scorecardresearch
 

Gandhi’s Delhi: बापू ने पाकिस्तान को पैसे देने के लिए नहीं रखा था उपवास

जानिए कैसी है विवेक शुक्ला की महात्मा गांधी पर लिखी पुस्तक Gandhi’s Delhi. ये पुस्तक  महात्मा गांधी के दिल्ली प्रवास पर आधारित है.

Advertisement
X
Gandhi’s Delhi (फोटो:आजतक)
Gandhi’s Delhi (फोटो:आजतक)

विवेक शुक्ला जितने अच्छे पत्रकार, लेखक हैं, उतने ही अच्छे इतिहासकार भी. दिल्ली, दिल्ली के लोगों, यहां के इतिहास, ऐतिहासिक हस्तियों, सड़कें, भवन और पुरातत्व पर उनकी पकड़ चौंकाती है. हाल ही में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के दिल्ली प्रवास पर अंग्रेजी में लिखी उनकी एक किताब आई Gandhi’s Delhi (12 April, 1915 - 30 January, 1948 and beyond. इस किताब में गांधी जी के दिल्ली प्रवास से जुड़ी ढेरों जानकारियां हैं.

प्रस्तावना प्रख्यात गांधीवादी सुंदरलाल बहुगुणा ने लिखी है. बहुगुणा खुद 29, जनवरी 1948 को बापू से मिले थे. विवेक इस किताब को पहले हिंदी में लाना चाहते थे, पर प्रकाशकों के अपने नखरे थे. अंग्रेजी में अनुज्ञा बुक्स ने इसे छाप दिया. बौद्धिक वर्ग ने किताब को सराहा और यह हाथोंहाथ बिक गई. यह किताब बापू के पहले दिल्ली आगमन से लेकर उनके आखिरी आगमन, यहां तक की जीवन की आखिरी यात्रा तक के ऐतिहासिक घटनाओं के बेहद करीने से रखती है.

Advertisement

यह किताब यह भी बताती है कि दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी जी ने कैसे अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले की सलाह पर पूरे भारत का दौरा शुरू किया. उसी दौरान सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो. सुशील कुमार रुद्र के अनुरोध पर गांधी जी 12 अप्रैल, 1915 को पहली बार दिल्ली आए. प्रो. रुद्र ने सी. एफ. एंड्र्यूज के जरिए, जो उसी कॉलेज में पढ़ाते थे और गांधी के मित्र थे, गांधी से संपर्क किया था.

पहली दिल्ली यात्रा में महात्मा गांधी प्रो. रुद्र के घर पर ही रुके. वहां उन्होंने कॉलेज के प्राध्यापकों और छात्रों से मुलाकात की, और अगले दिन बल्लीमारान में हकीम अजमल खान से मिलने गए. उसी दौरान उन्होंने कुतुब मीनार और लाल किला देखा, फिर वृंदावन चले गए. बाद के दिनों में दिल्ली में बापू दरियागंज में मुख्तार अहमद अंसारी के यहां रुके, वाल्मीकि बस्ती में लंबा समय गुजारा, और अंत में बिड़ला हाउस में रहे. पर इन सबके बीच वह बिड़लाजी से तमाम करीबियों के बावजूद उन्होंने बिड़ला मंदिर के उद्घाटन के लिए शर्त क्यों रख दी थी? आखिर क्या वजह थी कि अपनी हत्या से महज चंद दिन पहले वह महरौली में सूफी फकीर की दरगाह पर गए थे... इसी पुस्तक का अंश.

Advertisement

- महात्मा गांधी सनातनी हिंदू होने के बावजूद कर्मकांडी हिंदू कभी नहीं रहे थे. अगर बात दिल्ली की करें तो वे यहां 12 अप्रैल,1915 से लेकर 30 जनवरी 1948 तक बार-बार आते रहे, अंतिम 144 दिन भी यहां ही रहे, पर सिर्फ दो बार ही किसी धार्मिक स्थान में गए. दोनों बार, उनके वहां जाने का एक मकसद था.

दरअसल राजधानी के मंदिर मार्ग स्थित प्रसिद्ध बिड़ला मंदिर (लक्ष्मी नारायणमंदिर) के उद्घाटन करने के लिए जब प्रमुख उद्योगपति और गांधी जी के सहयोगी घनश्याम बिड़ला ने उनसे अनुरोध किया तो बापू ने एक शर्त रख दी. उन्होंने कहा कि वे मंदिर का उद्घाटन करने के लिए तैयार हैं, पर उनकी एक शर्त है. अगर उस शर्त को माना जाएगा तब ही वे मंदिर का उद्घाटन करेंगे.

