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'हरियाणा की प्रेम कहानी' और 'धोबी का कुत्ता', जब इन दिग्गजों की कविताओं पर छूटे हंसी के फव्वारे

Sahitya AajTak 2024 : साहित्य आजतक के दूसरा दिन हास्य कवि सम्मेलन में लोगों ने जमकर ठहाके लगाए. देश के दिग्गज कवियों और व्यंग्यकारों की जब महफिल जमी तो महारथियों ने अपने एक से बढ़कर एक व्यंग्य और हास्य से लोगों खूब गुदगुदाया.

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हास्य कवि सम्मेलन
हास्य कवि सम्मेलन

Sahitya AajTak New Delhi:  राजधानी दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में साहित्य आजतक 2024 के दूसरे दिन शनिवार को हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया. इसमें देश के बड़े विद्वान, कवि, व्यंग्यकार, लेखक और साहित्यकारों ने अपने शब्दों के व्यंग्य बाण में हास्य लपेटकर लोगों को ठहाके लगाते रहने पर मजबूर कर दिया. 

साहित्य आजतक के हास्य कवि सम्मेलन का मंच अशोक चक्रधर, सुरेंद्र शर्मा, अरुण जेमिनी, सर्वेश अस्थाना, डॉ. पॉपुलर मूर्ति से सुशोभित हुआ. इन हस्तियों ने अपने व्यंग्य और हास्य रस से लोगों को सराबोर कर दिया. हास्य कवि सम्मेलन की शुरुआत  लेखक, कवि, व्यंग्यकार सर्वेश अस्थाना ने की. 

शुरुआत ही हंसी के फव्वारे से हुई
सर्वेश अस्थाना ने छूटते ही एक चुटकुला सुनाया और सबसे पहले मंच संचालक को ही अपना निशाना बनाया. उन्होंने कहा कि एक बार बंदर को जंगल का राजा बना दिया गया. जैसे सईद भाई को हमारे कार्यक्रम का संचालक. सर्वेश अस्थाना इनदिनों देश और समाज में व्याप्त कुछ बुराईयों पर चोट करती हुई हास्य-व्यंग्य विधा की कविता सुनाई. 

माना ये फैमिली प्लानिंग का जमाना है, पर अपना इससे विरोध  बहुत पुराना है
अपने ऊपर तो ऊपर वाले की दुआ है, अभी हाल ही में घर में एक और बेटा हुआ है

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अब कुल मिलाकर हमारे बेटे हैं चार- सदाचार, शिष्टाचार, अत्याचार और भ्रष्टाचार
सदाचार रो रहा है, शिष्टाचार सो रहा है, अत्याचार बलवान है, भ्रष्टाचार महान है

हमने एक बात नहीं बताई, हमारी कई एक बेटियां भी हैं भाई, सच्चाई, लड़ाई, मंहगाई और जगहंसाई.
सच्चाई जड़ है, लड़ाई गड़बड़ है, महंगाई है मुंहलगी है चढ़ेगी, जगहंसाई दिल्लगी है बढ़ेगी

ईमान, शराफत, प्रेम और कर्तव्य हमारे इन बच्चों के मामा हैं, लेकिन आजकल सबके सब सुदामा हैं.
 अब अपना भी एक छोटा सा परिचय पेश है, बंदे का नाम लोकतांत्रिक देश है... 

सर्वेश अस्थाना

हरियाणा की प्रेम कहानी
लेखक, कवि, व्यंग्यकार  अरुण जेमिनी ने भी समा बांधे रखा. उन्होंने अपने कविता के माध्यम से हरियाणा की प्रेम कहानी की एक बानगी भर बताई. उन्होंने कहा हरियाणा तो मस्त प्रदेश है. मैं वहीं का रहने वाला हूं.  हरियाणा वालों से उम्मीद मत रखो, क्योंकि हमारे यहां प्रेम तो विवाह के बाद होता है.अगर पहले हुआ तो पेड़ पर लटके मिलेंगे. 

प्यार का भोलापन
अरुण जेमिनी ने हरियाणा में प्यार के भोलेपन को भी बखूबी बताया. चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि हमारे यहां प्रेम में भोलापन बहुत है. एक बार एक प्रेमी ने प्रेमिका से कहा, अगर तू मेरी नहीं हुई तो मैं किसी की नहीं होने दूंगा. इस पर प्रेमिका ने कहा कि अगर मैं तेरी हो जाऊंगी तो तू सब की होने देगा. उन्होंने एक और वाकया बताया कि एक की पत्नी मर गई और चित्रकार से कहा कि मेरी पत्नी की चित्र बना. चित्रकार ने कहा कि ऐसा बनाऊंगा कि चित्र बोल उठेगी. शख्स ने कहा कि तब भाई रहने दो.

