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बुक रिव्यूः भारत सोने की चिड़िया, शांति का मसीहा, वगैरह वगैरह, कितने सच-कितने झूठ

भारत दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र था, भारतीयों में साम्राज्यवाद का कोई प्रमाण नहीं मिलता, भारतीय सर्जरी में सबसे आगे थे, शून्य का अविष्कार भारत में हुआ, वगैरह-वगैरह जैसी तमाम मान्यताओं पर सवाल खड़ी करती यह किताब स्केप्टिकल पैट्रियट (शक्की देशभक्त) पत्रकार और लेखक सिदिन वाडुकुट की एक कोशिश है.

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स्केप्टिकल पैट्रियट का कवर पेज
स्केप्टिकल पैट्रियट का कवर पेज

किताबः द स्केप्टिकल पैट्रियट
लेखकः सिडिन वाडुकुट
कीमतः 250 रुपये
पब्लिशरः रूपा पब्लिकेशंस

भारत दुनिया का सबसे समृद्ध राष्ट्र था, भारतीयों में साम्राज्यवाद का कोई प्रमाण नहीं मिलता, भारतीय सर्जरी में सबसे आगे थे, शून्य का अविष्कार भारत में हुआ, वगैरह-वगैरह जैसी तमाम मान्यताओं पर सवाल खड़ी करती यह किताब स्केप्टिकल पैट्रियट (शक्की देशभक्त) पत्रकार और लेखक सिदिन वाडुकुट की एक कोशिश है.

उन्होंने इसके जरिए उन मान्यताओं पर फिर से प्रश्नचिह्न लगाया है जो लगभग मान लिए गए हैं. लेखक का कहना है कि वह जिज्ञासु है और इसलिए उसने इन मान्यताओं पर सवाल खड़े किए हैं. उसने कई तरह के शोध पत्रों, ग्रन्थों, उद्धरणों का सहारा लेकर यह बताने की कोशिश की है कि इनमें से बहुत सी बातें सही नहीं है और हैं भी तो आंशिक रूप से.

लेखक का कहना है कि हम भारतीय अपने अतीत की तमाम बातें चाहे वे यथार्थ से दूर ही क्यों न हों, सुनकर और पढ़कर भाव विह्वल हो जाते हैं. हम उनके पीछे की सच्चाई को तर्कों के तराजू पर तोलने की कोशिश भी नहीं करते और न ही उनकी सच्चाई का पता लगाने का प्रयास करते हैं. हम बस उन्हें मान लेते हैं. इसका ही नतीजा है कि आज सोशल मीडिया में इस तरह की भ्रांतिजनक बातें फैल रही हैं जिनका सच से कोई संबंध नहीं है. हमारे पास बड़ी तादाद में इस तरह की सामग्री आती रहती है कि हम उन्हें मानकर उनका अंधा अनुकरण कर लेते हैं.

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लेखक का कहना है कि हालत यहां तक पहुंच गई है कि हमारे सरकारी रिपोर्ट, संसदीय सवाल-जवाब और कोर्स की किताबों में अतिशयोक्ति से काम लिया जा रहा है. राष्ट्रप्रेम के नाम पर ऐसी-ऐसी बातें लिखी और यहां तक कि पढ़ाई जा रही हैं जिनका सच्चाई से नाता नहीं है. लेखक ने इस बारे में कुछ तथ्य भी दिए हैं.

लेखक का कहना है कि हमें तथाकथित देशभक्ति की इस कमजोरी से निकलना होगा और हर बात को तर्क और शोध की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही मानना चाहिए. उदाहरण के लिए उसने यह साबित करने की कोशिश की है कि भारत के बारे में मान्यता है कि भारतीयों ने किसी अन्य देश पर कभी आक्रमण नहीं किया और न ही उनकी ज़मीन पर कब्जा किया. लेकिन लेखक ने कई सारे इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के उद्धरणों से यह साबित करने की कोशिश की है कि चोल वंश के राजाओं ने पूर्व एशिया के कई राज्यों पर आक्रमण करके उन्हें अपने अधीन कर लिया था.

