व्यभिचार यानी जारता (विवाहित महिला के पर पुरुष से संबंध) को लेकर भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की. इस दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने संकेत दिया कि इस मामले को सात जजों के संविधान पीठ में भेजा जा सकता है.
फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में इस मामले की सुनवाई कर रही है. इस धारा के तहत अगर किसी विवाहित महिला का पर पुरुष से संबंध हो और अपराध सिद्ध होने पर सिर्फ पुरुष को सजा मिलती है. ऐसे में याचिका कहती है कि फिर महिला को क्यों छूट मिली हुई है?
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि 157 साल पुराने कानून को चार जजों की पीठ ने 1954 में और पांच जजों की पीठ ने 1985 में पहले भी इस दलील के साथ बरकरार रखा है, कि इससे महिलाओं के साथ कोई भेदभाव नहीं हो रहा है. इसलिए इस पर समय और जमाने को देखते हुए पुनर्विचार की जरूरत महसूस होगी तो सात जजों की संविधान पीठ के गठन पर विचार किया जाएगा. इस मामले की सुनवाई के दौरान तो कोर्ट ने यहां तक टिप्पणी की कि क्या इस धारा को खत्म करना उचित रहेगा?
चीफ जस्टिस ने याचिकाकर्ता की इस दलील को माना कि सहमति से बनाए गए संबंधों के क्रिमिनल के साथ साथ सिविल नतीजे भी निकलते हैं. किसी अन्य व्यक्ति से यौन संबंध बनाना तलाक का भी आधार बनता है लेकिन ये धारा सिर्फ पुरुष पर लगती है महिला पर नहीं.
जारता यानी व्याभिचार को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के शुरुआती दौर में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर याचिका को खारिज करने की मांग की थी. केंद्र ने हलफनामे में कहा था कि याचिका के विभिन्न विंदुओं को चुनौती दी थी.
सरकार ने याचिका के हवाले से कहा कि इसमें साफ कहा गया कि ये कानून महिलाओं को सरक्षंण देता है, जो लिंग आधारित भेदभाव है. इस मुद्दे पर भारत का विधि आयोग भी विचार-विमर्श कर रहा है. सरकार ने ये भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 497 विवाह संस्था की रक्षा, सुरक्षा और सरंक्षण करती है. इस लिहाज से धारा 497 को रद्द करना अंतर्निहित भारतीय आचारों के लिए हानिकारक साबित होगा जो संस्था और विवाह की पवित्रता को सर्वोच्च महत्व देता है.
दरअसल IPC की धारा 497 के तहत व्याभिचार यानी Adultary के मामलों में क्या महिला के खिलाफ भी हो सकती कानूनी कार्रवाई? जनवरी में इस मामले को सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान पीठ को भेज दिया गया था.
कोर्ट ने कहा कि सामाजिक प्रगति, लैंगिक समानता, लैंगिक संवेदनशीलता को देखते हुए पहले के सुप्रीम कोर्ट के फैंसलों पर फिर से विचार करना होगा. ये देखना होगा कि ये सिर्फ लैंगिक भेदभाव को बढ़ावा देने वाला है या कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा 1954 में चार जजों की बेंच और 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं जिसमें IPC 497 महिलाओं से भेदभाव नहीं करता.
सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने IPC की धारा 497 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. कोर्ट ने कहा जब संविधान महिला और पुरूष दोनों को बराबर मानता है तो आपराधिक केसों में ये अलग क्यों? कोर्ट ने कहा कि जीवन के हर तौर तरीकों में महिलाओं को समान माना गया है, तो इस मामले में अलग से बर्ताव क्यों? जब अपराध को महिला और पुरुष दोनों की सहमति से किया गया हो तो महिला को सरंक्षण क्यों दिया गया? मामले की सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.
रेप मामले में पादरियों के संलिप्तता से SC खफा
फादर कहे जाने वाले चर्च के पादरियों के मासूम बच्चियों से रेप के मामले में संलिप्तता पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के दौरान स्तब्ध दिखा. देश की शीर्ष अदालत ने कहा कि यह सब स्तब्ध कर देने वाला है. सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह के मामले सामने आने से हम हैरान हैं और सकते में भी. केरल से आ रही ऐसी खबरें परेशान करने वाला ट्रेंड है क्योंकि एक के बाद एक ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां रेप के मामलों में चर्च के पादरियों के नाम शामिल है.
सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताते हुए कहा कि ये क्या हो रहा है कि सारे मामले केरल से आ रहे हैं. कोर्ट ने रॉबिन वादककुमचेरी के मामले के सुनवाई के दौरान ये टिप्पणी की.
इस मामले में एक नाबालिग लड़की ने बलात्कार के बाद एक बच्चे को जन्म दिया. इस मामले में रेप के आरोपी पादरी का दोस्त जो चाइल्ड वेलफेयर कमिटी का सदस्य भी रहा है और खुद भी एक पादरी है. आरोपी फादर यानी पादरी अपने ऊपर लगे आरोप को रद्द करने की याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट आए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा आरोप गंभीर हैं और आरोपियों को मुकदमें का सामना करना पड़ेगा.