भारतीय नौसेना जिसे दुनिया के सबसे सुरक्षित जल सेनाओं में माना जाता था, अपनी यह पदवी खो चुका है. सिंधुरक्षक के बाद सिंधुरत्न की घटना ने जैसे कि देश को हिला कर रख दिया. इनमें कई अफसरों-नौसैनिकों की जान चली गई और अरबों रुपये का नुकसान हुआ.
सिंधुरत्न भारतीय नौसेना की एक महत्वपूर्ण पनडुब्बी रही है और उसके अंदर के हिस्से में आग लगने की घटना बेहद चिंतनीय है. अगस्त 2013 में सिंधुरक्षक में विस्फोट होने से 18 नौसैनिक मारे गए और किलो क्लास की वह शानदार पनडुब्बी नष्ट हो गई. लेकिन इतना ही नहीं अगस्त से फरवरी तक कई छोटी-बड़ी दुर्घटनाओं से नौसेना का वास्ता पड़ा.
इसके बाद भी सुधार के लक्षण नहीं दिखाई दिए. इस बार की घटना के बाद नौसेना प्रमुख एडमिरल डीके जोशी ने इस्तीफा दे दिया जो वाजिब था लेकिन उसे स्वीकार करने में रक्षा मंत्री ने जो तेजी दिखाई उससे तो यही लगता है कि वह अपनी खाल बचाने के प्रयास में थे और विवाद आगे बढ़ने से पहले कोई फैसला कर लेना चाहते थे.
एडमिरल जोशी ने इस्तीफा देकर नौसैनिकों की उच्च परंपरा निभाई. भारतीय नौसेना का इतिहास बलिदानों का इतिहास है. वक्त गवाह है कि हमारे नौसैनिकों ने जान पर खेलकर अपने कर्तव्यों का पालन किया. एडमिरल जोशी ने उस परंपरा को आगे बढ़ाया. लेकिन बात यहां नहीं खत्म हो जाती है.
रक्षा मंत्री एके ऐंटनी ने नपा-तुला बयान देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली. कायदे से तो इस घटना के बाद उन्हें भी इस्तीफा दे देना चाहिए था. अगर हम ध्यान से देखें तो उनके कार्यकाल में कई ऐसी बातें और घटनाएं हुई हैं कि उनका पद पर रहना उनके उच्च आचरण के अनुरूप नहीं है. इस दौरान कितने विवाद हुए, कितनी बातें सामने आईं और उनके खुद के बयान ने उन्हें पचड़े में डाला. संसद में उन्होंने ही बयान दिया था कि भारतीय सीमा में पाकिस्तानी फौजी नहीं, बल्कि उनकी वर्दी में आतंकी घुस आए थे. बाद में सच सामने आने पर वह खामोश हो गए थे.
पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह ने उन्हें ट्रकों के सौदे में कमीशन की बात बताई तो वह चुप क्यों रहे या फिर अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे में किकबैक की बात सामने आने पर उन्होंने उसकी नैतिक जिम्मेदारी क्यों नहीं ली? रक्षा मंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने ऐसा क्या किया कि उन्हें याद रखा जाए? डिफेंस की कई बड़ी परियोजनाएं विलंब से चल रही हैं और सेना के आधुनिकीकरण का काम भी पूरा नहीं हो पाया है.
कुल मिलाकर हालात ऐसे हैं कि अपने रक्षा तंत्र पर हम पूरी तरह से गर्व नहीं कर सकते. ऐसे में रक्षा मंत्री इस्तीफा देकर देशवासियों के सामने एक अच्छा संदेश देते. लेकिन उन्होंने उसे गंवा दिया.