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मिर्चपुर और गोहाना कांड की याद दिलाकर मोदी हरियाणा में दलितों को अपना बना सकेंगे? । Opinion

मिर्चपुर और गोहाना कांड के नाम पर भारतीय जनता पार्टी की कोशिश दलित उत्पीड़न की कहानी फिर से याद कराने की है. बीजेपी दलितों को यह बताना चाहती है कि कांग्रेस राज में किस तरह दलितों का उत्पीड़न हो रहा था . पर क्या दलित बीजेपी की बात मानने को तैयार हैं?

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पीएम मोदी ने हरियाणा के पलवल में रैली को संबोधित किया (फाइल फोटो)
पीएम मोदी ने हरियाणा के पलवल में रैली को संबोधित किया (फाइल फोटो)

हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार का आज अंतिम दिन है. पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस जहां किसानों की नाराजगी, महिला पहलवानों के उत्पीड़न, अग्निवीर का विरोध और संविधान बचाओ के नाम पर जनता को पटाने में लगी रही वहीं बीजेपी ने हरियाणा में 14 साल पहले मिर्चपुर और 18 साल पहले गोहाना में हुए दलित उत्पीड़न को मुद्दा बनाने का प्रयास किया है. अब देखना यह है कि क्या हरियाणा के दलित मिर्चपुर उत्पीड़न के नाम पर बीजेपी को वोट देते हैं. हालांकि बीजेपी ने इसके अतिरिक्त खर्ची पर्ची, परिवारवाद और जमीन कब्जा आदि को भी उठाती रही है पर चर्चा सबसे ज्यादा मिर्चपुर की ही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद अपनी हिसार और पलवल की रैलियों में मिर्चपुर कांड का जिक्र किया जिससे स्पष्ट होता है कि बीजेपी इस मुद्दे को लेकर कितना गंभीर है.

गोहाना और मिर्चपुर कांड का जिक्र करते हुए मोदी ने हिसार में कहा था कि कांग्रेस के राज में दलित बेटियों के साथ अन्याय हुआ, कांग्रेस चुप रही. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि कांग्रेस ने दलितों पर जो अत्याचार किया है उसे दलित समाज कभी भी भूल नहीं सकता. मोदी से पहले गृहमंत्री अमित शाह, पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और मुख्यमंत्री नायब सैनी भी अपने भाषणों में मिर्चपुर का जिक्र इस बार के चुनावों में खूब किया है.

1-दलित उत्पीड़न का जिक्र करके उनके जख्म उभारने की कोशिश 

चुनावों से पहले दलितों का दिल जीतने की कोशिश में जुटी भाजपा यह साबित करने में लगी हुई है कि कांग्रेस की सरकारों के दौरान उनके साथ कितना अन्याय होता था. बीजेपी याद कराती है कि हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में ही 2005 में गोहाना और 2010 में मिर्चपुर कांड हुए. 2005 में सोनीपत के गोहाना में अंतरजातीय हिंसा के एक मामले में दलितों के 50 घर जला दिए गए थे, जब गांव के एक दलित पर ऊंची जाति के व्यक्ति की हत्या में शामिल होने का संदेह था. 2010 में मिर्चपुर में दलितों के एक दर्जन से अधिक घर जला दिए गए थे. घटना के दौरान एक बच्ची और 70-वर्षीय व्यक्ति की जलकर मौत हो गई थी.

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हालांकि आम दलितों पर यह मुद्दा कितना असर कर रहा है यह जानने के लिए आज तक डिजिटल ने हरियाणा के कुछ दलित लोगों से बात की. रोहतक में एक ऑटोमोबाइल की दुकान पर मैकेनिक का काम करने वाले पहले तो राजनीति पर कुछ भी बोलने से संकोच करते हैं. पर कुरेदने पर फट पड़ते हैं. नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि हमने 2014 और 2019 में मोदी को वोट दिया, क्या मिला हमें ?अपना दुखड़ा रोते हुए कहते हैं कि मेरा बेटा जिमनास्ट है पर उसके जाट कोच ने जानबूझकर उसे स्टेट लेवल पर ले जाने पर अडंगा लगा दिया. मैंने कुरेदने के लिए पूछा कि अब तो जाटों की सरकार बन रही है, क्या भेदभाव नहीं होगा? इसका उत्तर मिलता है कि कुछ भी हो इस बार राहुल गांधी के नाम पर वोट देना है. राहुल गांधी अब बहुत सही बोल रहे हैं . मतलब साफ है कि बहुत हद तक मिर्चपुर मुद्दा काम नहीं कर रहा है.  स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले हमलों को उछालने से मतदाता प्रभावित नहीं होंगे क्योंकि हिंसा की यादें केवल पुरानी पीढ़ी के ज़ेहन में है, जबकि नई पीढ़ी को हमलों के बारे में बहुत कम जानकारी है.

