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'काम से आंके, लेबल से नहीं...', न्यायपालिका में नेपोटिज्म के सवाल पर पूर्व CJI चंद्रचूड़ ने दिया जवाब

पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने नेपो किड के आरोपों को खारिज किया है. उन्होंने कहा कि व्यक्ति का मूल्यांकन उसके काम की क्वालिटी के आधार पर होना चाहिए. उन्होंने न्यायपालिका में सुधारों पर भी जोर दिया है.

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भीरत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (Photo- India Today)
भीरत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (Photo- India Today)

भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को उन आरोपों पर खुलकर बात की, जिनमें उन्हें समय-समय पर 'नेपो किड' कहा गया है. उन्होंने कहा कि 1997 में जब उन्हें हाई कोर्ट जज बनने का ऑफर मिला, तो उनका मन इस जिम्मेदारी को स्वीकार करने का नहीं था और वे इससे दूर होना चाहते थे.

इंडिया टुडे मुंबई कॉन्क्लेव 2025 में बोलते हुए चंद्रचूड़ ने साफ कहा कि किसी व्यक्ति का मूल्यांकन उसके काम की गुणवत्ता के आधार पर होना चाहिए, न कि उसके पारिवारिक रिश्तों या बैकग्राउंड के आधार पर.

भारतीय न्यायपालिका पर लंबे समय से वंशवाद (डायनेस्टी) के आरोप लगते रहे हैं. डीवाई चंद्रचूड़ पूर्व CJI वाईवी चंद्रचूड़ के बेटे हैं. उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि न्यायपालिका में किसी व्यक्ति की पहचान उसके काम से होनी चाहिए.

उन्होंने कहा, ' आखिरकार, किसी व्यक्ति को उसके काम की क्वालिटी से आंकिए, न कि 'नेपोटिज्म या पारिवारिक कनेक्शन के लेबल से. समाज को खुद तय करने दीजिए कि उसका आकलन कैसे होना चाहिए.'

38 साल की उम्र में हाई कोर्ट जज का ऑफर

डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने करियर से जुड़ा एक पर्सनल किस्सा साझा करते हुए बताया, 'मुझे 38 साल की उम्र में हाई कोर्ट जज बनने के लिए कहा गया. उस समय मैं भारत का एडिशनल सॉलिसिटर जनरल था. हाई कोर्ट जज की नियुक्ति की प्रक्रिया में बने रहने की बजाय, मैं तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाईके सभरवाल के पास गया और उनसे कहा- कृपया मुझे इस जिम्मेदारी से मुक्त करें.'

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पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा कि वो उस समय व्यक्तिगत चुनौतियों का सामना कर रहे थे और घर की आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हें ज्यादा पैसों की जरूरत थी जो एक जज की सैलरी से संभव नहीं था. इसलिए उन्होंने वकील बने रहना चुना.

न्यायपालिका में सुधार की जरूरत पर जोर

चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के नियमों और परंपराओं में बदलाव की जरूरत है. वो बोले, 'हमारे यहां एक अनलिखा नियम है कि जब तक कोई व्यक्ति 45 साल का नहीं हो जाता, उसे आम तौर पर हाई कोर्ट जज नहीं बनाया जाता.'

उन्होंने बताया कि इसका नकारात्मक असर यह होता है कि जजों को सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने में देरी होती है और उनके पास पर्याप्त समय नहीं बचता कि वे बड़े मामलों को संभाल सकें.

चंद्रचूड़ ने इसका उदाहरण देते हुए कहा, 'अगर आप किसी बड़े कॉरपोरेट संगठन में CEO के लिए यह शर्त रखें कि 45 साल की उम्र से पहले कोई CEO नहीं बन सकता, तो लोग कहेंगे कि आज के दौर में उम्र का टैलेंट या मेरिट से क्या लेना-देना है.'

सुप्रीम कोर्ट तक का सफर

चंद्रचूड़ ने अपने लंबे करियर को याद करते हुए बताया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जज बनने से पहले 13 साल बॉम्बे हाई कोर्ट में जज के रूप में और 3 साल इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में काम किया.

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उन्होंने कहा, 'कुल 16 साल की सेवा के बाद मैं सुप्रीम कोर्ट का जज बना.'

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