scorecardresearch
 

'राम मेरी हर रचना में, मैं बजरंग में रहता हूं...', साहित्य आजतक में अभि मुंडे ने अपनी वायरल कविता से बांधा समा

साहित्य आजतक 2025 कार्यक्रम में कवि अभि मुंडे ने अपनी वायरल कविता 'राम' प्रस्तुत की, जिसने दर्शकों का दिल जीत लिया. अभि मुंडे ने कविता के माध्यम से राम के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया.

Advertisement
X
साहित्य आजतक में अभि मुंडे
साहित्य आजतक में अभि मुंडे

Sahitya Aajtak 2025: दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में 'साहित्य आजतक' का कार्यक्रम जारी है. साहित्य के इस महोत्सव में कवियों, लेखकों, सिनेमा जगत के कलाकारों और उनके कद्रदानों का जमावड़ा लगा हुआ है. इस साहित्यिक जमावड़े में 'साइको शायर' नाम से मशहूर अभि मुंडे भी पहुंचे जहां उन्होंने अपनी कविताओं से लोगों का खूब मनोरंजन किया.

अभि मुंडे ने सेशन की शुरुआत में अपनी कविता सुनाते हुए कहा-

मैं कवि हूं, मेरी कविताओं में मायने होते हैं
मेरी कविताओं में आईने होते हैं,
जब जज्बात खोलकर दिखाने होते हैं तो
मेरी कविताओं में मयखाने होते हैं.

मैं जो देखता हूं, वो मैं लिखता हूं
जो मैं लिखता हूं, वो देखता हूं,
ये चांद है, मेरी कविताओं में दाग भी होते हैं
ठंडा करते हैं कलेजा कभी, तो मेरे शब्द कभी आग भी बोते हैं.

सत्र के दौरान अभि मुंडे ने अपनी वायरल कविता 'राम' को लिखने की कहानी भी शेयर की. उन्होंने कहा, 'मेरे दादाजी ने जिस राम के बारे में मुझे बताया और अब जिस राम के बारे में हमें बताया जा रहा है, वो मुझे अलग-अलग लगे, मैं कंफ्यूज हो गया. मुझमें इतनी अकल नहीं तो मैं दादाजी के पास ही चला गया. दादाजी ने बताया कि राम शीतल है, शील हैं, सीधे विचारों के हैं रामजी.'

Advertisement

अभि मुंडे ने दर्शकों को अपनी वायरल कविता भी सुनाई जो इस तरह है-

हाथ काटकर रख दूंगा, ये नाम समझ आ जाए तो
कितनी दिक्कत होगी, पता है, राम समझ आ जाए तो.

राम-राम तो कह लोगे पर राम सा दुख भी सहना होगा
पहली चुनौती ये होगी कि मर्यादा में रहना होगा.

मर्यादा में रहना मतलब कुछ खास नहीं कर जाना है,
त्याग को गले लगाना है अहंकार जलाना है.

अपने रामलला के खातिर इतना न कर पाओगे
शबरी का जूठा खाओगे तो पुरुषोत्तम कहलाओगे.

काम क्रोध के भीतर रहकर तुमको शीतल बनना होगा
बुद्ध जिसकी छांव में बैठे, वैसा पीपल बनना होगा.

बनना होगा ये सबकुछ और वो भी शून्य में रहकर प्यारे
तब ही तुमको पता चलेगा कितने अद्भुत थे राम हमारे.

ये राजनीति का दायां-बायां जितना मर्जी खेलो तुम
चेतावनी को लेकिन मेरी अपने जहन में डालो तुम.

निजी स्वार्थ के खातिर गर कोई राम नाम को गाता हो
तो खबरदार गर जुर्रत की.. 
और मेरे राम को बांटा तो

भारत भू का कवि हूं मैं..तभी निडर हो कहता हूं,

राम है मेरी हर रचना में, मै बजरंग में रहता हूं

भारत की नीव है कविताएं और सत्य हमारी बातों में 
तभी कलम हमारी तीखी और साहित्य हमारे हाथों में!

Advertisement

तो सोच समझ कर राम कहो तुम ये बस आतिश का नारा नहीं 
जब तक राम हृदय में नहीं.. तुम ने राम पुकारा नहीं

राम- कृष्ण की प्रतिभा पर पहले भी खड़े सवाल हुए
ये लंका और ये कुरुक्षेत्र..
यूं ही नहीं थे लाल हुए

अरे प्रसन्न हंसना भी है और पल पल रोना भी है राम
सब कुछ पाना भी है और सब पा कर खोना भी है राम

ब्रम्हा जी के कुल से होकर जो जंगल में सोए हो 
जो अपनी जीत का हर्ष छोड़ रावण की मौत पे रोए हो

शिव जी जिनकी सेवा खातिर मारूत रूप में आ जाए
शेषनाग खुद लक्ष्मण बनकर जिनके रक्षक हो जाए

और तुम लोभ क्रोध अहंकार छल कपट
सीने से लगा कर सो जाओगे?
तो कैसे भक्त बनोगे उनके?
कैसे राम समझ पाओगे?

अघोर क्या है पता नहीं और शिव जी का वरदान चाहिए
ब्रम्हचर्य का इल्म नहीं.. इन्हे भक्त स्वरूप हनुमान चाहिए
भगवा क्या है क्या ही पता लहराना सब को होता है 
पर भगवा क्या है वो जाने 
जो भगवा ओढ़ के सोता है

राम से मिलना..
राम से मिलना..
राम से मिलना है ना तुमको..?
निश्चित अयोध्या जाना होगा!
पर उस से पहले भीतर जा संग अपने राम को लाना होगा.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement