ओडिशा-बंगाल बॉर्डर पर तकरीबन 100 परिवार फंसे हैं, जो लॉकडाउन के कारण अपने घरों को नहीं जा पा रहे हैं. इनमें कई मरीज भी हैं, जो इलाज करा कर लौट रहे हैं लेकिन कोरोना ने उनका रास्ता रोक रखा है. एक ऐसी ही कहानी 35 साल की अरेसा बीवी की है, जिनका 18 साल का भतीजा किडनी का मरीज है. अब दोनों बॉर्डर पर फंसे हैं. अरेसा बीवी बंगाल के पूर्वी मिदनापुर की रहने वाली हैं.
अरेसा बीवी अपने 18 साल के भतीजे का इलाज कराने वेलोर गई थीं. वापस अपने घर तक पहुंचने के लिए उन्होंने एंबुलेंस जैसी सुविधाओं पर 1 लाख रुपये तक खर्च कर दिए हैं लेकिन घर नहीं पहुंच पाई हैं. वे ओडिशा-बंगाल बॉर्डर तक पहुंच गई हैं, जहां उन्हें लॉकडाउन खुलने का इंतजार है. अरेसा की तरह कई ऐसे लोग हैं, जो दक्षिण भारत के राज्यों से बंगाल के लिए निकले थे मगर अब बॉर्डर पर बने टेंट ही उनका आसरा हो गए हैं. हालांकि गंभीर बीमारी से ग्रसित लोगों की मदद में जिला पुलिस के अधिकारी आगे आए हैं. ऐसे लोगों को स्थानीय लॉज में शरण दी गई है.
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अपनी परेशानी बयां करते हुए अरेसा बीवी ने 'इंडिया टुडे' से कहा, हम वेलोर में एक महीने से ज्यादा वक्त तक रुके. वहां रहना वाकई काफी महंगा है. हम अपने होटल से नहीं निकले, इसलिए कोरोना के संक्रमण से बच गए. घर पहुंचने के लिए हमने एंबुलेंस ली, जिसके लिए हमें 70 हजार से 1-1.5 लाख रुपये तक चुकाने पड़े. एंबुलेंस तीन राज्यों को पार कर बॉर्डर तक पहुंच गई लेकिन अब अपने ही प्रदेश में घुसने की इजाजत नहीं मिल रही. राज्य के अधिकारियों ने डीएम के पास को रद्द कर दिया है. पुलिस का कहना है कि हमारे पास कोई वैध परमिट नहीं है, लिहाजा हम घर नहीं जा सकते.
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अरेसा बीवी की तरह कई लोग हैं, जो बंगाल सरकार के रवैये से नाराज हैं. ऐसे लोगों के स्वाब सैंपल लेने के बाद खड़गपुर आईआईटी हॉस्टल में रख दिया गया है. टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर लोगों को वहां से निकाला जा रहा है. कुछ गंभीर बीमारियों के मरीज भी हैं, जिन्हें बारी-बारी से छोड़ा जा रहा है. कैंसर मरीजों को पहले छोड़ा जा रहा है. यहां फंसे एक अन्य व्यक्ति पीजूष घोष ने कहा कि हॉस्टल में 3 टॉयलेट हैं और रहने वाले 300 लोग, ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कैसे होगा. अगर इसमें कोई कोविड पॉजिटिव होगा तो वह सबको फैलाएगा.
पुलिस-प्रशासन आईआईटी हॉस्टल में लोगों के टेस्ट कराता है और रिपोर्ट नेगेटिव आने पर ही लोगों को घर भेजा जाता है. ऐसे में कई-कई दिन लग रहे हैं और लोग मजबूरी में बॉर्डर पर फंसे हुए हैं. दूसरी ओर पश्चिमी मिदनापुर के चीफ मेडिकल अफसर डॉ. गिरीश चंद्र बेरा का कहना है कि वैसे ही लोगों को आने की इजाजत दी जा रही है, जिनका टेस्ट हो जाता है. टेस्ट में जो लोग नेगेटिव आएंगे उन्हें बस से उनके जिले में भेज दिया जाएगा क्योंकि बंगाल में एंबुलेंस की अनुमति नहीं है.