हमने इस किताब में कोई नई बात नहीं लिखी है. वैसे तो आजकल किसी भी किताब में कोई नई बात लिखने का रिवाज़ नहीं है- इब्ने इंशा की यह बात कमाल की है. आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में जिस पुस्तक की चर्चा हो रही है वह अपने आप में अनूठी और अपनी तरह की पहली किताब है. पत्रकार, व्यंग्यकार जयजीत ज्योति अकलेचा की पुस्तक 'पाँचवाँ स्तंभ- व्यंग्य रिपोर्टिंग की पहली किताब' का दावा अपने आपमें अनूठा है. जयजीत ज्योति अकलेचा का पहला व्यंग्य संग्रह है. पत्रकार अगर संवेदनशील है और वह अपने पेशे में अपनी बात नहीं कह पाता तो व्यंग्य उसे एक ऐसे माध्यम की तरह दिखता है, जहां वह जो चाहे, जैसे चाहे अपनी बात कह सकता है. अकलेचा पाँचवाँ स्तंभ के माध्यम से यही काम कर रहे. यह पुस्तक रिपोर्टिंग, खबरों और घटनाओं को व्यंग्य के माध्यम से परोसती है और पाठकों को ऐसे सवालों के घेरे में बांध देती है, जहां वह सोचने को विवश है. यह पुस्तक उन बहुत सी घटनाओं का ज़िक्र करती है जिनसे हम सब कहीं न कहीं गुज़र चुके हैं.
इस पुस्तक के संदर्भ में अग्रणी व्यंग्यकार आलोक पुराणिक कहते हैं कि 'नए प्रयोगों का साहस व्यंग्य बहुत लिखा जा रहा है, पर क्या सच में व्यंग्य बहुत लिखा जा रहा है? व्यंग्य में नए प्रयोगों की क्षमता, साहस और विवेक अब विकट तरह से अनुपस्थित दिखता है. जयजीत अकलेचा उन बहुत कम व्यंग्यकारों में हैं, जिनके पास व्यंग्य के नए प्रयोगों की क्षमता, साहस और विवेक सब है.'
'पाँचवा स्तंभ' में जयजीत जो कुछ रचते हैं, उसका एक सिरा पत्रकारिता से और दूसरा सिरा साहित्य से जुड़ता है. इस व्यंग्य संग्रह में एक बहुत सशक्त रचना है- 'नो वन किल्ड कोविड पेशेंट'. इन पंक्तियों पर ध्यान दीजिए- 'सरकार ने संसद में बताया कि कोरोना की दूसरी लहर में कोई भी व्यक्ति ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरा. कल इंजेक्शन की कमी से कोई ना मरेगा, तो आदमी मरेगा कैसे? इसी तरह 'नीरो की ऐतिहासिक बंसी' से इंटरव्यू भी एक विशिष्ट प्रयोग है. फ़ॉर्म और कथ्य के स्तर पर नवोन्मेष रचनात्मक कामों में ज़रूरी है. एक ही ढर्रे पर कही गई बात अपनी अर्थवत्ता खोती जाती है. हम सब व्यंग्यकारों को जयजीत से सीखना चाहिए कि नए-नए फॉर्म में अपनी बात कैसे रखी जाए.'
वाकई अकलेचा ऐसे-ऐसे सवाल उठाते हैं, अमूमन जिसका संत्रास झेलते हुए भी जिससे रूबरू होने की आम जन हिम्मत नहीं जुटा पाता.
'खबरदार यहां डरना मना है', जो इस संग्रह की पहली रचना है, में धर्मरक्षक, गौरक्षक और संस्कृति रक्षकों की खबर लेते हुए वे सफल डरपोक की व्याख्या करते हैं और लिखते हैं, 'एक डरे हुए आम आदमी की सफलता इसी में है कि वह खबरों से भी डरने लगे.' संग्रह में 'एक डंडे का फ़ासला', 'राह चलते चलते यूं ही एक मुलाकात', 'राजा का दर्पण और दिल की बात', 'बड़े वाले रावण', 'खौफ बिन इज्जत नहीं', 'इंटरव्यू एक इंकलाबी पौधे से' और 'काबुलीवाला के मार्फत चंद सवाल' ऐसी रचनाएं हैं जो दिमाग पर लंबे समय तक बनी रहती हैं और पाठकों को बहुत कुछ सोचने पर बाध्य करती हैं.
वाकई यह पुस्तक व्यंग्य की अनोखी पुस्तक है, जो कई अर्थों में पाठकों को झकझोरती है. आज बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए जयजीत ज्योति अकलेचा की इसी पुस्तक 'पाँचवाँ स्तंभ- व्यंग्य रिपोर्टिंग की पहली किताब' के बारे में. इस पुस्तक को मैंड्रेक पब्लिकेशंस ने प्रकाशित किया है. कुल 145 पृष्ठ वाले इस व्यंग्य संग्रह का मूल्य 199 रुपए है.
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# जयजीत ज्योति अकलेचा की पुस्तक 'पाँचवाँ स्तंभ- व्यंग्य रिपोर्टिंग की पहली किताब' को मैंड्रेक पब्लिकेशंस ने प्रकाशित किया है. कुल 145 पृष्ठ वाले इस व्यंग्य संग्रह का मूल्य 199 रुपए है.