उन्होंने काफी लंबे समय तक श्रीलंका और मालदीव पर राज किया था. यहां के राजा-महाराजा तो एक दूसरे पर हमले करने के लिए बदनाम थे ही. लेखक ने चोल वंश के राजाओं की शक्ति के बारे में काफी कुछ लिखा है और कई उद्धरणों के जरिए उन्हें सच साबित करने की कोशिश भी की है.

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इसी तरह से लेखक ने इस बात पर भी शंका जताई है कि भारत दुनिया का सबसे धनी देश था. उसका कहना है कि तमाम सबूत इस ओर कोई प्रकाश नहीं डालते. उसका कहना है कि उस समय किसी देश के धन और उसकी संपत्ति मापने का कोई पैमाना नहीं था. जीडीपी किसी देश की आर्थिक उन्नति को नापने की एक नई व्यवस्था है और उस समय ऐसा कुछ नहीं था जिसके आधार पर कहा जाए कि भारत दुनिया का सबसे समृद्ध देश था.

हालांकि उसने यह माना है कि भारत के पास बेशुमार दौलत थी जिसका उदाहरण इस बात से मिलता है कि ईरानी लुटेरे नादिर शाह ने भारी लूटपाट मचाई थी और हजारों ऊंटों और घोड़ों पर सोने-जवाहरात के गहने लाद कर ले गया. इसके बावजूद भारत की दौलत में खास कमी नहीं आई.

लेखक ने इसी तरह कई और मुद्दे भी उठाए हैं जैसे कि क्या रेडियो का अविष्कार जगदीश चंन्द्र बसु ने किया था. इसके लिए उसने कई तरह के प्रकाशनों और शोध को सहारा लिया है. वह इस बात को खारिज नहीं करता और उसे काफी हद तक सच बताता है. इस किताब में लेखक ने चुनिंदा शोधकर्ताओं और लेखकों का हवाला देकर अपनी बात रखी है. एक तरह से उसने यह प्रयास किया है कि उसकी आलोचना स्वस्थ और तथ्यपरक हो. उसने विदेशी और भारतीय, दोनों तरह के इतिहासकारों और विद्वानों की बातें सामने रखी हैं जो उसकी बातों को काफी हद तक प्रमाणिक बनाती हैं.

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यह देखते हुए कि प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में कोई बहुत प्रमाणिक दस्तावेज मौजूद नहीं है, कुछ निष्कर्ष निकालना संभव सा नहीं लगता. मध्य युग से पहले के भारत के बारे में हमारे पास न तो साहित्य है और न ही लिखित दस्तावेज. अगर कुछ रहा भी होगा तो विदेशी हमलावरों के हाथों नष्ट हो गया होगा, क्योंकि उन्होंने हमारे मंदिरों और नालंदा विश्विद्यालय में रखे हजारों बेशकीमती ग्रंथ जलाकर नष्ट कर दिए. इसलिए प्राचीन भारत के बारे में बहुत थोड़ी ही जानकारी उपलब्ध है. विदेशी यात्रियों जैसे मेगस्थनीज, ह्वेन सांग, फा-हियान, इब्न बतूता वगैरह ने भारत के बारे में जो कुछ लिखा वह ही हमारे प्राचीन इतिहास का प्रमाणिक हिस्सा है.

बहरहाल यह किताब बहुत ज्यादा विषयों पर तो नहीं कहती, लेकिन इतना जरूर बताती है कि हम जिस बात से गौरवान्वित महसूस करते हैं, हो सकता है वैसा कुछ हुआ ही न हो. वैसे भारत के बारे में दुनिया भर में जो वर्षों से कहा और लिखा रहा है, उसकी सत्यता के शोध का काम शायद कई वर्षों तक पूरा न हो. लेखक के अंदर की जिज्ञासा ने इस किताब को जन्म दिया है जो इस दिशा में एक छोटा सा प्रयास भर है. इतना तय है कि भाषा पर अपनी पकड़ के कारण लेखक उत्सुकता जगाए रखने में सफल हुआ है और यही इस किताब की सबसे बड़ी खूबी है.

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