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ये है SC में चल रहे हाई वोल्टेज मेडिकल घोटाले की इनसाइड स्टोरी

चीफ जस्टिस के कैवीट के बावजूद मेडिकल कॉलेज ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में अपील कर दी. लखनऊ खंडपीठ के एक जज ने चीफ जस्टिस द्वारा जारी कैवीट के बावजूद मेडिकल कॉलेज को स्टूडेंट्स को प्रवेश देने की इजाजत दे दी.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

न्याय व्यवस्था में भ्रष्टाचार को लेकर एक बेहद अहम मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में एक दिन पहले नाटकीय घटनाक्रम देखने को मिला. वास्तव में यह मामला इंडिया टुडे द्वारा किए गए एक स्टिंग के साथ शुरू हुआ.

इंडिया टुडे द्वारा इसी साल 3 अगस्त को प्रसारित किए गए इस स्टिंग ऑपरेशन के जरिए खुलासा हुआ कि कैसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवेश लेने से प्रतिबंधित कर दिए गए मेडिकल कॉलेज पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर न होने के बावजूद मेडिकल स्टूडेंट्स को दाखिला दे रहे हैं.

ठीक इसी समय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इन मेडिकल कॉलेजों की सुनवाई की. इस सुनवाई में शामिल कुछ मेडिकल कॉलेज इंडिया टुडे के स्टिंग के घेरे में भी थे.

लेकिन इसके बाद मामले को लटकाने की कोशिशें की गईं और अंततः मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ के पास, जिसमें याचिकाकर्ता का पक्ष प्रख्यात वकील प्रशांत भूषण रख रहे हैं.

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स्टिंग से खुलासे के बाद CBI ने एक नामी टीवी पत्रकार के पड़ोसी के घर पर छापेमारी की. छापेमारी के दौरान पत्रकार महोदय घर में घुस गए. इन पत्रकार महोदय के कुछ मेडिकल कॉलेजों और स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के बीच मध्यस्थ होने की बात भी सामने आई.

आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज

मामले में दर्ज की गई FIR में इन पत्रकार का नाम तो नहीं था, लेकिन उन्हें अपनी नौकरी से हाथ जरूर धोना पड़ा. FIR में स्वास्थ्य मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों को नामदर्ज किया गया. सत्ता में बैठे कुछ ताकतवर लोगों, बिचौलियों और मेडिकल कॉलेज के मालिकों के बीच हुई बातचीत टेप किए गए, जिसके जरिए मामले में कुछ नेताओं के शामिल होने का संदेह भी उपजा.

सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल एक राज्यमंत्री को वित्तीय अनियमितता के आरोपों के चलते पद से हटा दिया गया. हालांकि CBI ने बाद में इन मंत्री के खिलाफ किसी तरह का सबूत होने से इनकार कर दिया.

लेकिन मामले ने करीब एक महीने नया मोड़ लिया और न्यायिक अराजकता उजागर हुई. एक मेडिकल कॉलेज ने मामले की सुनवाई कर रही पीठ से मामला वापस लेने की अपील की. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने सहमति भी दे दी, लेकिन एक शर्त के साथ कि मेडिकल कॉलेज शिक्षा सत्र 2017-18 में मेडिकल स्टूडेंट्स को प्रवेश देने की किसी अन्य अदालत से इजाजत नहीं मांगेंगे.

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लखनऊ हाई कोर्ट के जज ने मेडिकल कॉलेज को दे दी एडमिशन की इजाजत

चीफ जस्टिस के कैवीट के बावजूद मेडिकल कॉलेज ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में अपील कर दी. लखनऊ खंडपीठ के एक जज ने चीफ जस्टिस द्वारा जारी कैवीट के बावजूद मेडिकल कॉलेज को स्टूडेंट्स को प्रवेश देने की इजाजत दे दी. CBI सूत्रों का दावा है कि मेडिकल कॉलेज को रिश्वत लेकर प्रवेश की इजाजत दी गई. हालांकि CBI अधिकारियों ने यह बताने से इनकार कर दिया कि इजाजत देने वाले लखनऊ खंडपीठ के जज के खिलाफ छापेमारी की इजाजत चीफ जस्टिस से ली गई थी या चीफ जस्टिस ने इजाजत देने से इनकार कर दिया था. CBI ने यह भी नहीं बताया कि उक्त जज के खिलाफ वास्तव में PE दाखिल किया गया. लेकिन एक चीज यह हुई कि इजाजत देने वाले जज का लखनऊ से इलाहाबाद तबादला कर दिया गया.

CBI ने इसके बाद मेडिकल कॉलेज प्रबंधकों को सुप्रीम कोर्ट से मनचाहा फैसला हासिल करने का आश्वासन देने वाले ओडिशा हाई कोर्ट के एक सेवानिवृत्त जज के यहां छापेमारी की. सूत्रों के मुताबिक जज ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अपने उच्च पदस्थ संपर्क सूत्रों का इस्तेमाल करने की कोशिश की.

वहीं मामले से जुड़े वकील प्रशांत भूषण का कहना है कि अगर CBI के पास सबूत हैं तो मेडिकल कॉलेज को सुप्रीम कोर्ट से अपनी याचिका वापस क्यों लेनी पड़ी.

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CBI ने विरोध क्यों नहीं किया?

अगर इस मामले की सुनवाई सार्वजनिक तौर पर होती है तो CBI को भी कई सवालों के जवाब देने होंगे. सवाल यह है कि अगर सीबीआई के पास जज के खिलाफ पक्के सबूत थे तो उसने निचली अदालत द्वारा उन्हें जमानत दिए जाने का विरोध क्यों नहीं किया. इसमें भी रोचक बात यह है कि आरोपी न्यायाधीश के साथ गिरफ्तार किए गए सह-आरोपियों को जमानत नहीं दी गई.

सुप्रीम कोर्ट ने जहां जस्टिस जे चेलामेश्वर की पीठ को मामले की सुनवाई के अयोग्य करार देते हुए फटकार लगाई, वहीं एक निचली अदालत द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना करते हुए मेडिकल कॉलेज को एडमिशन की इजाजत दे देना, न्यायिक अराजकता को दर्शाता है.

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