'भारतीय खेलः समकालीन विमर्श' पुस्तक डॉ स्मिता मिश्र और डॉ सन्नी कुमार गोंड की संयुक्त कृति है. यह पुस्तक खेल की दुनिया के बारे में तथ्यों के साथ ही उनकी लोकप्रियता, उनके बाजार, उनके नायकों और समकालीन बहसों, विवादों और स्थितियों पर भी नजर डालती है. इस में खेल संघ भी हैं, इतिहास पुरुष भी, खेल भावना भी है तो महिला खिलाड़ी भी.. रंगभेद भी है, तो प्रायोजक भी...
इस पुस्तक में खेल, खेल के महानायक, खेल के मैदान, खेल और महिलाएं, खेल संस्कृति और राजनीति, खेल मार्केटिंग और पूंजी, खेल-विमर्श, खेल-हिंसा और अपराध, ओलंपिक और पैरालंपिक, खेल सिनेमा और मीडिया पर केंद्रित लेख भी शामिल हैं, जिन्हें लेखकों ने अलग-अलग जगह पर पहले भी लिखा है. यह और बात है कि समय-समय पर लिखी गई ये टिप्पणियां और लेख खेल-चिंतन को भी एक प्रमुख विमर्श के रूप में स्थापित कर रहे हैं, और निश्चय ही ये आज के युवाओं को खेल के प्रति अधिक गंभीरता से सोचने पर विवश करेंगे.
पुस्तक यह भी बताती है कि विकास की तमाम गतिविधियों और तकनीक के नए-नए यंत्रों के उपयोग, मनोरंजन के तमाम साधनों के बावजूद भी खेल जगत की सर्वाधिक महान घटना अब भी 'ओलंपिक' ही है. प्रत्येक चार वर्ष में घटित होने वाली इस महान घटना का भागीदार बनने का सपना विश्व का प्रत्येक खिलाड़ी देखता है. ओलंपिक का अंग बनने का स्वप्न विश्व के प्रत्येक खिलाड़ी की आंखों में पलता है और इसी स्वप्न को लक्ष्य कर वह कड़ा अभ्यास करता है. इसे जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता मानकर धैर्यपूर्वक शरीर और मन को साधता है. फिर उस अर्जित कौशल को ओलंपिक में प्रदर्शित करता है. यदि एक बार खिलाड़ी चूक जाता है तो फिर अगले चार वर्ष की प्रतीक्षा और फिर कड़ा अभ्यास करना होता है.
सीटियस, आल्टियस, फार्टियस का नारा लेकर ओलंपिक में खिलाड़ी उतरते हैं, और पिछले प्रदर्शनों की चमक को फीका कर नये चमत्कारी प्रदर्शन करते हैं. पुराने कीर्तिमान ध्वस्त होते हैं, नये बनते हैं. पुराने नायकों की उपलब्धि गौण हो जाती है जब नयी ऊर्जा के नये नायक प्रत्येक ओलंपिक में रिकॉर्ड बना जाते हैं. इनके सबके बावजूद कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं, जिनकी उपलब्धियों पर समय की धूल नहीं चढ़ती. उन महान खिलाड़ियों ने ऐसा अभूतपूर्व प्रदर्शन किया है कि उनका कीर्तिमान अनेक दशकों के बाद भी बरकरार रहता है. खेल चाहे किसी भी स्तर का हो खिलाड़ी जी जान से अपना श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं के अलावा यह पुस्तक यह भी बताती है कि भारतीय खेलों में आईपीएल का आगाज़ और लंदन ओलंपिक 2012 दो अत्यंत महत्त्वपूर्ण पड़ाव हैं. आईपीएल के आगाज़ से भारतीय खेलों में पेशेवर लीग व्यवस्था शुरू हुई. लंदन ओलंपिक 2012 पहला ओलंपिक था, जिसमें न केवल महिला और पुरुष प्रतिभागियों की संख्या सामान थी बल्कि भारत की पदकों की संख्या भी पहली बार पांच के पार पहुंची थी. ये दोनों ही आयोजन भारतीय खेल के लिए निर्णायक सिद्ध हुए. लंदन ओलंपिक 2012 की पूर्व संध्या पर ही स्पोर्ट्स क्रीड़ा समाचार पत्र की शुरुआत इस उद्देश्य के साथ हुई थी कि इसमें सभी खेलों और खासकर महिला खेलों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा. स्पोर्ट्स क्रीड़ा ने एक दशक के सफर में कई मंजिले तय की हैं. प्रथम खेल द्विभाषिक समाचार-पत्र के रूप में, प्रथम महिला सम्पादक और स्वामित्व व संपादन के रूप में मां और पुत्री की प्रथम जोड़ी के महत्त्व को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स में तीन बार रेखांकित किया गया.
