Sahitya Aajtak 2025: देश की राजधानी दिल्ली में साहित्य के सितारों का महाकुंभ यानी साहित्य आजतक 2025 जारी है. आज कार्यक्रम के दूसरे दिन युवाओं के लिए खास सेशन रखा गया. जिसका नाम 'राइटिंग की मास्टर क्लास' सेशन था. जिसमें ऑथर, स्क्रीन राइटर और लिरिसिस्ट निखिल सचान पहुंचे. यहां उन्होंने अपने लेखन, स्ट्रगल के बारे में क्या कुछ कहा जानिए....
आजतक साहित्य के मंच पर जब निखिल सचान से पूछा गया कि उन्हें कब ऐसा लगा कि उन्हें एक राइटर बनना है? उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा, 'जब मैं कोटक महिंद्रा बैंक में वाइस प्रेसिडेंट था तब तक मैं 3 किताबें लिख चुका था. इसके बाद मुझे पहला कॉल ... प्रोडक्शन से आया. जहां उन्होंने एक शर्त रखी कि जब आप प्रॉपर लिखना शुरू करेंगे तभी हम साथ काम करेंगे. तब मैंने तय कर लिया कि अब मुझे सब काम छोड़कर बस लिखना ही है.
निखिल ने कहा, 'मुझे काम करते हुए 8 से 10 साल हो गया था. बैंक में बहुत ज्यादा काम था और बड़ी टीम संभालना होता था. इस वजह से मैं लिख भी नहीं पा रहा था. मैं 2-3 सालों से बैंक में लिखता और फिर उसे घर आकर फिर से लिखता. इस वक्त में दोहरी जिंदगी जी रहा था. जब मैं रिजाइन देने जा रहा था....
'फिर एक टर्निंग पॉइंट आया. कोरोना की दूसरी लहर में मेरे जानने वाले, मेरे खास दोस्त गुजर गए. तब मुझे ये हिट करा कि जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है, इसलिए जो मन हो उसे कर ही लेना चाहिए.'
पहली किताब लिखने की जर्नी कैसे रही?
निखिल ने कहा, 'मेरी लिखाई को स्कूल के टाइम से ही चल रही थी. कानपुर के जिस स्कूल से मैं पढ़ाई कर रहा था. वहां पर हिंदी लिटरेचर काफी अच्छे से पढ़ाते थे. मेरे पापा-मम्मी मुझे हमेशा इंग्लिश मीडियम में डालना चाहते थे. लेकिन मेरा मन हमेशा से हिंदी में ही करने का था क्योंकि मुझे स्कूल में इतना अच्छे से लिटरेचर पढ़ाया गया, कि वो बॉडी में घुस गया.'
आईआईटी-BHU और आईआईएम से पढ़ाई करने वाले निखिल ने एक किस्सा बताया, 'हम लोग लिखने में इतना घुस गए थे कि दोस्तों ने प्लेसमेंट में बैठना ही बंद कर दिया था. सभी को राइटर बनना था. सभी के दिमाग में ये ही चल रहा था. लेकिन जब 2009 में मैं मुंबई आया तो यहां दूसरे दोस्तों का स्ट्रगल देखकर ही मैं भाग गया. हालांकि उन दोस्तों ने कई फिल्में और अच्छी वेब सीरीज भी लिखी. लेकिन मैं नौकरी करने निकल गया.'
जब निखिल से राइटिंग स्ट्रेस के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'मुझे लगता है कि हमारे दिमाग में ही स्ट्रेस होता है. क्योंकि आपके दिमाग में ये चल रहा होता है कि काफी पढ़ाई लिखने के बाद आप अचानक लिखने पर आ गए. हालांकि इस दौरान मुझे मेरे परिवार का सपोर्ट मिला. जब मेरी किताबें पब्लिश हुई तो काफी काफी कॉल आने लगे फिर यकीन हो गया कि हो जाएगा.'
राइटिंग में रियलेस कितनी जरूरी है?
इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा, 'लोगों को ऑबजर्व करने से ही रियलनेस मिलती है. क्योंकि पहली किताब हमारी अनुभव पर ही आधारित होती है. मेरी पहली किताब इसी पर थी. जो देखा था उसे लिखा. धीरे-धीरे जब आप लिखते हैं तो फिर आपको सब लिखना पढ़ता है.'
मिट्टी सीरीज के लिए किसानों से मिला
वहीं रूरल ड्रामे को लेकर निखिल ने बताया, 'जो आज गांवों की कहानी लिख रहे हैं, उन्होंने गांव ही नहीं देखा. एक 'पंचायत' वेब सीरीज हिट होने के बाद लोग उसी की डिमांड करते हैं. पंचायत इसलिए चली क्योंकि वो ऑथेंटिक है. छोटी-छोटी चीजों में काफी डिटेल किया गया है. जब मैं 'मिट्टी' वेब सीरीज जब लिख रहा था, तो मैं गांवों में गया था.'
'इसमें हमने काफी रिसर्च किया, मैं कई किसानों से मिला. इस दौरान आईआईटी छोड़ने वालों से भी मिला, जो आज किसानी कर रहे हैं. कृषि मंत्रालय गया. किसानों की दुनिया को समझा. ताकि ये काल्पनिक न लगे. रिसर्च करते हैं तो रियल चीज आती है. मिट्टी शो रिलीज होने के बाद अब तक मुझे मैसेज आ रहे हैं. बड़ी जॉब करने वालों के भी कॉल आ रहे हैं. जिन्हें किसानी करना है.'