ये बात 1939 के सितंबर महीने की है. बिड़ला जी ने सोचा भी नहीं था कि उन्हें गांधी जी से इस तरह का उत्तर मिलेगा, क्योंकि उनके बापू से काफी मधुर संबंध थे, गांधी जी उनके अलबुर्कर रोड (अब तीस जनवरी मार्ग) के आवास में ठहरते भी थे.

खैर, बिड़ला जी ने बापू से उनकी शर्त पूछी. गांधी जी ने कहा कि मंदिर में हरिजनों के प्रवेश पर रोक नहीं होगी. दरअसल, उस दौर में मंदिरों में हरिजनों के प्रवेश पर अनेक तरह से अवरोध खड़े किए जाते थे. उन्हें पूजा करने के लिए धर्म के ठेकेदार जाने नहीं देते थे. जब गांधी जी को आश्वासन दिया गया कि बिड़ला मंदिर में हरिजनों के प्रवेश पर रोक नहीं होगी तो वे बिड़ला मंदिर के उद्घाटन के लिए राजी हो गए. उसके बाद बिड़ला मंदिर का 22 सितंबर, 1939 को विधिवत शुरू हुआ.

Advertisement

बहरहाल, गांधी जी यहां पर उद्घाटन करने के बाद फिर कभी नहीं आए. पर उनकी प्रार्थना सभाओं में सभी धर्मों की पुस्तकों का पाठ होता था. गांधी जी ने अपनी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ में अप्रैल,1925 में लिखा भी था- “मंदिरों, कुओं और स्कूलों में जाने और इस्तेमाल करने पर जाति के आधार किसी भी तरह की रोक गलत है.”

गांधी जी ने 7 नवंबर, 1933 से 2 अगस्त, 1934 के बीच छूआछूत खत्म करने के लिए देशभर की यात्रा की थी. इसे गांधी की ‘हरिजन यात्रा या दौरा’ के नाम से भी याद किया जाता है. साढ़े 12 बजे हजार मील की उस यात्रा में गांधी जी ने छूआछूत के खिलाफ जन-जागृति पैदा की थी.

बहरहाल, बिड़ला मंदिर का निर्माण 1933 से 1939 के बीच चला. बिड़ला मंदिर के उद्घाटन वाले दिन गोल मार्किट, इरविन रोड (अब बाबा खड़क सिंह मार्ग), करोल बाग और बाकी आसपास के इलाकों के हजारों लोग पहुंच गए. सबकी चाहत थी कि वे मंदिर के उद्घाटन के बहाने बापू के दर्शन कर लें. उस भीड़ में गोल मार्किट के काली मंदिर के पीछे रहने वाले श्री कमलकांत बसु भी थे. वे मंदिर मार्ग (पहले रीडिंग रोड) पर स्थित रायसीना बंगाली स्कूल में पढ़ते थे. उन्होंने एक बार बताया था कि गांधी के बिड़ला मंदिर में आने से पहले ही बिड़ला मंदिर के अंदर-बाहर हरकोर्ट बटलर स्कूल, तमिल स्कूल, रायसीना बंगाली स्कूल वगैरह के सैकड़ों बच्चे और उनके अभिभावक भी पहुंच चुके थे. अब इसी सड़क पर बिड़ला मंदिर के अलावा नई दिल्ली काली बाड़ी, बौद्ध मंदिर, सेंट थामस चर्च और वाल्मिकी मंदिर भी हैं.

Advertisement

वाल्मिकी मंदिर के एक कक्ष में बापू आगे चलकर रहे भी. पर वे वहां कभी पूजा –पाठ नहीं करते थे. गांधी जी ने बिड़ला मंदिर के उद्घाटन के अवसर पर भी छूआछूत के कोढ़ पर हल्ला बोला था. इस कारण से कुछ कट्टरपंथी उनसे नाराज रहते थे. वे उन पर  झूठे व्यक्तिगत आरोप लगाते थे. एक बार पुणे में उन पर कट्टपंथी सनातनियों ने बम भी फेंका था. 19 जून, 1934 को जब गांधी पुणे स्टेशन पर पहुंचे, तो ‘गांधी वापस जाओ’ के नारे के साथ उन्हें काला झंडा दिखाये गये थे.

