हिंदी के विख्यात आलोचक और साहित्यकार नामवर सिंह का निधन हो गया है. नामवर सिंह पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे और दिल्ली के एम्स अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. उन्होंने हिंदी में आलोचना विधा को नई पहचान दी और उनकी पहचान आलोचना ही है. हालांकि उन्होंने कई कविताओं की रचनाएं भी की हैं. उनकी कविताओं में आज तुम्हारा जन्मदिवस, उनये उनये भादरे, कभी जब याद आ जाते, कोजागर, नभ के नीले सूनेपन में, नहीं बीतती सांझ, पारदर्शी नील जल में, फागुनी शाम आदि प्रमुख हैं.
फागुनी शाम
फागुनी शाम
अंगूरी उजास
बतास में जंगली गंध का डूबना
ऐंठती पीर में
दूर, बराह-से
जंगलों के सुनसान का कूंथना.
बेघर बेपरवाह
दो राहियों का
नत शीश
न देखना, न पूछना.
शाल की पंक्तियों वाली
निचाट-सी राह में
घूमना घूमना घूमना.
उनये उनये भादरे
उनये उनये भादरे
बरखा की जल चादरें
फूल दीप से जले
कि झुरती पुरवैया की याद रे
मन कुएं के कोहरे-सा रवि डूबे के बाद इरे.
भादरे.
उठे बगूले घास में
चढ़ता रंग बतास में
हरी हो रही धूप
नशे-सी चढ़ती झुके अकास में
तिरती हैं परछाइयाँ सीने के भींगे चास में
घास में.
कभी जब याद आ जाते
नयन को घेर लेते घन,
स्वयं में रह न पाता मन
लहर से मूक अधरों पर
व्यथा बनती मधुर सिहरन
न दुःख मिलता न सुख मिलता
न जाने प्राण क्या पाते!
तुम्हारा प्यार बन सावन,
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन
विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मंड़राते।
झुका-सा प्राण का अंबर,
स्वयं ही सिंधु बन-बनकर
ह्रदय की रिक्तता भरता
उठा शत कल्पना जलधर.
ह्रदय-सर रिक्त रह जाता
नयन-घट किंतु भर आते
कभी जब याद आ जाते.
(साभार-hindisamay.com)