महंत नरेंद्र गिरि ने अपना उत्तराधिकारी अपने शिष्य बलवीर गिरि को बताया है.अब बाघंबरी गद्दी को नए महंत सौंपे जाने की प्रक्रिया शुरू होगी. यह अलग बात है कि सुसाइड नोट और जांच को देखते हुए बलवीर गिरि को बाघंबरी गद्दी सौंपे जाने पर अभी निरंजनी अखाड़े को फैसला लेना बाकी है. क्योंकि ऐसी परिस्थिति में अखाड़े के ‘पंच परमेश्वर’ की राय भी महत्वपूर्ण होगी. साथ ही अखाड़े द्वारा विधिवत महंत घोषित करने से पहले सुसाइड नोट से जांच की दिशा में अगर कुछ और खुलासे होते हैं तो वो भी महत्वपूर्ण होगा.
हालांकि इस बीच नए महंत बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी. जानकार बताते हैं कि नए महंत को लेकर अंदरखाने अनौपचारिक मंथन शुरू हो गया है. पर औपचारिक रूप से महंत नरेंद्र गिरि की ‘धूल रोट’ के बाद निरंजनी अखाड़े के पंच परमेश्वर की बैठक होगी. इसी में महंत के नाम पर पर औपचारिक मुहर लगेगी. धूल रोट 25 सितम्बर को है. निरंजनी अखाड़े में वर्तमान में 4 सचिव थे. नरेंद्र गिरि के निधन के बाद 3 सचिव रह गए. हरिद्वार से सबसे वरिष्ठ सचिव रवींद्र पुरी के अलावा रामरतन गिरि और ओंकार गिरि भी बैठक में शामिल होंगे. इसके अलावा निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद भी इस बैठक का हिस्सा होंगे.
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं ‘हर अखाड़े की परम्परा अलग अलग है. फिर अखाड़ों में जो मढ़ी होते हैं उनकी भी अपनी निर्दिष्ट परम्परा होती है. पुरी, गिरि, सरस्वती, भारती जैसे संत अपनी-अपनी परम्परा अनुसार चलते हैं.’
हालांकि जानकार ये बताते हैं कि एक बार अखाड़े के पंच परमेश्वर द्वारा महंत के लिए नाम पर औपचारिक मुहर लगा देने के बाद इसके लिए तारीख़ तय होती है. प्रक्रिया के बारे में जानकार बताते हैं कि सबसे महत्वपूर्ण होती है ‘चादर विधि’. इसको ‘महंतई की चादर’ कहते हैं. चादर सनातन संस्कृति में सम्मान का प्रतीक है. अखाड़े के वरिष्ठ सदस्य महंत बनने वाले को चादर ओढ़ाते हैं. तिलक, चंदन भी इसके साथ ही होता है.
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यही वह समारोह या आयोजन होता है जिसमें अलग-अलग अखाड़ों के प्रतिनिधि भी बुलाए जाते हैं. प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार रतन दीक्षित कहते हैं ‘महंत होना महत्वपूर्ण है. चाहे वैभव हो या शक्ति सब इसमें निहित है. साथ ही आध्यात्मिक मान्यता भी होती है. क्योंकि बहुत गद्दी के बहुत अनुयायी भी होते हैं. ऐसे में महंत का चयन और इसकी प्रक्रिया भी महत्वपूर्ण है.’
आमतौर पर गुरु अपने जीवन काल में ही बता देते हैं कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा. वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ल के अनुसार ‘गुरु अपने सबसे योग्य शिष्य को ही ये ज़िम्मेदारी देते हैं. दरअसल ये गुरु के विवेक से ही तय होता है. प्रायः ये देखा गया है कि गुरु अपने जीवन काल में ही अपने किसी योग्य शिष्य को इसके लिए तैयार करने लगते हैं. वो शिष्य गुरु के साथ हर जगह जाता है और समारोहों में भी शामिल होता है.’
अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं ‘धर्म के रास्ते का पालन करना स्वाभाविक रूप से ही कठिन होता है और वो भी इस परिस्थिति में जब गुरु का शरीर सामान्य रूप से शांत न हुआ हो. ऐसी परिस्थिति में ये उनके बाद महंत बनने वाले के लिए दोहरी चुनौती होती है.’य