साहित्य के सबसे बड़े मंच 'साहित्य आजतक' का आज दूसरा दिन है. दूसरे दिन की शुरुआत मशहूर लेखक और गीतकार प्रसून जोशी के साथ हुई. कार्यक्रम के 'दस्तक दरबार' मंच पर प्रसून जोशी के साथ 'रहना तू, है जैसा तू' मुद्दे पर चर्चा हुई. इस कार्यक्रम का संचालन श्वेता सिंह ने किया.
प्रसून जोशी ने यहां कहा कि उन्हें आज इस बात से आपत्ति है कि महिलाओं के लिए सिर्फ हाउसवाइफ की संज्ञा दी जाती है और उन्हें नॉन वर्किंग कहा जाता है. प्रसून बोले कि ऐसी संज्ञा उस पूरे दायित्व को नकारती है जिसमें एक मां एक शिशु को बड़ा कर काम करने लायक बनाती है.
उन्होंने कहा कि आज हर वो चीज जिससे पैसा नहीं कमा रहे हैं वो काम की नहीं रह गई है.ये जरूरी नहीं है कि हर व्यक्ति का मूल्यांकन पैसों से हो.
प्रसून जोशी ने कहा कि लेखक का जुड़ाव एक सत्य से होता है, जो एक इंसान को दूसरे इंसान से, एक प्राणी को दूसरे प्राणी से होता है. उसे सभी की तकलीफ दिखती है और इसी चीज को वह अपनी लेखनी में उतारता है. इस बात का जिक्र करते हुए उन्होंने गुनगुनाया, ''...मां की गोदी में सर रख कर बह बह जाऊं''.
इसे पढ़ें... साहित्य आजतक 2018: दस्तक दरबार के मंच पर प्रसून जोशी
वरिष्ठ लेखक प्रसून जोशी ने कहा कि जब आप सच्ची भावना से लिखने की कोशिश करते हैं, तो गलतियां होती है. जो ऑडिएंस को पसंद नहीं है, तो उसे रिजेक्ट करना शुरू करना चाहिए. उन्होंने कहा कि आज हमने महिलाओं के चित्रण के साथ हमने इंसाफ नहीं किया, चाहे विजुअली हो या फिर किसी और तरह से हो.
उन्होंने समझाया कि अगर एक महिला को दिखा रहे हैं जो पुलिस के कपड़े पहने हुई है और आप उसके शरीर को ही दिखा रहे हैं तो आपको इस सोच को बदलना होगा. फिल्म, कला, गाने हर जगह इसे बदलना होगा.
...नजर तोरी, घूर घूरम घूरम
प्रसून जोशी ने इस दौरान अपनी एक ठुमरी भी सुनाई, उन्होंने बताया कि इस ठुमरी को उन्होंने कल रात को ही लिखा है और अभी भी पूरी होनी बाकी है.
नजर तोरी, घूर घूरम घूरम
नजर मोरी, झुकी झुकी रहे हर दम...
तोरी नजरिया से शिकवा नहीं
नियत तोरी डोल डोलम डोलम..
नयनों के मिलने कछु डर नाही
निगाह तोरी झील झीलम झीलम...
अब ना सहे जाए तीर अखियन के
चुभत जैसे शूल शूल शूलम...
उन्होंने बताया कि ठुमरी के अंग की बारीकी को मेंटेन करते हुए आगे का इस्तेमाल कर रहे हैं. जब उनसे पूछा गया कि वह महिलाओं के मुद्दे पर इतना शानदार तरीके से किस प्रकार लिख पाते हैं तो उन्होंने कहा कि मेरी मां, दादी, बहन, पत्नी की वजह से महिलाओं के दर्द को सही तरह से समझ पाता हूं.
प्रसून ने कहा कि अब समय आ गया है कि अपनी कला में ओवर करेक्शन किया जाए. कुछ चीजें कानून और व्यवस्था से बदलती हैं कुछ को समाज को ही बदलना होता है.
जो गाली ना देते हुए गाली दे रहा है उसे पकड़ना जरूरी है...
वरिष्ठ गीतकार ने कहा कि कभी हिंसा या महिला के चरित्र को कॉमेडी के नाम पर प्रस्तुत करते हैं तो इसका इम्पैक्ट बहुत बड़ा होता है. कुछ चीजें परंपरा की आड़ में हो रहा है, जब कोई व्यक्ति गाली ना देते हुए भी गाली दे रहा हो उसे पकड़ना जरूरी है.
सेंसर बोर्ड में कुछ इस प्रकार हो रहा है बदलाव...
लेखक-गीतकार होने के साथ-साथ प्रसून जोशी सेंसर बोर्ड के चेयरमैन भी हैं. उन्होंने अब कहा कि सेंसर बोर्ड में मैंने कोशिश की है, वहां के हर अफसर चाहते हैं कि सही तरीके से काम हो. उन्होंने कहा कि CBFC का काम बड़ा मुश्किल है, हमें सिनेमैटिक सेंसटिविटी और सोसाइटी के बीच में तालमेल बिठाना पड़ता है.
उन्होंने बताया कि एक सीन के लिए किसी व्यक्ति के लिए कई मतलब हो सकते हैं. समाज के प्रति संवेदनशील होना कला के लिए काफी जरूरी है. अगर कला और ऑडिएंस के बीच का कनेक्शन टूट गया तो बहुत गलत होगा.
प्रसून जोशी ने इस चर्चा के दौरान अपनी कई कविताएं, गीत, रचनाओं के बारे में बताया. इनमें 'हम सभी में एक व्यक्ति और होता है', 'भूला चुका हूं उस संदूक के अंगारों के नीचे', 'अपलक निहारना सौंदर्य को, अनुभूति का सौंदर्य बन जाता है' जैसी रचनाएं रहीं.
To License Sahitya Aaj Tak Images & Videos visit www.indiacontent.in or contact syndicationsteam@intoday.com