राइटिंग की मेथड कितनी अलग?
निखिल ने बताया, 'किताबें लिखना काफी आसान है. जबकि फिल्म या सीरीज के लिए 2-3 साल लग जाते हैं. कभी तो 4 से 5 साल तक सिर्फ इसी में निकल जाता है. क्योंकि इसे पहले प्रोड्यूसर को बताते हैं, डायरेक्टर को सुनाते हैं. सभी का फीडबैक लिया जाता है. इसमें काफी मेहनत लगती है. फिल्म बनने के बाद भी कोई गारंटी नहीं कि वो रिलीज होगी भी या नहीं.'
'मैंने पहले बहुत सारी किताबें पढ़ी और उसे पढ़ने के बाद ही मैंने फिल्में-सीरीज लिखना शुरू किया. क्योंकि इसका हर एक पेज रियल स्टेट है. सिनेमा काफी तेज है, हर पन्ने के साथ चीजें काफी बदलती है. उसमें म्यूजिक से पता चल जाता है कि दो लोगों के बीच क्या हो रहा है. मुझे फिल्में लिखने की सीख 'सेव द केट' से मिली. इसके अलावा 'बर्ड बाय बर्ड', 'फोर स्क्रीनप्ले' जैसी किताबों से भी काफी मदद मिली. इसके अलावा आपको डायरेक्शन, एक्टर और एडिटिंग के बारे में पता होना चाहिए, इससे आप अच्छे से लिख पाएंगे.'
फिल्में लिखना का स्टार्टिंग पाइंट क्या होना चाहिए?
निखिल ने बताया, 'अगर आपको कहानी लिखनी है तो ये नहीं करना है मुंबई पहुंच गए. ये काम नहीं करेगा. आपके पास स्क्रिप्ट नहीं तो तब तक निकलना नहीं चाहिए. आप कहानी लिखिए. कनेक्शन रखिए और जॉब रखिए. प्रोड्यूसर्स को कहानियां दिखाइये. जब आपको एक फिल्म पर एक प्रोड्यूर मिला और चेक मिला. तो भी आपको कोई बड़ा कदम उठाना चाहिए. बेबी स्टेप लीजिए, उसके बाद जाइये. मैंने सिनेमा के लिए तब लिखना शुरू किया जब मेरी 4 किताबें पब्लिश हो गई थी. बेबी स्टेप लो. जो कह रहा है कि मुंबई के निकलो उसकी मत सुनो.'
फिल्म इंडस्ट्री में सर्वाइव कितना मुश्किल?
फिल्म इंडस्ट्री में स्ट्रगल को लेकर निखिल सचान ने कहा, 'ये IIT, IIM और UPSC की तैयारी से ज्यादा मुश्किल है. यहां पर दर्द ये नहीं है कि हमारी कहानी पर फिल्म बने. दर्द ये है कि 4-5 साल की मेहनत के बाद भी आपका उसपर कंट्रोल नहीं है. कई फिल्मों को देश और विदेश में अवॉर्ड मिले, अभी गोवा फिल्म फेस्टिवल में भी दिखाई जाएगी लेकिन ये अबतक रिलीज नहीं हो पाई. काफी डिफकल्ट इंडस्ट्री है. आप पागल हो जाएंगे. आपको ऐसा लगेगा कि आपका बच्चा कोई ले गया, आपको लौटा नहीं रहा है.'
'इसलिए साथ में सपोर्ट सिस्टम, फाइनेंशनी स्ट्रॉग होना काफी जरूरी है. मैं बेकिंग सेक्टर में था. मैंने इस दौरान काफी शेयर मार्केट समझा, साथ में राइटिंग की. मैंने फाइनेंस भी काफी पढ़ा. अगर दो तीन साल तक फिल्में नहीं आई तो उतना था कि मैं सर्वाइव कर लूंगा. आपको इस नौकरी के दौरान कहानी लिखने से कोई नहीं रोकेगा. काम करते हुए मेरी फिल्में रिलीज हुई. लेकिन कहानी पर ध्यान तभी लगेगा, जब आपके पास दाल-रोटी का जुगाड़ होगा.'
बॉलीवुड साउथ को कॉपी कर रहा है
निखिल ने कहा, 'फिल्म इंडस्ट्री अभी सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. बॉलीवुड, साउथ की फिल्मों को कॉपी कर रहा हैं. मुझसे भी कहा जाता है कि आपके पास एनिमल जैसी कोई एक्शन फिल्म है, स्त्री जैसी कोई हॉरर कॉमेडी तो बताइये. लेकिन मैं एक दम साधारण स्टोरी ही लिखता हूं. फिल्म इंडस्ट्री में स्टोरी ही सबसे बड़ा किंग है. लेकिन अगर कोई बड़ा एक्टर रणवीर सिंह या रणबीर सिंह बोल दें कि उन्हें ये फिल्म करना है तो को 200 लोग कचरा कहानी को भी करने लग जाएंगे. स्टोरी की फिर किसी को परवाह नहीं.'
'साउथ वाले काफी अच्छा काम रहे हैं. बॉलीवुड से काफी लोग वहां चले गए, जिसमें डायरेक्टर अनुराग कश्यप का नाम भी शामिल हैं. हम उनसे सीख सकते हैं. एनिमल जैसी कहानी के बीच हम किसानों की कहानी बता रहे हैं. गोवा फिल्म फेस्टिवल में हमारी दिखाई जा रही है. कहानी और इंटेंट में दम हो तो फिल्म इंडस्ट्री में काम चल जाएगा.'