2-हरियाणा में दलित वोट की राजनीति में बीजेपी कहां

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हरियाणा में 2014 में बीजेपी को जिस तरह का दलितों का समर्थन मिला वो बाद में घटता गया है. 2019 के विधानसभा चुनावों में भाजपा 2014 के कुल आरक्षित सीटों के 9 सीटों से घटकर पांच पर आ गई. जबकि कांग्रेस ने सात एससी सीटें और जेजेपी ने चार सीटें जीतीं. 2024 के लोकसभा चुनाव में 20 प्रतिशत से ज़्यादा एससी आबादी वाले 47 विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा की बढ़त 2019 के 44 से घटकर 18 रह गई, जबकि कांग्रेस की बढ़त 2019 में सिर्फ दो सीटों से बढ़कर 25 हो गई. मतलब साफ है कि बीजेपी की लोकप्रियता दलितों के बीच लगातार घट रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में 17 आरक्षित विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा की बढ़त घटकर चार रह गई. कांग्रेस ने अपनी बढ़त पिछली बार के दो से बढ़ाकर 11 कर ली.

एक बात और ये है कि इस बार के चुनावों में इनेलो और जेजेपी ने बहुजन समाज पार्टी और आजाद समाज पार्टी से गठबंधन किया हुआ है. बीएसपी की ओर यूपी की पूर्व सीएम मायावती और उनके भतीजे आकाश आनंद ने हरियाणा में काफी आक्रामक रैलियां की हैं. पर हरियाणा में लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच आर पार की होने से इन दलों को भाव नहीं मिल रहा है. दूसरी ओर कांग्रेस में भी एक चर्चित दलित चेहरा के रूप में कुमार सैलजा मौजूद हैं. भले ही हुड्डा और सैलजा में आपसी खींचतान है दलितों की सुनने वाला तो कोई है. बीजेपी कितना भी कहे कि कांग्रेस में सैलजा और तंवर जैसे दलित नेताओं का अपमान होता रहा है पर वहां दलितों को उम्मीद दिखती है. कांग्रेस सीएम का नाम ओपन न करने की रणनीति भी काम कर रही है. दलितों के एक वर्ग को उम्मीद है कि हो सकता है कुमारी सैलजा को राहुल गांधी हरियाणा का सीएम बना दें. 

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3-सरकार ने कितना किया अनुसूचित जातियों को लुभाने का प्रयास 

हरियाणा में दलित समाज का विभाजन और राजनीतिक रुझान काफी हद तक यूपी और बिहार जैसे अन्य हिंदी भाषी राज्यों की तरह है. यहां का दलित दो समूहों में विभाजित हैं जिन्हें आम तौर पर डीएससी और अन्य के रूप में बांटा जाता है. डीएससी  में वाल्मीकि, बाजीगर, सांसी, देहास, धानक और सपेरा जैसी 36 श्रेणियां शामिल हैं.ये राज्य की दलित आबादी का 11 प्रतिशत हैं और यह समझा जाता है कि ये जातियां भाजपा का समर्थन करती हैं. दलितों का अन्य समूह को सशक्त समूह या ब्लॉक बी के नाम से लोग जानते हैं. इस वर्ग का नेतृत्व जाटव करते हैं जो दलित आबादी का 9.7 प्रतिशत हैं. ये आमतौर पर कांग्रेस का समर्थन करते हैं.

लोकसभा चुनावों में मिली करारी हार के बाद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने दलित और पिछड़े समुदायों को अपने पक्ष में करने की कोशिश शुरू की. मुख्यमंत्री ने सामाजिक न्याय विभाग से पिछले साल से अनुसूचित जाति के छात्रों को लंबित पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति राशि जारी करने को कहा.भाजपा वंचित अनुसूचित जाति (डीएससी) का समर्थन हासिल करने के लिए ही दलितों को दिए गए 17 टिकटों में से नौ डीएससी को दिए गए.पिछड़ों में क्रीमी लेयर मानदंड को 6 लाख से बढ़ाकर 8 लाख किया  गया. डीएससी समूह को संतुष्ट करने के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए एससी के उप-वर्गीकरण पर हरियाणा एससी आयोग की सिफारिश को स्वीकार करने की भी घोषणा की गई.जबकि इस तरह के ही वर्गीकरण के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू नहीं करने का केंद्र ने पूरे देश के एससी समुदाय के सांसदों से वादा किया गया है.

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