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अरुण ने हरियाणा की एक प्रेम कहानी को अपने शब्दों में कविता बनाकर पेश किया-

एक लड़की पंत की कविताओं सी कोमल, पद्माकर की छंदों सी इतराती
बिहारी के दोहों सी कटीली, छबीली.. रसखान की सवैयों सी रसीली
जायसी के पद्मावत का प्रेम ज्ञान पिये, प्रसाद की कामायणी का सौंदर्य बोध लिए
 उस पर दिनकर सी कविताओं का तेज और विद्यापति की राधा को अपने में सहेज..
 
डीटीसी की बस में चढ़ी... अचानक ब्रेक लगी और लड़की एक लड़के की गोद में जाकर गिरी
लड़के को इतना आया स्वाद, बोला ड्राइवर साहब धन्यवाद, लड़की बोली फालतू मत चिल्लाओ
उधर को सरको, तेरे ऊपर गिरी मैं और तूने धन्यवाद बोला ड्राइवर को....

अरुण जेमिनी

अरुण जेमिनी ने अपने हरियाणवी प्रेम कहानी को कविता के माध्यम से आगे बढ़ाते हुए उसमें श्रृंगार, उपमा और रस सभी का समिश्रण बखूबी एक व्यंग्य के तौर पर दिखाया. इनकी कुछ पंक्तियां - दोनों के दिन थे खाने-पीने के दोनों ही थे हरियाणे के.. ये जो तेरी झोर सी आंख हैं न जी करे से इसमें डूब जाऊं... तेरी आंख देखकर पता चला डूबना भी एक कला से..

आगे उन्होंने हरियाणवी प्रेम कहानी में जो उपमा दी, वो कमाल का था. उनकी हर एक शब्द पर लोग खुद को ठहाके लगाने से नहीं रोक सके. बीच-बीच में वो इसकी पृष्ठभूमि और भावार्थ भी समझाते जा रहे थे. 

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हुक्के की चिलम में घिरे जलते अंगारे सी होठ..
बोले तो विस्फोट, ना बोले तो ...

लड़की बोली इन बातों में तो कोई भी खो सके... इतनी मीठी मत बोल
कवियों के प्रेमी प्रेमिका बैठते होंगे सागर किनारे रेत में, हमारे तो हरियाणा के थे बैठे हुए थे गन्ने के खेत में....


ऐ हीरोकट रिक्शा वाले, जरा ठंडी सड़क पर होले...
कवि, लेखक, काका हाथरसी अवार्ड से सम्मानित  डॉ. पॉपुलर मेरठी ने भी अपनी हास्य कविताओं से लोगों को काफी लोटपोट किया.  मंच पर आते ही उन्होंने कविता शुरू कर दी -  शेर अच्छे हैं, फन अच्छा है, कमाल अच्छा है. देखना अब ये कहेंगे ख्याल अच्छा है. दोस्तों तुम्हें सुनाऊंगा शेर नया. तुम्हारे लिये बचाकर जो रखा है, माल अच्छा है. 

जुबैदा, करिश्मा, करीमा, नसीमा... चलो आज सबको दिखा दूं सनीमा. 
मेरी उम्र क्या है ये क्यों पूछती हो, कहीं इश्क का जोश भी होता है धीमा 
 
रात की सर्द हवाएं मुझे तड़पाती है, चांद भी मुझे किसी भूत का सिर लगता है. 
मुझसे शादी जो करोगी तो इनायत होगी, रात के वक्त मुझे कमरे में डर लगता है. 

ऐ हीरोकट रिक्शा वाले, जरा ठंडी सड़क पर होले, ओले-ओले
मुद्दत से है एक तमन्ना मेरा यार दरीचा खोले, ओले-ओले...
 दिल मुझको मजनू का दिया है दोनों जहां के मालिक ने
जब भी कोई लड़की देखूं मेरा दिल दिवाना बोले ओले-ओले

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हम जीएंगे न मोहब्बत का असर होने तक, दिन कट जाती है दीवार की दर होने तक..

