बहुत दिनों से सोच रही थी, प्रकाश मनु जी पर कुछ लिखूं, जिनके साथ जिंदगी का एक लंबा सफर तय किया है. पर लिखना इतना आसान है क्या? अनंत उतार-चढ़ाव, लंबे सुख-दुख और अनकही व्यथाओं वाली एक लंबी कहानी है, उसे कहां से शुरू करूं?
हरिपाल त्यागी जिंदगी, जिंदादिली और उम्मीदों से भरे शख्स थे, जिनसे मिलने पर दुख की परछाईं तक आपके पास नहीं फटक सकती थी. मन में आस्था की एक लौ सी जागती थी.
रामदरश मिश्र को ईश्वर ने न केवल लंबा जीवन दिया है बल्कि उन्होंने इस जीवन का बेहतरीन सदुपयोग रचना में किया है. उनके कृतित्व और व्यक्तित्व पर एक नज़र
मां, मातृत्व और परंपरा के स्त्रीपक्ष को लेकर देश की जानी-मानी कलाकार जयश्री बर्मन (Jayasri Burman) ने कैनवस पर कूची से कमाल किया है. जयश्री के चित्रों में सम्मोहन भी है और स्पंदन भी.
रचना और आलोचना की लंबी पारी खेलने वाले अशोक वाजपेयी ने कविता को जीवन और मनुष्यता की रागात्मकता से जोड़ा है. उनके जन्मदिन पर 'थोड़ा-सा उजाला' पर चर्चा के बहाने उनके लेखन और कवि दृष्टि पर एक नज़र
नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी एक ओजस्वी कवि हैं. वे कविताओं और क्रांति गीतों के माध्यम से बाल मजदूरों में आजादी का ओज भरते हैं. आज उनके जन्मदिन पर विशेष
हिंदी की जानीमानी कथाकार मन्नू भंडारी हालांकि एक लंबी उम्र जी कर गईं, पर उन्होंने अपनी रचनाओं से मानवीय रिश्तों के जो किरदार रचे थे, वे हमेशा अमर रहेंगे
भारत या विश्व के स्तर पर इन दिनों जो घट रहा था, वह कैलाश वाजपेयी की कविताओं में छन कर आ रहा था.
जौन साहब का मंच पर किरदार एक जोकर की तरह था, हर बार जब वह रोते थे, तो लोग हंसते थे. वह ऐसे कलाकारों में शामिल हैं, जिन्होंने मंचीय प्रस्तुति के ढर्रों को ध्वस्त किया. ऐसा शायर जो अपनी शायरी में खो जाता.
असग़र वजाहत से यह बेबाक गुफ़्तगू यह बताती है कि तरक्की के नाम पर आज भले ही समाज, देश और दुनिया चाहे जो दावा करें, इनसानियत से हमारा नाता धीरे-धीरे कम हुआ है, जो चिंतनीय भी है और विचारणीय भी
प्रेमचंद के बाद हिंदी को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कहानियां देने वाले कथाकार शैलेश मटियानी ही हैं. इस मामले में न कमलेश्वर और राजेंद्र यादव जैसे कहानी के दिग्गज उनके आगे ठहर सकते हैं और न फणीश्वरनाथ रेणु जैसे बड़े लेखक.
हिंदी साहित्य और आलोचना का विशाल हिमालय मेरे सामने खड़ा था. मैंने उनके पैर छुए, तो उनके मुंह से निकला, 'लिखो, खूब लिखो...खूब अच्छा लिखो'...हिंदी के सर्वाधिक प्रतिष्ठित आलोचकों में से एक, संस्कृति चिंतक और सभ्यता विचारक, डॉ रामविलास शर्मा की जयंती पर प्रकाश मनु की यादें
1962 में प्रकाशित 'कलम का सिपाही' को हिंदी समाज द्वारा व्यापक रूप में मुंशी प्रेमचन्द की पहली और अपने आप में सम्पूर्ण जीवनी का दर्जा प्राप्त है. आज उनकी पुण्यतिथि पर पढ़िए अमृतराय द्वारा लिखी इस जीवनी के अंश
गांधी जी ने सिखाया कि बड़ी-बड़ी बातें कहने के बजाय, हम छोटी-छोटी बातें अपनाएं, छोटे-छोटे संकल्पों को पूरा करें तो हम बड़े हो सकते हैं. खुद गांधी का जीवन बताता है कि वे इसी तरह बड़े हुए. और देश के सारे बच्चों के बापू कहलाए, बड़ों के भी.
ऐसा क्या है कि एक राष्ट्र के निर्माण के पीछे, उसकी आजादी के पीछे, उसके आत्मगौरव के पीछे एक ऐसे शख्स का संघर्ष तरोताज़ा है जिसने अफ्रीका जाकर भारतीयों को उनके आत्म गौरव का बोध कराया
विश्व में जहां महात्मा गांधी के विचार उत्तरोत्तर सम्मान पा रहे हैं, वहीं राष्ट्रपिता के रूप में समादृत इस महानतम शख्सियत के चरित्र और फैसलों पर कई अधकचरे लोग सवाल उठाते हैं.
मेरी जिंदगी मकसदे आला यानी आजादी-ए-हिंद के असूल के लिए वक्फ हो चुकी है. इसलिए मेरी जिंदगी में आराम और बुनियादी खाहशात बायसे कशिश नहीं है.
दिनकर एक तरफ 'रसवंती' जैसी सरस स्नेहिल कविताओं और 'उर्वशी' की श्रृंगारिक सघनता के कवि थे तो दूसरी तरफ 'कुरुक्षेत्र' व 'रश्मिरथी' जैसे ओजरस से भरे काव्य के प्रणेता भी.
दिनकर राष्ट्र के, अध्यात्म के, जन के, पुराण के कवि हैं. भले ही वे अभी हमारे बीच नहीं हैं, पर उनकी कवितायें आज भी जीवंत और प्रासंगिक हैं.
कुंवर नारायण ने कभी लिखा था व्यक्ति की ख्याति मंद-मंद हवा की तरह बहनी चाहिए, दुंदुभि की तरह बजनी नहीं- और ऐसा ही संतोष चौबे के साथ हुआ है.
राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन आधुनिक हिंदी के सबसे बड़े अलंबरदारों में से थे, पर विनयी इतने कि न कभी उन्होंने अपने मुंह से अपनी हिंदी-सेवा की चर्चा की और न यह कभी चाहा कि लोग उनके सिर पर प्रशंसाओं के पुलिंदों का ताज रखकर अभिनंदन करें.