लड़ती है, लिहाजा वैसे ही लड़ रही है.
ममता बनर्जी के लिए वंदे मातरम् भी बड़ा चैलेंज साबित हो सकता है. वैसे तो राज्यसभा के बुलेटिन में सांसदों को 'जय हिंद' और 'वंदे मातरम्' का इस्तेमाल नहीं करने की हिदायत पर ममता बनर्जी का गुस्सा सामने आ चुका है, 'क्यों नहीं बोलेंगे? जय हिंद और वंदे मातरम हमारा राष्ट्रीय गीत है... ये हमारी आजादी का नारा है... जय हिंद हमारा नेताजी का नारा है... इससे जो टकराएगा चूर चूर हो जाएगा.'
लेकिन, ये बयान बस एक पक्ष है. ममता बनर्जी का ये स्टैंड हमेशा नहीं रहने वाला है. ये रिएक्शन सामने आने की भी खास वजह है. वंदे मातरम् के साथ जय हिंद भी यहां मुद्दा बना है. ममता बनर्जी के लिए दोनों स्लोगन अलग अलग मायने रखते हैं. असल बात तो ये है कि ममता बनर्जी जय हिंद के कारण ही वंदे मातरम् के रोक पर भी नाराजगी जाहिर कर रही हैं. अगर साथ में जय हिंद नहीं होता, और चुनाव का मौका नहीं होता, तो ममता बनर्जी के मुंह से कुछ और ही सुनने को मिला होता.
बीजेपी वंदे मातरम् पर जिस हिसाब से आगे बढ़ रही है, और ममता बनर्जी के खिलाफ चीजें जिस तरह से बदल रही हैं, चुनौतियां बढ़ने वाली हैं. 7 नवंबर, 2025 को वंदे मातरम् गीत को 150 साल पूरे होने पर भारतीय जनता पार्टी ने देश भर में कई कार्यक्रम किए थे. कोलकाता में बंकिम चंद्र के नाम पर बनी लाइब्रेरी के रखरखाव का मामला भी तूल पकड़ रहा है, जहां से पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को बाहर से ही लौटना पड़ा था.
घर का बुरा हाल, बंकिम चंद्र के वंशज भी नाराज
5, प्रताप चटर्जी स्ट्रीट. कोलकाता में ये बंकिम चंद्र चटर्जी के घर का पता है. घर के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा है - ‘साहित्य सम्राट स्मृति लाइब्रेरी’, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संचालित.
वंदे मातरम् के रचयिता बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपने जीवन के छह-सात साल इसी घर में गुजारे थे. और, अप्रैल, 1894 में यहीं उनका निधन हुआ था. तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने से पहले लेफ्ट सरकार ने इस घर का अधिग्रहण किया था, और 2005 में यहां पुनर्निर्माण का काम हुआ. 2006 में घर को लाइब्रेरी में तब्दील कर दिया गया.
वंदे मातरम् की रचना के 150 साल पूरे होने के मौके पर शुभेंदु अधिकारी ने यहां कार्यक्रम रखा था, लेकिन लाइब्रेरी का गेट नहीं खुलने के कारण उनको बैरंग ही लौट जाना पड़ा. बीजेपी ने आरोप लगाया कि जान बूझकर लाइब्रेरी का गेट नहीं खोला गया.
बंगाल बीजेपी अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने हाल ही प्रेस कांफ्रेंस करके लाइब्रेरी की बदहाली का मुद्दा उठाया था, और दावा किया कि बंकिम चंद्र का घर उपेक्षित हालत में है. शमिक भट्टाचार्य ने लाइब्रेरी बने घर के रखरखाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है, और मांग की है कि केंद्र सरकार इसका नियंत्रण अपने हाथ में ले ले.
बंकिम चंद्र चटर्जी की पांचवीं पीढ़ी के दो लोग सजल चटर्जी और सुमित्रा चटर्जी ने भी बीजेपी का सपोर्ट किया है. बंकिम चंद्र चटर्जी के वंशज का आरोप है कि पश्चिम बंगाल की टीएमसी सरकार को बंकिम चंद्र की स्मृति के रखरखाव से कोई मतलब ही नहीं है.
एक अखबार से बातचीत में सजल चटर्जी का कहना है, जिस राज्य में हम रहते हैं, वहां की सरकार न हमें जानती है और न ही हमें कभी याद किया जाता है... अगर बंकिम चंद्र के परिवार में कोई जिंदा है तो कौन है? कहां रहता है? सरकार ने कभी ये जानने की कोशिश नहीं की... ममता बनर्जी ने भी कभी हमें याद नहीं किया.
तृणमूल ने लाइब्रेरी की उपेक्षा का ठीकरा सीपीएम पर फोड़ा है. टीएमसी नेताओं का दावा है कि लाइब्रेरी की प्रबंध समिति शुरू से ही सीपीएम की रही है. सीपीएम सासंदों के फंड से ही लाइब्रेरी बनाई भी गई थी. टीएमसी का कहना है कि लेफ्ट की लापरवाही के कारण पश्चिम बंगाल सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं.