अशोक चक्रधर ने खूब ली देवेंद्र शर्मा की चुटकी
 पद्मश्री, लेखक और कवि  अशोक चक्रधर ने जब मंच पर माइक संभाला तो तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा. उन्होंने कहा कि दोस्तों आजतक ने अपना ये कारंवा इस मुकाम पर ला दिया है कि आप सबके लिए ये एक जरूरत बन गया है और यहां आकर एक सबसे अच्छी बात क्या होती है कि लोग सच बोलते हैं. मन में जो होता है वो कहते हैं. उन्होंने सुरेंद्र शर्मा की चुटकी ली और कहा ये मुझसे 5-6 साल बड़े हैं. ये बात मैं सबको बता देना चाहता हूं. 1963 में पहली बार लाल किले के एक कवि सम्मेलन में आया था. मैं अपील करना चाहता हूं कि ये शपथ लें कि भविष्य में मुझ पर टिप्पणी न करें, क्योंकि मैं इनसे छोटा हूं. 

तुम भी जल थे, हम भी जल थे, इतने घुले-मिले थे कि एक दूसरे से जलते न थे
न तुम खल थे, न हम खल थे, इतने खुले-खिले थे कि एक दूसरे को खलते न थे.

अचानक तुम हमसे जलने लगे, तो हम तुम्हें खलने लगे
तुम जल से भाप हो गए और तुम से आप हो गए

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ये कविता फिट हो गई, लेकिन इन पर नहीं लिखी. 

मेरे ये शब्द, शब्द नहीं हैं, डूबते को सहारे के तिनके हैं
मेरे भी कहां हैं शब्द, पता नहीं किन-किन के हैं..
आपके हैं, इनके हैं, इनके हैं... जिनके हैं, लो मैं तुम्हें दे रहां हूं गिन गिन के,
हो सको तो हो जाना इनके, इनके...मेरे शब्द नहीं हैं, डूबते को सहारे के तिनके...

 अगर तुम्हारे पीछे कोई कुत्ता भूंके... तो क्या तुम रह सकते हो बिना चौंके
अगर रह सकते हो, तो या तो तुम बहरे हो, या फिर बहुत गहरे हो...

धोबी का कुत्ता
इसके बाद अशोक चक्रधर वफादारी को लेकर छोटा सा वाकया बताया और फिर इसे एक व्यंग्य रस की कविता के शब्दों में पिरो दिया. उन्होंने कहा कि कुत्ते सबसे वफादार होता है. वैसे तो वफादारियां बहुत तरह की होती हैं. इसी पर मैं कुछ बताता हूं.

घर पर धोबी अपने कुत्ते को अपने गधे के सामने दुत्कारता है. 
और घाट पर अपने कपड़ों के साथ फटकारता है...
सुनार के कुत्ते के गले में सोने की माला है,
 कुम्हार ने कुल्हड़ में अपने कुत्ते के लिए दूध डाला है..
लोहार के कुत्ते के पास सींकी हुई बोटी है, 
हलवाई के कुत्ते के पास मलाईदार रोटी है...
जोलाहे के कुत्ते के पास खेलने के लिए ढेर है कपास का
मोची के कुत्ते के पास जूता है एडिडास का... इन सबके पास
जुगाड़ है ऐशो आराम और ठाठ का... एक निरीह धोबी का कुत्ता है
न घर का न घाट का.

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अशोक चक्रधर और देवेंद्र शर्मा

'AI में थोड़ा-थोड़ा लग जाओ' 
अशोक चक्रधर ने अपनी कविता पाठ के बीच थोड़े बहुत शब्द AI के बारे में भी कही. उन्होंने कहा कि आजकल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बात हो रही है. दोस्तों इसे दुश्मन मत समझो. मैं भी इसमें लगा हुआ हूं. आप भी थोड़ा-थोड़ा इसे समझो और लग जाओ. इसके लिए जो भी जितना अच्छा प्रोम्प्ट तैयार करेगा, वो उतना अच्छा इसका इस्तेमाल कर पाएगा.

अंत में उन्होंने आमिर खान और  रानी मुखर्जी के एक गाने की पैरोडी सुनाई- 

ऐ क्या बोलती तू, ए क्या मैं बोलूं, सुन-सुना हाथी का अंडा ला
क्या कहा हाथी का अंडा ला, अरे तोड़ेंगे, फोड़ेंगे, तलेंगे ऑमलेट बनाएंगे और क्या..

कलाकार प्यार से देश जीतते हैं चुनाव से नहीं
पद्मश्री, लेखक, व्यंग्यकार और कवि सुरेंद्र शर्मा  मैं राजनीति पर ज्यादा नहीं कहता हूं, कहना भी नहीं चाहिए. अभी चुनाव हुए, मुझे किसी ने कहा चुनाव लड़ लो. मैंने कहा मैं नहीं लड़ता. बोले क्यों नहीं लड़ते, मैंने कहा जब देश की जनता को हमनें प्यार से जीत लिया हो, तो हमें लड़ककर जीतने की क्या जरूरत. हम कलाकार लोग तो प्यार से जीतते हैं, हमें लड़कर जीतने की क्या जरूरत. एक बात बता दूं, मैं यहां सबसे कम उम्र का व्यक्ति हूं. ये हंसने की बात नहीं है, मैं बची हुई उम्र की बात करता हूं, खर्च हुई उम्र की बात नहीं करता.

