लखनऊ यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड प्रोफेसर ओम प्रकाश पांडे को संस्कृत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए राष्ट्रपति सम्मान के लिए चुना गया है. यह सम्मान उन्हें गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम के दौरान दिया जाएगा. पांडे को हाल ही में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
प्रोफेसर ओम प्रकाश पांडे की अब तक तकरीबन 50 किताबें और 150 शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं. वे पेरिस की सोरबोन नोविली यूनिवर्सिटी में बतौर विजिटिंग प्रोफेसर काम कर चुके हैं. राष्ट्रीय वेद विद्या प्रतिष्ठान के सचिव सदस्य रह चुके प्रो. पांडे को 2003 में वेद रत्न पुरस्कार, 2006 में सरस्वती सम्मान, 2008 में साहित्य अकादमी, 2010 में वाल्मीकि सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. पेश हैं उनसे हुई बातचीत के अंश:
संस्कृत आज खत्म होती हुई सी क्यों नजर आ रही है?
संस्कृत भाषा खत्म होने के पीछे सबसे बड़ी वजह है विजन. लोगों ने सही तरीके से संस्कृत पढ़ने वाले को विजन नहीं दिया. हमारी सबसे बड़ी कमी ये है कि हम लोगों को जोड़ नहीं पा रहे और वो जुड़ नहीं पा रहे हैं. दूसरी वजह यह है कि संस्कृत कभी जीविका का साधन नहीं बन पाई. पहले लोग संस्कृत पढ़कर शासन-प्रशासन मे ऊंचे पदों पर होते थे. वक्त के साथ्ा ऐसा होना बंद हो गया.
सरकार से संस्कृत को लेकर आपकी क्या अपेक्षा है ?
प्रशासन ने भी संस्कृत भाषा की उपेक्षा की है. जैसे अंग्रेजी भाषा को हर स्तर पर बढ़ावा मिला, संस्कृत को भी दिया जा सकता था.
सुना है केंद्र सरकार संस्कृत को स्कूलों में अनिवार्य कर रही है?
ऐसा होना संभव नहीं है. संस्कृत भाषा को बतौर सब्जेक्ट ही रखा जा सकता है लेकिन केंद्र सरकार इसे अनिवार्य नहीं कर सकती है. इसकी वजह यह भी है कि संस्कृत से किसी पार्टी का वोट बैंक नहीं बढ़ता है. संस्कृत का सबसे ज्यादा नुकसान किया है अल्पसंख्यक मनोवृत्ति ने, क्योंकि सरकार को लगता है इस भाषा के क्षेत्र में किए गए काम से एक वर्ग को लाभ होगा, दूसरे वर्ग के लोग नाराज हो जाएंगे. हमें इस मनोवृत्ति से ऊपर उठने की जरूरत है.
संस्कृत पढ़ने वालों के लिए खास किताबें आज कौन-सी हैं?
संस्कृत सीखने वालों के लिए आज अच्छे साधन मौजूद हैं. इस भाषा में लगातार काम किया जा रहा है. कई उपन्यास हैं और इस बीच कई कहानियां भी लिखी गई हैं. अगर आप संस्कृत में रुचि रखते हैं तो भगवतगीता, अभिज्ञान शाकुंतलम, मेघदूत पढ़ें.
आज संस्कृत धर्म-कर्म तक सीमित क्यों रह गई है?
संस्कृत के धर्म-कर्म तक सीमित रह जाने के पीछे वजह है संस्कृत पढ़ाने वालों की. उन्होंने लोगों के सामने उसे धर्म मात्र से जोड़कर रखा है.
आज लोग संस्कृत में रुचि नहीं रखते लेकिन अपने बच्चों के नामकरण में संस्कृत नामों को चुनते हैं. इसके पीछे वजह क्या है?
लोग हमसे भी पूछते हैं कि हमारे बच्चे का नाम बता दीजिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि संस्कृत लोगों के रक्त में है. लोग उससे आज भी जुड़े रहना चाहते हैं क्योंकि वे मानते हैं कि ये हमारा संस्कार है.
संस्कृत भाषा से लोगों को आज कैसे जोड़ा जा सकता है?
लोगों को सही विजन दिखाना होगा. जो संस्कृत पढ़ाते है उन्हें अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से अदा करना होगा.
आपको इतने बड़े सम्मान से सम्मानित किया गया है, क्या कहना चाहेंगे ?
यह सम्मान ठीक वैसा है जैसे कोई वैष्णो देवी की यात्रा पर गया हो और बीच रास्ते में थके हुए इंसान को कोई खाना-पानी पूछ दे. असल में सम्मान मिलता है तो अच्छा लगता है. फिर अभी तो आगे साहित्य के क्षेत्र में बहुत से काम करने हैं.