पिछले दिनों विवादों में रहे आईटी एक्ट की धारा 66A पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला लिया है. कोर्ट ने अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन मानते हुए इस धारा को रद्द कर दिया है. सोशल मीडिया में कमेंट की वजह से दो छात्राओं की गिरफ्तारी के इस कानून को चुनौती दी गई थी. याचिकाकर्ताओं ने सरकार पर इस कानून के दुरुपयोग का इल्जाम लगाया था.
जस्टिस जे चेलामेश्वर और रोहिंटन नरीमन की बेंच ने इस एक्ट का सरकार द्वारा दुरुपयोग पर फैसला सुनाया है. इस मामले में याचिकाकर्ता एक एनजीओ, मानवाधिकार संगठन और एक कानून का छात्र है. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह कानून अभिव्यक्ति के उनके मूल अधिकार का उल्लंघन करता है.
हालांकि सरकार ने इस याचिका के विरोध में कहा है कि यह एक्ट वैसे लोगों के लिए है जो सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक चीजें पोस्ट कर शांति को खतरा पहुंचाना चाहते हैं. सरकार ने कोर्ट में इस एक्ट के बचाव में यह दलील दी है कि क्योंकि इंटरनेट की पहुंच अब बहुत व्यापक हो चुकी है इसलिए इस माध्यम पर टीवी और प्रिंट माध्यम के मुकाबले ज्यादा नियमन होना चाहिए.
सरकार ने तर्क दिया है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की तरह यह किसी संगठन से संचालित नहीं होता. ऐसे में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए इस एक्ट का होना जरूरी है. सरकार का कहना है कि सिर्फ दुरुपयोग के डर से इस कानून को खत्म नहीं किया जा सकता है. भारत जैसे देश में इंटरनेट के माध्यम से धार्मिक भावनाएं भड़काई जा सकती हैं ऐसा करने वाले लोगों के मन में डर बना रहना जरूरी है.