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कुचिपुड़ी नृत्यांगना शालू जिन्दल की कृष्णलीला

कला साधना की तरह है. उसमें यह मायने नहीं रखता है कि आप कौन हैं. ऐसा ही शालू जिंदल के बारे में भी कह सकते हैं. उन्होंने कुचिपुड़ी को हिंदी गीत-संगीत में ढालकर पूरे उत्तर भारत में लोकप्रिय बनाने की पहल की है.

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कला साधना की तरह है और उसमें पारंगत होने के लिए आपको जी-तोड़ मेहनत करनी ही पड़ती है. ऐसा ही शालू जिंदल के बारे में भी कह सकते हैं. उन्होंने कुचिपुड़ी को हिंदी गीत-संगीत में ढालकर पूरे उत्तर भारत में लोकप्रिय बनाने की पहल की है.

अपनी इसी पहल के तहत वे एक नवंबर को दिल्ली के कमानी ऑडिटोरियम में प्रस्तुति देंगी. शालू पद्म भूषण राजा रेड्डी और पद्म भूषण राधा रेड्डी से कुचिपुड़ी नृत्य की बारिकीयां सीख रही हैं.

उन्होंने कृष्णलीला को नए अंदाज में पेश करने का बीड़ा उठाया है. कुचिपुड़ी के माध्यम से भगवान वेंकटेश की आराधना, मीराबाई के भजन मेरे सांसों की माला और हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला भी प्रस्तुति भी इस कार्यक्रम के दौरान करेंगी.

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