एक दर्शक को टोकते हुए उन्होंने कहा कि आप रिकॉर्डिंग बंद करो. आज रिकॉर्ड करके कल अपनी बीवी को सुनाएगा और हंसाएगा. मेरे भरोसे ही ब्याह किया था क्या. 

'कैसे मैं ईश्वर से बड़ा हूं'
मैं ईश्वर से बड़ा हूं. क्योंकि वो मेरे अंदर रहते हैं, जो मेरे अंदर रहता है वो मुझसे बड़ा कैसे हो सकता है. अगर वो बड़े हैं तो मुझे अपने अंदर रख लें. मुझसे किसी ने पूछा कि तराजू के एक पलड़े में राम हो और एक पर आप, तो किसका पलड़ा भारी होगा. मैंने कहा मेरा होगा. क्योंकि एक पर सिर्फ राम हैं और दूसरे पर मैं हूं और मेरे अंदर भी राम हैं.

नेताओं पर लोग लिखते हैं. उन पर लिखकर क्या होगा. उनसे तो जिंदगी भर मिलना ही नहीं है. लिखना है तो पत्नी के ऊपर लिखो. मर्द का बच्चा है तो लिखकर दिखाओ, जो रोज छाती पर बैठी हो, उस पर लिखो तो जरा. तब तो मर्दानगी है. 

सूर्य तुम बड़े महान हो, तुम्हारी महानता को मैं मानता हूं.
तुम्हारी ताकत को मैं स्वीकारता हूं, क्योंकि तुम सुखा देते हो
नदियां, नाले, पोखर, झरने, तालाब...
पर तुम्हारी कमजोरी पर मुझे बहुत तरस आता है, क्योंकि तुम
नहीं सुखा पाते किसी मजदूर के पसीने की बूंदें...


कविता पाठ के बीच में देवेंद्र शर्मा ने कहना शुरू किया कि जिंदगी में किसी गरीब का मजाक नहीं उड़ाना, ईश्वर ने जिसे जो दिया है महत्वपूर्ण हैं. एक बात याद रखना अमीरों की अकड़ तब तक रहती है, जब तक गरीबी उसे निहारती रहती है. जिस दिन निहारना बंद कर देगी तो अकड़ भी खत्म हो जाएगी. फिर उन्होंने एक कविता पेश की. 

नदी ने अकड़ते हुए कुएं से कहा, तेरी क्या औकात है तुझे पता है. 
कहां नदी और कहां कुआं, कुआं हाथ जोड़कर बोला...
 बहन जी भटकाव और ठहराव में कुछ तो फर्क होता ही है.
फर्क इतना ही है कि तुम प्यासे के पास जाती हो, प्यासा मेरे पास आता है.
तुम ऊपर से नीचे की ओर जाती हो, इसलिए मीठे से खारी हो जाती हो 
मैं नीचे से ऊपर की ओर जाता हूं, इसलिए मीठा का मीठा रह जाता हूं. 

बच्चों पर पढ़ाई का हद से ज्यादा न हो दबाव 
देवेंद्र शर्मा ने हंसाते-हंसाते अंत में बड़ी बात कह दी. उन्होंने हरियाणा के पिता-पुत्र के बीच की गुदगुदाने वाले चुटकुलों के माध्यम से आज किशोरों और बच्चों के बीच बढ़ रहे आत्महत्या के मामले पर चुटीला प्रहार किया. उन्होंने कहा कि हरियाणा में एक पिता ने बेटे से कहा कि फेल हो जाए तो मुझे बापू मत कहना. दूसरे दिन जब पिता ने पूछा कि रिजल्ट क्या रहा, तो बेटे ने कहा छोड़ न राम प्रसाद.. इस बात पर जैसे ही ठहाके लगे, वैसे ही उन्होंने आज बच्चों के ऊपर पढ़ाई का दबाव और बढ़ते सुसाइड केस को लेकर सतर्क हो जाने को कहा. उन्होंने कहा कि परीक्षा कुंभ का मेला नहीं है जो 12 साल में आएगा. एक बार फेल हो गए, तो दूसरे साल फिर बच्चे परीक्षा में बैठ जाएंगे.

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