इस समाचार पत्र ने अपने उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए क्रिकेट से इतर अन्य खेल, महिला खिलाड़ी, दिव्यांग खेल-खिलाड़ी आदि मुद्दों को प्रमुखता दी. इस पुस्तक में इन्हीं महत्त्वपूर्ण मुद्दों से सम्बद्ध विचार पिछले एक दशक के खेल की वैचारिकी के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं.
पुस्तक के लेखकद्वय डॉ स्मिता मिश्र और डॉ सन्नी कुमार गोंड अकादमिक और शोध गतिविधियों से जुड़े हुए हैं. डॉ मिश्र की मीडिया एवं साहित्य पर अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. आपने अपने पिता यशस्वी रचनाकार डॉ रामदरश मिश्र की रचनाओं पर आधारित रचनावली के 14 खंडों का संपादन किया है. 'इलेक्ट्रॉनिक मीडियाः बदलते आयाम', 'ओलंपिक के महानायक', ओलंपिक गाथाः ईश्वरीय मिथक से मानवीय मिथक तक, डिजिटल क्रांति और हिंदी, 'छोटे-बड़े रास्ते', 'भारतीय मीडियाः अंतरंग पहचान', 'साहित्य और समाजः विविध समय सन्दर्भ', 'मीडियाः एक अंतर्यात्रा', 'भारतीय गाँवः बदलते संदर्भ', 'गीत फरोशः संवेदना और शिल्प' आदि आपकी चर्चित रचनाएं हैं.
वहीं डॉ सन्नी कुमार गोंड का महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से एमफिल में शोध विषय खेल केंद्रित रहा है. इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में जनसंचार के असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत गोंड 'ओलंपिक गाथाः ईश्वरीय मिथक से मानवीय मिथक' तक पुस्तक के सह लेखक रहे हैं. अनेक राष्ट्रीय जर्नल में खेल एवं मीडिया से सम्बंधित शोधपरक लेख प्रकाशित.
साहित्य तक के बुक कैफे के 'एक दिन एक किताब' कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय ने डॉ स्मिता मिश्र और डॉ सन्नी कुमार गोंड की इसी पुस्तक 'भारतीय खेल समकालीन विमर्श' पर चर्चा की है. यह पुस्तक इन दोनों लेखकों की खेल पर लिखी गई टिप्पणियों, लेखों और निबंधों का संकलन है. इस पुस्तक को सर्वभाषा ट्रस्ट के सर्वभाषा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. यह पुस्तक हार्डबाउंड संस्करण और पेपरबैक्स संस्करण दोनों में ही उपलब्ध है. कुल 263 पृष्ठों की इस पुस्तक के हार्डबाउंड संस्करण का मूल्य 600 रुपए है और पेपरबैक्स संस्करण का मूल्य 350 रुपए है.
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# डॉ स्मिता मिश्र और डॉ सन्नी कुमार गोंड की पुस्तक 'भारतीय खेलः समकालीन विमर्श' को सर्वभाषा ट्रस्ट के सर्वभाषा प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. 264 पृष्ठों की इस पुस्तक के हार्डबाउंड संस्करण का मूल्य 600 रुपए है और पेपरबैक्स संस्करण का मूल्य 350 रुपए है.