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Sahitya Aajtak 2024: गुटबाजी करने वाले लोगों ने साहित्य का नुकसान किया है, आजतक के मंच पर बोले लेखक

मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में साहित्य का मेला लगा हुआ है. साहित्य आजतक 2024 के तीसरे दिन साहित्य में गुटबाजी के विषय पर विस्तार से चर्चा हुई. इस सेशन में लेखक गणेश पांडे, ओम निश्चल और प्रेम जन्मेज्य  ने हिस्सा लिया.

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Ganesh Pandey, Om Nishchal, Prem Janmejay
Ganesh Pandey, Om Nishchal, Prem Janmejay

साहित्य आजतक का मंच एक बार फिर सज गया है. 22 नवंबर से 24 नवंबर तक यानी पूरे तीन दिनों के लिए दिल्ली के मेजर ध्यानचऺद नेशनल स्टेडियम में साहित्य का मेला लगा हुआ है. साहित्य आजतक 2024(Sahitya Aajtak 2024) के तीसरे दिन ' हिंदी साहित्य में गुटबाजी' विषय पर विस्तार से चर्चा हुई. इस सेशन में लेखक गणेश पांडे, ओम निश्चल और प्रेम जन्मेज्य  ने हिस्सा लिया.  इस दौरान तीनों लेखकों ने साहित्य का एक लोकतांत्रिक मंच प्रदान करने के लिए आजतक की सराहना की.

गुटबाजी करने वालों ने साहित्य का किया नुकसान

साहित्य में गुटबाजी की बात पर गणेश पांडे ने ऐसा करने वालों को आड़े हाथों लिया. उन्होंने कहा कई लोग बेमतलब में हवा खड़ा करते हैं. इस मंच पर नहीं जाना चाहिए. उस मंच पर नहीं जाना चाहिए. अगर कोई चला गया तो उनकी आलोचना करते हैं. मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या उन लोगों के मंचों पर लोकतंत्र है है. फासिस्ट लोग हैं. सिर्फ अपने गुट के लोगों को मंच देते हैं. अपने मंचों पर प्रतिपक्ष के लोगों को आने ही नहीं देते हैं. साहित्य का ऐसे लोगों ने नुकसान किया है. 

गणोश पांडे कहते हैं कि आजकल साहित्य जगत में कई गुट. ये गुट प्रांत, जाति, विचारधारा के आधार पर बने हुए हैं. संपादकों के भी अपने गुट है. इन गुटों को तोड़ने का एक ही तरीका संवाद हो सकता है. ये जो लोग, साहित्य के मंचों पर लोकतंत्र नहीं पहुंचने देना चाहते हैं. वह यह भी नहीं चाहते हैं कि साहित्य आपतक पहुंचे.

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साहित्य के मंच पर सबको विचार रखने का अधिकार

गुटबाजी के विषय को आगे बढ़ाते हुए ओम निश्चल कहते हैं कि जबसे मनुष्य ने जन्म लिया तबसे ही किसी ना किसी को धक्का देकर ही आगे बढा है. विचारों ओर मतों का देश है. यहां सबको अपनी बात कहने का अधिकार है. इसलिए हर मंच पर सभी तरह के विचारों के लोगों को अपनी बात कहने का अधिकार होना चाहिए. लेकिन साहित्य में दूसरे के विचारों को जगह नहीं देने वालेलोग ऐसा नहीं चाहते हैं.. साहित्य में गुटबाजी भलवे रहे, लेकिन यहां सबका विचार और मतांतर भी शामिल होना चहिए..

ओम निश्चल आगे कहते हैं कि आज कौन किसके साथ जा रहा है, किस मंच पर जा रहा है. यह देखा जाता है. अगर आप उसके पसंद की मंच पर चले गए, तो उन्हें दिक्कत होने लगते हैं. इसी गुटबाजी के चलते साहित्य का नुकसान हो रहा है. खुद को साहित्य भूषण कहलाना पसंद करेंगे. दूसरे को इफ्को से भी पुरस्कार मिल जाए तो सवाल उठाएंगे.

लोग चाहते हैं कि हम पहले से तय कर दें किस ओर हैं

प्रेम जन्मेजय कहते हैं कि कुछ लोग चाहते हैं कि हम पहले तय करके उन्हें बता दें कि किस ओर हैं. उन्हें अपनी प्रतिबद्धता बता दें. अगर आप अपनी प्रतिबद्धता किसी दल से जोड़ना चाहते हैं. ये सब चीजें पहले भी थी. आप व्यंग्य की विधा को ही देख लिजिए. साहित्य के मंचों पर इसके साथ अछूत की तरह व्यवहार किया जाता है. इस विधा में आजतक एक ही पुरस्कार मिला है. ये क्यों हुआ है. गुटबाजी के चलते ही हुआ है. 

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साहित्य नहीं खुद की उन्नति के लिए काम करने लगें हैं लोग

इसी बात को आगे बढ़ाते हुए गणेश पांडे कहते हैं कि पहले लोग साहित्य की उन्नति के लिए काम करते थे. आज अपनी उन्नति के लिए काम कर रहे हैं. इसलिए गुटों में शामिल होते हैं. उन्हें लगता है कि इससे उन्हें फायदा हो जाएगा. ऐसे लोगों ने साहित्य का एक गंदा बाजार खड़ा कर दिया है.

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