नोबेल पुरस्कार विजेता रबींद्रनाथ टैगोर की मौत के बारे में कम ही लोगों को जानकारी है. अब रबींद्र भारती यूनिवर्सिटी ने फैसला किया है कि 1941 में टैगोर की मृत्यु से जुड़ी घटनाओं की पड़ताल की जाए.
यही यूनिवर्सिटी टैगोर के पैतृक घर की देखभाल करती है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक, जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी म्यूजियम में वो कमरा है, जहां टैगोर ने अंतिम सांसें ली थीं, लेकिन इस म्यूजियम में टैगोर के आखिरी दिनों की कोई रिकॉर्डिंग नहीं है. यहां आने वाले लोगों को टैगोर की बीमारी के बारे में भी नहीं बताया जाता.
रवींद्र भारती यूनिवर्सिटी के चांसलर सब्यासाची बसु रॉय ने कहा कि अब समय बदल चुका है और इसलिए हमने मिथक दूर करने के बारे में सोचा. उन्होंने कहा, 'लोगों को नहीं पता कि टैगोर की मृत्यु कैसे हुई. सच्चाई यह है कि उनके कमरे के बाहर के बरामदे को उनकी आखिरी सर्जरी के लिए ऑपरेशन थिएटर के तौर पर बदला गया था.
आयुर्वेदिक इलाज की जिद पर अड़े थे टैगोर
रॉय ने बताया कि ज्यादातर लोग यह नहीं जानते कि टैगोर प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे. 15 सितंबर, 1940 को टैगोर ने अचानक पेट में तेज दर्द की शिकायत की थी. जांच में पता चला था कि उनके यूरिनरी ब्लैडर में
बहुत ज्यादा इंफेक्शन है. वे यूरिन भी पास नहीं कर पा रहे थे. उन्हें वापस जोड़ासांको ले जाया गया था. टैगौर आयुर्वेदिक इलाज ही जारी रखने की जिद पर अड़े थे, लेकिन बाकी लोगों ने तय किया उन्हें साथ में
एलापैथिक ट्रीटमेंट भी दिया जाए. उन्हें सर्जरी की सलाह भी दी गई थी, लेकिन उन्होंने ऑपरेशन कराने से इनकार कर दिया था.
टैगोर की सर्जरी हुई थी
कई बड़े डॉक्टरों ने टैगोर का इलाज करने वाले मेडिकल एक्सपर्ट्स के मेडिकल पेपर्स और ऑब्जर्वेशन का अवलोकन किया. यूरोलॉजिस्ट अमित घोष ने बताया कि हालत बिगड़ने पर टैगोर का ऑपरेशन किया गया था.
डॉक्टर ने बड़े प्रोस्टेट को ऑपरेट तो नहीं किया था, लेकिन जमा हुआ यूरिन निकालने के लिए बाइपास सर्जरी की थी.