पश्चिम बंगाल सरकार के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु मीडिया से बात करते वक्त बीजेपी पर बरस पड़ते हैं, बीजेपी बांटने की राजनीति करती है. हिंदू और मुसलमान, ब्राह्मण और दलितों के बीच विभाजन पैदा करती है - अब वो बंगाल की दो महान विभूतियों रवींद्रनाथ टैगोर और बंकिम चंद्र चटर्जी के बीच दरार पैदा करने की कोशिश कर रही है.
ममता बनर्जी के खिलाफ बंगाल में मोर्चेबंदी
ममता बनर्जी बीजेपी के नाम पर बंगाल में वोटर को बिल्कुल वैसे ही डराती रही हैं, जैसे बिहार में बीजेपी और नीतीश कुमार जंगलराज के नाम पर हर चुनाव में वोट मांगते चले आ रहे हैं. लेकिन, ममता बनर्जी खुद बुरी तरह घिरती जा रही हैं. टीएमसी ने अपने विधायक हुमायूं कबीर को चुनाव से ठीक पहले सस्पेंड कर दिया है.
हुमायूं कबीर अपनी अलग पार्टी बनाने जा रहे हैं, और ये भी दावा किया है कि वो AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी के साथ चुनावी गठबंधन करने जा रहे हैं. असदुद्दीन ओवैसी पिछले साल बंगाल चुनाव में बुरी तरह फ्लॉप साबित हुए थे, लेकिन बिहार में कामयाबी दोहराकर AIMIM नेता ने ये संकेत तो दे ही दिया है कि ममता बनर्जी के लिए वो कड़ी चुनौती बन सकते हैं - अगर ऐसी चीजों से ममता कमजोर पड़ती हैं, तो जाहिर है फायदा तो बीजेपी को ही मिलेगा.
टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर को बाबरी मस्जिद की नींव रखने के ऐलान के कारण सस्पेंड किया गया है. लेकिन, हुमायूं कबीर अपनी जिद पर कायम हैं. 6 दिसंबर को हुमायूं कबीर ने मुर्शिदाबाद के बेलडांगा में बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर हजारों की भीड़ के बीच नई मस्जिद की नींव रखी है.
हुमायूं कबीर अपनी मुहिम को 'मुसलमानों के लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई' बताया है. हुमायूं कबीर ने ऐलान किया है कि 22 दिसंबर को अपनी नई पार्टी बनाएंगे, और पश्चिम बंगाल की की 135 सीटों पर उम्मीदवार भी उतारेंगे. हुमायूं कबीर ने असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का भी दावा किया है.
ममता बनर्जी की सियासी उलझन
शीतकालीन सत्र के पहले संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू की तरफ से 30 नवंबर को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के साथ ही लोकसभा और राज्यसभा की बिजनेस एडवाइजरी कमेटी की बैठक में भी वंदे मातरम पर चर्चा के प्रस्ताव पर सहमति बनी थी.'वंदे मातरम' बंकिम चंद्र चटर्जी की रचना है, जिसे 1875 में इसे संस्कृतनिष्ठ बांग्ला में लिखा गया था, और 1950 में भारत गणराज्य के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया गया था. ये गीत बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंदमठ का हिस्सा है, जो पहली बार 1882 में प्रकाशित हुआ था. वंदे मातरम की रचना के 150 साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने विशेष सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया था.
ममता बनर्जी का जो स्टैंड सामने आया है, उसकी खास वजह भी है. बीजेपी नेता अमित मालवीय ने वंदे मातरम पर ममता बनर्जी के स्टैंड को राजनीतिक नौटंकी बताया है. अमित मालवीय का कहना है, ममता बनर्जी अपने मुस्लिम वोट बैंक को नाराज करने के डर से 'वंदे मातरम' या 'भारत माता की जय' कहने की हिम्मत नहीं करतीं... अब कैमरे के सामने गुस्सा जाहिर कर रही हैं.
वंदे मातरम् का मुद्दा ममता बनर्जी के लिए के लिए आगे कुआं और पीछे खाई जैसा मामला है. चाहे वो सपोर्ट करने का फैसला करें, या फिर विरोध का. दोनों ही परिस्थतियों में उनके लिए बराबर मुश्किल है. अगर वो विरोध करती हैं, तो बंकिम चंद्र चटर्जी की वजह से बंगाली समुदाय खिलाफ जाएगा, और खुल कर सपोर्ट करती हैं, तो टीएमसी का मुस्लिम वोटर - और बीजेपी को ममता बनर्जी के लिए इसी आपदा में अपने लिए अवसर नजर आ रहा है.