लॉकडाउन के माहौल में पूरी दुनिया कई मामलों पर तकनीक पर निर्भर हो गई है और इसीलिए इस बार साहित्य आज तक भी डिजिटल हो गया है. ई-साहित्य आज तक इस बार तकनीक के माध्यम से डिजिटली अपने-अपने घरों में बैठे लोगों तक पहुंच रहा है. शनिवार को दिग्गज राइटर मनोज मुंतशिर ई-साहित्य आज तक का हिस्सा बने. मनोज के सेशन की शुरुआत उनकी रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता 'तुम मुझे क्या दोगे से' हुई जो आज के परिवेश पर बिलकुल फिट बैठती है.
ये कविता उन मजदूरों की ताकत को बताती है जिसे आज नजरअंदाज किया जा रहा है और लाखों माइग्रेंट वर्कर पैदल ही मीलों चलकर अपने घर जाने के लिए मजबूर हैं. मनोज मुंतशिर ने बताया कि उनके गीत में ये ताकत इसलिए है क्योंकि वह भी इन्हीं मजदूरों और किसानों की उपज हैं. मनोज ने कहा कि वह एक सफर के बाद यहां तक पहुंचे हैं. मनोज ने अपनी भावना को शब्द देते हुए कहा, "मेरे पैरों को तू मिट्टी में सना रहने दे, मेरा धरती से जो रिश्ता है वो बना रहने दे."
मनोज मुंतशिर ने बताया कि वह अमेठी के एक छोटे से कस्बे गौरीगंज में हलों, बैलों, मजदूरों और खेत में धान लगाते हुए जो औरतें गीत गाती थीं उनकी पैदाइश हूं. मनोज ने कहा, "मुझे उन्होंने तराशा है. आज जब मैं देखता हूं कि हमारा जो भाग्य विधाता है जिसमें हमें इतनी बड़ी दुनिया तामीर करके दी है उसको हमने मजबूर बना दिया है तो मुझे तकलीफ होती है. मुझे इस बात से भी तकलीफ होती है जब हम पार्लेजी के दो बिस्किट उन्हें देते हुए फोटो खिंचवाते हैं, कि हमने इनकी मदद की है."
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आपसे बहुत बड़े हैं मजदूर
"अरे तुम क्या मदद करोगे. इनकी मदद करने के लिए पहले एक कुदरत का कानून कि आप उसी की मदद कर सकते हैं जिससे आप ऊपर हों. आप मजदूरों से ऊपर नहीं हैं. ये सीमेंट, मिट्टी, मोरंग, बालू के बने हुए हैं. हमारे जैसे लोग जो एसी रूम्स में बैठ कर फिलॉसफी और दर्शन की बातें करते हैं, आपसे बहुत बड़े हैं मजदूर. जब इनसे बडे़ हो जाना तब इनके बारे में सोचना. आज ये हमें छोड़कर चले गए हैं लेकिन जब कुछ दिनों बाद लॉकडाउन खत्म होगा तो हमें इनकी अहमियत पता चलेगी."