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51 करोड़ का जुर्माना घटाकर कर दिया ₹4 हजार... IAS नागार्जुन बी गौड़ा ने अपनी सफाई में क्या कहा?

IAS Dr Nagarjun B Gowda: वाकई में अजब मध्यप्रदेश में गजब कहानियां देखने को मिलती हैं. हाल ही में एक मामला चर्चा में आया है. जिसमें सड़क बनाने वाली कंपनी को नोटिस तो 51 करोड़ रुपये का दिया, लेकिन बाद में जुर्माना सिर्फ 4 हजार रुपये का लगाया.

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IAS बी. नागार्जुन गौड़ा अब खंडवा जिला पंचायत सीईओ हैं.(Photo:ITG)
IAS बी. नागार्जुन गौड़ा अब खंडवा जिला पंचायत सीईओ हैं.(Photo:ITG)

मध्य प्रदेश के हरदा में अवैध खनन का एक मामला इन दिनों चर्चा में है, जिसमें एक सड़क निर्माण कंपनी को 51.67 करोड़ रुपये का जुर्माना नोटिस जारी किया गया, लेकिन बाद में यह राशि मात्र 4 हजार रुपये कर दी गई. यह मामला करीब दो साल पुराना है.

दरअसल, हरदा जिले में पदस्थ 2023 में तत्कालीन अपर कलेक्टर प्रवीण फूलपगारे ने सड़क निर्माण कंपनी पाथ इंडिया को बिना अनुमति 3.11 लाख घन मीटर मुरम मिट्टी की खुदाई पर 51.67 करोड़ रुपये के जुर्माने का नोटिस जारी किया था. नोटिस में 25.83 करोड़ रुपये जुर्माना और इतनी ही राशि पर्यावरण क्षति के रूप में शामिल थी. कुछ समय बाद उनका तबादला हो गया और आईएएस डॉ. बी. नागार्जुन गौड़ा हरदा के अपर कलेक्टर बने.

कैसे 51 करोड़ का जुर्माना ₹4,032 में बदला?

नए अपर कलेक्टर ने इस प्रकरण की सुनवाई की, जिसमें कंपनी ने नोटिस के जवाब में बताया कि उसने अनुमति प्राप्त खसरे पर खुदाई की थी. इसके बाद कंपनी के स्वीकार किए गए 2688 घन मीटर अवैध खनन के लिए 4032 रुपये का जुर्माना लगाने का आदेश जारी किया गया. इस राशि में अवैध उत्खनन और पर्यावरण क्षतिपूर्ति के लिए 2016-2016 रुपये शामिल हैं.

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RTI कार्यकर्ता ने उठाए सवाल

RTI कार्यकर्ता आनंद जाट ने इस मामले में आरटीआई से जानकारी निकाली और आदेश पर सवाल खड़े किए. उन्होंने अधिकारियों पर रुपये के लेन-देन के आरोप लगाए हैं.

RTI कार्यकर्ता आनंद जाट ने लगाए रिश्वत के आरोप.

उधर, तत्कालीन एडीएम (वर्तमान जिला पंचायत सीईओ, खंडवा) डॉ. गौड़ा ने aajtak से बातचीत में मामला स्पष्ट किया और आरोपों से इनकार किया. उन्होंने कहा कि बतौर न्यायाधीश दस्तावेजी साक्ष्य तथा अधिवक्ता के तर्क के आधार पर आदेश पारित किया गया है.

आपत्ति हो तो अपील करें: हरदा कलेक्टर

इस संबंध में हरदा के कलेक्टर सिद्धार्थ जैन का कहना है कि तत्कालीन अधिकारी ने बतौर मजिस्ट्रेट जो आदेश जारी किया है, उस पर किसी को आपत्ति हो तो अपील की जा सकती है. उन्होंने स्पष्ट किया कि नोटिस के बाद संबंधित पक्ष की सुनवाई और तथ्यों के आधार पर आदेश पारित किया गया.

NGT और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा मामला

इस मामले में एक और तथ्य सामने आया कि ग्रामीणों की सुनवाई न होने पर एक ग्रामीण ने एनजीटी में प्रकरण दायर किया था. जिस पर एनजीटी ने करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये का जुर्माना संबंधित पाथ कंपनी पर लगाया और अधिकारियों से रुपये लेन-देन के आरोप पर ईडी से जांच कराने का निर्देश दिया था.

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इस आदेश के खिलाफ संबंधित कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जहां मामला लंबित है.एक और बात सामने आई कि शुरुआत में इस प्रकरण को विविध मद (B 121) में दर्ज किया गया, जबकि नियमानुसार इसे खनिज मद (A 67) में दर्ज होना चाहिए था.

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