राजधानी दिल्ली में आयोजित साहित्य आजतक 2025 के तीसरे और अंतिम दिन, आध्यात्मिक गुरु साध्वी भगवती सरस्वती ने "आओ बदलें अपना जीवन...मन, आत्मा और मोक्ष की बातें" सत्र में अपने प्रेरणादायक विचार साझा किए. लॉस एंजेलिस, कैलिफ़ोर्निया में जन्मीं और भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर हिमालय में जीवन समर्पित करने वाली साध्वी जी ने जीवन के असली उद्देश्य, आंतरिक शांति, आत्मिक शक्ति और विकास पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि कोई व्यक्ति अपने मन को शांति कैसे दे सकता है और अपने भीतर छिपी वास्तविक ताकत को कैसे पहचान सकता है. इसके अलावा, उन्होंने आधुनिक समय के गंभीर मुद्दों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डिप्रेशन पर भी आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य से बात की
भारत ने सिखाया जीवन का असली मतलब
अध्यात्म से जुड़ने के अपने सफर पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “अगर आपने मुझे केवल बाहर से देखा होगा तो सोचा होगा कि मेरे पास सब कुछ था, पर मैं भीतर से खुश नहीं थी. क्योंकि मेरे पास अध्यात्म नहीं था, इसलिए शांति भी नहीं थी. शांति किसी बाहरी चीज से नहीं मिलती. जब मैं 25 साल की उम्र में भारत आई, तो मुझे शाकाहार और संस्कारों की जो पवित्रता भारत में मिली, वह दुनिया में कहीं नहीं मिली. गंगा के तट पर मुझे मां गंगा के दर्शन हुए. अब मैं भारत में नहीं रहती. भारत मुझमें रहता है.”
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हमें अपनी जड़ों से जुड़ने की जरूरत
डिप्रेशन पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “हमें समझना होगा कि तनाव कहां से आता है. धर्म हमें सिखाता है कि हम शरीर नहीं, बल्कि आत्मा हैं. लेकिन स्कूलों में बच्चों को बताया जाता है कि उनका रिपोर्ट कार्ड ही उनकी असलियत है. एक परीक्षा में असफल होना जीवन में असफल होना नहीं होता. हर बच्चे को उसके माता-पिता यह समझाएं कि वे एक शक्ति हैं, एक फेलियर उन्हें कमजोर नहीं बना सकता. उन्होंने सलाह दी कि हमें अपनी जड़ों से जुड़ने की आवश्यकता है.
साध्वी भगवती सरस्वती ने युवाओं में आध्यात्म की ओर रुझान के लिए "भजन वाइबिंग" को एक माध्यम बताया, पर साथ ही उन्होंने एक गंभीर चेतावनी भी दी. उन्होंने कहा कि "हमें किसी डिवाइस का गुलाम नहीं बनना चाहिए. असली आजादी क्या है, इसे समझना ज़रूरी है." साध्वी जी ने गैजेट्स की बढ़ती गुलामी पर चिंता जताते हुए 'मोबाइल फास्टिंग' पर जोर दिया. उन्होंने सरल उपाय सुझाए कि इस लत से छुटकारा पाने के लिए हम छोटी चीज़ों को फॉलो कर सकते हैं, जैसे कि खाना खाते समय मोबाइल का इस्तेमाल न करना.
उन्होंने स्पष्ट किया कि परिवार के साथ बैठकर भोजन करना हमारी संस्कृति है, जबकि गैजेट्स के साथ खाना नहीं. उन्होंने अंत में यह भी रेखांकित किया कि मोबाइल और अन्य गैजेट्स ने हमारी एकाग्रता पर गहरा नकारात्मक असर डाला है, जिसे ठीक करना वर्तमान समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है
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डिप्रेशन की सबसे बड़ी दवा परिवार का साथ
उन्होंने आगे कहा “डिप्रेशन में दवाई नहीं, परिवार का साथ सबसे बड़ा इलाज है. माता-पिता भी बच्चों को समय दें. आजकल के बच्चे तकनीक को अपना दोस्त मान रहे हैं. यह बेहद गंभीर बात है. माता-पिता तकनीक को अपने बच्चों का दोस्त न बनने दें, खुद उनके दोस्त बनें.”
योग और साधना से मिलेगी शांति
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “समय को बदला नहीं जा सकता, तकनीक को खत्म नहीं किया जा सकता. लेकिन हम अपनी सीमाएं खुद तय कर सकते हैं. एआई कभी भी हमारे भीतर शांति नहीं ला सकता. हमारे अंदर की आत्मा ही हमारी असली शांति है.” उन्होंने बताया कि योग और साधना आत्मशुद्धि का मार्ग है. “योग केवल आसन नहीं, जीवन जीने का तरीका है. योग हमें बताता है कि हम विशेष हैं. बाहरी सुंदरता से ज़्यादा महत्वपूर्ण आंतरिक सुंदरता है. योग करने के लिए यम और नियम अनिवार्य हैं और यम का पहला नियम अहिंसा है, और अहिंसा का मतलब है सत्य , और सत्य से बड़ा कुछ नहीं.
साध्वी भगवती ने आगे कहा कि इंसान को बाहरी आवाज नहीं, अपने भीतर की आवाज सुननी चाहिए. जैसे हम स्नान करके शरीर को शुद्ध करते हैं, वैसे ही योग और साधना आत्मा को पवित्र करते है.” उन्होंने आगे कहा, “जीवन में प्रगति आवश्यक है और हर व्यक्ति की यात्रा अलग होती है. भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं कि कुछ पाने के लिए किसी का त्याग करना जरूरी नहीं, बल्कि राग-द्वेष का त्याग ही सच्चा मोक्ष है. विचार बदलना ही कर्म बदलना है.