बिड़ला मंदिर भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को समर्पित है. बिड़ला मंदिर अपने यहां मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के लिए भी प्रसिद्ध है. बिड़ला मंदिर का वास्तुशिल्प ओडिशा के मंदिरों से प्रभावित है. इसका बाहरी हिस्सा सफेद संगमरमर और लाल बलुआपत्थर से बना है. बिड़ला मंदिर के भीतर बगीचे और फव्वारे हैं.

****

महात्मा गांधी मरने से तीन दिन पहले यानी 27 जनवरी को कड़ाके की सर्दी में सुबह कुतुबउद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह पहुंचते हैं. वे वहां दरगाह से जुड़े लोगों से मिलते हैं. वे महरौली स्थित काकी की दरगाह में क्यों जाते हैं? दरअसल महात्मा गांधी को दिल्ली आए हुए लगभग चार महीने हो चुके थे. पर इधर सांप्रदायिक दंगे थमने नहीं रहे थे. वे नोआखाली में दंगों को शांत करवाकर 9 सितंबर, 1947 को यहां शाहदरा रेलवे स्टेशन पर आए.

Advertisement

तब दिल्ली में सरहद पार से हिंदू - सिख शरणार्थी आ रहे थे, यहां के बहुत से मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे. करोलबाग, पहाड़गंज, दरियागंज, महरौली में मारकाट मची हुई थी. वे दंगाग्रस्त क्षेत्रों का बार-बार दौरा कर रहे थे. पर बात नहीं बन रही थी. उन्हें 12 जनवरी को खबर मिली कि महरौली में स्थित कुतुबउद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह के बाहरी हिस्से को दंगाइयों ने क्षति पहुंचाई है. यह सुनने के बाद उन्होंने अगले ही दिन से उपवास पर जाने का निर्णय लिया.

माना जाता है कि बापू ने अपना अंतिम उपवास इसलिए रखा था ताकि भारत सरकार पर दबाव बनाया जा सके कि वो पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये अदा कर दे. पर सच ये है कि उनका उपवास दंगाइयों पर नैतिक दबाव डालने को लेकर था. गांधी जी ने 13 जनवरी को प्रात: साढ़े दस बजे अपना उपवास चालू किया. उस वक्त पंडित नेहरु, बापू के निजी सचिव प्यारे लाल नैयर वगैरह वहां पर थे. बिड़ला हाउस परिसर के बाहर मीडिया भी ‘ब्रेकिंग’ खबर पाने की कोशिश कर रहा था. हालांकि तब तक खबरिया चैनलों का युग आने में लंबा वक्त बचा था.

बापू के उपवास शुरू करते ही नेहरु जी और सरदार पटेल ने बिड़ला हाउस में डेरा जमा लिया. वायसराय लार्ड माउंटबेटन भी उनसे बार-बार मिलने आने लगे. बापू से अपना उपवास तोड़ने का अनुरोध करने के लिए सैकड़ों हिंदू , मुसलमान और सिख भी पहुंच रहे थे. उनकी निजी चिकित्सक डा. सुशीला नैयर उनके गिरते स्वास्थ्य पर नजर रख रही थीं. आकाशवाणी बापू की सेहत पर बुलेटिन प्रसारित कर रहा था. उनके उपवास का असर दिखने लगा. दिल्ली शांत हो गई. तब बापू ने 18 जनवरी को अपना उपवास तोड़ा. उन्हें नेहरु जी और मौलाना आजाद ने ताजा फलों का रस पिलाया.

Advertisement

इस तरह से 78 साल के बापू ने हिंसा को अपने उपवास से मात दी. इसके बाद वे 27 जनवरी को कड़ाके की सर्दी में सुबह साढ़े आठ बजे काकी की दरगाह में पहुंचते हैं.  वे वहां पर मुसलमानों को भरोसा दिलाते हैं कि उन्हें भारत में ही रहना है. पर अफसोस कि अब दरगाह से जुड़े किसी खादिम को ये जानकारी नहीं है कि बापू का काकी की दरगाह से किस तरह का रिश्ता रहा है.  

#पुस्तक : Gandhi’s Delhi (12 April,1915- 30 January,1948 and beyond)

लेखकः विवेक शुक्ला,

मूल्य रु. 200, प्रकाशक-अनुज्ञा बुक्स.

Advertisement
Advertisement