साहित्य के सबसे बड़े महाकुंभ 'साहित्य आजतक 2019' के पहले दिन नुक्कड़ नाटक पर चर्चा की गई. इसमें रंगमंच की दुनिया में प्रसिद्ध अरविंद गौड़ और नाट्य निर्देशक संजय उपाध्याय ने नुक्कड़ नाटक पर अपने विचार साझा किए. अरविंद गौड़ ने कहा कि कोई भी मुद्दा किसी राजनीतिक दल की बपौती नहीं है. समाज की नाराजगी नाटक में जाहिर होती है. हमें गुस्सा आता है तो हमारा नुक्कड़ पैदा होता है. मैं सोचता हूं कि समस्याएं खत्म हो जाएं ताकि हमें नुक्कड़ नाटक न करना पड़े. अगर कोई पार्टी कोई अच्छा मुद्दा उठा रही है तो हमें इसका स्वागत करना चाहिए. हमारे अपने मुद्दे हैं, जिसे हम नाटक के जरिये जाहिर करते हैं. इससे समाधान का रास्ता निकलता है.
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अरविंद गौड़ ने कहा कि पहले राजनीतिक दल से रंगमंच से जुड़े होते थे. बाद में ये बदलाव आया कि रोजमर्रा का जीवन नाटक में उतर गया. इस तरह का प्रयोग करने के लिए कुछ लोगों ने मेरी आलोचना की, लेकिन यही आज का मुख्य धारा बन गई है. आज के रंगमंच में हर तरह के मुद्दों पर नाटक किए जाते हैं. हर तरह के मुद्दे उठाए जा रहे हैं. हर उन मसलों पर नाटक हो रहे हैं जो हमारे आम-जनजीवन से जुड़े होते हैं. उन्होंने बताया कि 10 साल पहले जिन स्कूलों में नुक्कड़ नाटक वालों को प्रवेश की अनुमति नहीं थी, वहां अब हमें बुलाया जाने लगा है. हम ट्रांसजेंडर, शिक्षा, शराबबंदी, सड़क, बिजली और स्कूल जैसे विषयों पर नाटक कर रहे हैं.
पुलिस लेती है नुक्कड़ नाटक की मदद
अरविंद गौड़ ने एक वाकया सुनाया कि कैसे नुक्कड़ नाटक के प्रति समाज और व्यवस्था के भीतर भी सोच में बदलाव आया है. उन्होंने बताया कि एक बार हम लोग कनॉट प्लेस पर भगत सिंह पर नुक्कड़ नाटक कर रहे थे. पुलिस ने इस पर आपत्ति जताई और पूरी टीम को संसद मार्ग स्थित थाने लेकर गई. हमने थाना परिसर में भी नुक्कड़ नाटक करना शुरू कर दिया. बाद के दिन में बदलाव यह रहा कि पुलिस विभिन्न मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के लिए नुक्कड़ नाटक का मदद लेने लगी. अब पुलिस महकमे से भी नुक्कड़ नाटक के लिए बुलाया जाता है.
युवाओं के सवाल पर अरविंद गौड़ ने कहा कि नुक्कड़ नाटक की तरफ युवा जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि थिएटर के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होती है. थिएटर को युवा ही आगे बढ़ाते थे और आज भी आगे बढ़ा रहे हैं. हमने मजदूरों के साथ अपना थिएटर शुरू किया था. आज की तारीख में टिक-टॉक भी थिएटर ही है, जहां रोज युवा अपना वीडियो बनाकर शेयर कर रहे हैं. इस मामले में गांव के युवाओं ने शहर के यूथ को पीछे छोड़ दिया है. भ्रष्टाचार के खिलाफ भी युवा ही आगे आए. युवा अपने हक के लिए लड़ना सीख गया है.
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प्रतिरोध का रंगमंच
वहीं नुक्कड़ नाटक के बारे में बताते हुए नाट्य निर्देशक संजय उपाध्याय ने कहा कि 1984 के समय मैं रंगमंच की दुनिया में आया. नुक्कड़ नाटक हमारी आदिम संस्कृति का हिस्सा रहा है. यह प्रतिरोध का रंगमंच है. इसे आप थिएटर ऑफ जस्टिस कह सकते हैं. यह अन्याय के खिलाफ लड़ने की परंपरा का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि युवा थिएटर कर रहे हैं. तकनीकी कितनी भी एडवांस हो जाए, लेकिन युवा थिएटर करते रहेंगे. थिएटर की भूमिका समाज में बदलवा लाने के लिए है. थिएटर हमारे आत्मविश्वास और ऊर्जा के स्तर को ऊपर बनाए रखता है.
खराब सिनेमा से बेहतर है कि नाटक देखें
संजय उपाध्याय नाटकों के जरिये समाज में बदलाव की अपनी एक कहानी भी साझा की. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पढ़ाई पूरी करने के बाद वो कुछ अलग करना चाहते थे. इसलिए वो पटना गए. पटना के नंदनगर इलाके में काम करना शुरू किया. नंदनगर इलाके में गरीबों के 30 बच्चों को नाटक से जोड़ा और उन्हें ट्रेनिंग दी. संजय उपाध्याय ने बताया कि उनमें कई बच्चों ने बाद में दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिला लिया. यानी प्रतिभा कहीं कमी नहीं होती है. सिर्फ लोगों को अवसर मिलना चाहिए. उन्होंने श्रोताओं से यह भी कहा कि खराब सिनेमा देखने से बेहतर है कि आप नाटक देखें. जनविरोधी माहौल को खत्म करने के लिए नुक्कड़ नाटक देखे जाने की जरूरत है. अभी के माहौल में सभी लोग डरे हुए हैं. ऐसे माहौल में नाटक की बहुत जरूरत है.