दिल्ली के मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित शब्द-सुरों के महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2023' के दूसरे दिन भी साहित्य से लेकर सिनेमा और लेखक से लेकर राजनीति के दिग्गजों ने हिस्सा लिया. सत्र- 'कविता पाठ- शब्द बुनते हैं ख्वाब' में कवि तजेंद्र सिंह लूथरा, ओम निश्चल, यतीश कुमार और कवियत्री सुमन केशरी ने अपनी रचनाओं से दर्शकों का समां बांधा.
इस दौरान तजिंदर सिंह लूथरा ने कहा कि शब्दों को निश्चित ही ख्वाबों को बुनना होता है, लेकिन ख्वाबों को बुनने के लिए जो सबसे बड़ी शक्ति है वो हमारी कल्पना की शक्ति है. हमारी कल्पना की शक्ति ही हमारे सपनों और ख्वाबों को बुनती है. प्रकृति ने अगर कोई सबसे बड़ा उपहार दिया है वह हमारी कल्पना शक्ति है. हमारी कल्पना शक्ति के कारण ही हम यहां तक पहुंचे हैं.
खुली आंखों के ख्वाब सबसे ज्यादा महत्वपूर्णः तजिंदर सिंह
तजिंदर सिंह लूथरा ने आगे कहा कि कल्पना शक्ति से हम दो तरह के ख्वाब बुनते हैं. एक वो ख्वाब जो हम नींद में देखते हैं. इसका उतना महत्व नहीं रहता क्योंकि सुबह जगते ही हम इसे भूल चुके होतें हैं. दूसरा- जो ख्वाब हम खुली आंखों से देख सकते हैं. खुली आंखों के ख्वाब सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. क्योंकि ये सपने हमारे पुरुषार्थ को चैलेंज करते हैं कि आप इसे अपने साहस और आशावाद से इस सपने को पूरा कीजिए.
इस दौरान उन्होंने रात तुम्हारे साथ, बस एक बात, कठपुतली अपनी ही समेत अपनी कई रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया.
वहीं, कवि यतीश कुमार ने भी 'छर-छर अक्षर', तुम तक, बस इतना हो, सिकुड़ना, छिले तनों से छिलकता है पानी और 'बनना चाहता हूं' जैसी रचनाओं से दर्शकों का समां बांधा.
सत्र के दौरान कवियत्री सुमन केशरी ने कहा कि मैं चाहती हूं कि कोई ऐसा सपना हो, जहां घायल मुस्कुराए और जीवन पाए. जहां सचमुच में पेड़-पौधे, खेत-खलिहान हो, आसमान खुला हो. घर एक कैद की तरह ना होकर बहुत विस्तार पा ले, जिसमें दुनिया मौजूद हो.
इस दौरान उन्होंने 'यह कौन सा देश है', 'उसके मन में उतरना', 'लड़कियां' और 'द्रौपदी' जैसी रचनाओं को भी सुनाया.
वहीं, कवि ओम निश्चल ने भी 'रात जब श्याह अंधेरे में खुली होती है' समेत कई राजनीति से केंद्रित गजल और कविता से दर्शकों का समां बांधा.