‘आयुष्मान भारत’...वो प्रोजेक्ट जिसे ‘मोदीकेयर’ के तौर पर सराहा गया और दुनिया के सबसे बड़े हेल्थ प्रोजेक्ट की तरह प्रोजेक्ट किया गया. लेकिन लगता है कि ये प्रोजेक्ट भी लालच के संक्रमण से ग्रस्त हो गया है. इंडिया टुडे की जांच से सामने आया है कि प्रोजेक्ट के पैनल में शामिल कुछ अस्पताल योजना के हक़दार मरीज़ों का इलाज करने से इनकार कर रहे हैं.
कमजोर वर्गों के लिए गेम-चेंजर कहे जा रहे ‘आयुष्मान भारत’ प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते साल सितंबर में लॉन्च किया था. लक्ष्य 50 करोड़ लोगों तक इसका लाभ पहुंचाना था.
हेल्थकेयर में गेम-चेंजर
इंडिया टुडे की स्पेशल इंवेस्टीगेशन टीम (SIT) ने अपनी जांच में पाया कि ज़मीनी स्तर पर कैसे कुछ अस्पताल प्रोजेक्ट की अनदेखी कर रहे हैं और हक़दार लोगों को स्वास्थ्य सुरक्षा से वंचित रखा जा रहा है.
बता दें कि ‘आयुष्मान भारत’ के तहत अभी तक 16,000 अस्पतालों को जोड़ा गया है. जांच से सामने आया कि पैनल में शामिल कुछ अस्पताल आयुष्मान मरीजों के इलाज से बच रहे हैं.
प्रोजेक्ट के लक्षित 50 करोड़ लाभार्थियों में से अभी तक 40 लाख को पीएम के फ्लैगशिप हेल्थ प्रोजेक्ट से जोड़ा भी जा चुका है.
कैशलैस और पेपरलैस इस योजना में प्रति परिवार पांच लाख रुपए का सालाना कवर देने का वादा किया गया है. परिवार के सदस्य कितने है, ऐसी कोई बाध्यता योजना में नहीं है. योजना के तहत इलाज में सर्जरी, दैनिक देखभाल, दवाइयां, टेस्ट और ट्रांसपोर्ट का खर्च कवर किए जाते हैं.
पैनल में शामिल अस्पताल कर रहे हैं मोदीकेयर की अनदेखी
इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टरों ने गरीब टाइफाइड मरीज के तीमारदार बनकर हरियाणा के पलवल में स्थित गोल्डन हॉस्पिटल से संपर्क साधा. लेकिन इस अस्पताल की ओर से इलाज करने से मना कर दिया गया.
आयुष्मान भारत प्रोजेक्ट के ऑनलाइन पोर्टल पर गोल्डन हॉस्पिटल का नाम भी शामिल है. गोल्डन हॉस्पिटल के मेडिकल हेड डॉ अंशुमान दास ने आयुष्मान के तहत टाइफाइड का इलाज शामिल होने से इनकार किया.
अंडर कवर रिपोर्टर- क्या आप आयुष्मान भारत के पैनल पर हैं.
डॉ. दास- हां
रिपोर्टर- हम अपनी हाउसमेड को अस्पताल में भर्ती कराना चाहते हैं. वो टाइफाइड से पीड़ित है.
डॉ. दास- टाइफाइड कवर नहीं है. टाइफाइड सूची में शामिल नहीं है. ना ही मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, आंतों का टाइफाइड.
ज़ाहिर है डॉक्टर की ओर से पूरी तस्वीर साफ नहीं की जा रही थी.
मोदीकेयर पोर्टल क्या कहता है?
आयुष्मान भारत की वेबसाइट पर इस कार्यक्रम से जुड़ी सारी छोटी-बड़ी जानकारियां उपलब्ध हैं. हर राज्य में कौन कौन से अस्पताल पैनल पर हैं और कौन कौन सी बीमारियों के इलाज को वो कवर करते हैं.
अस्पतालों के नाम के सामने तय सुविधाओं के साथ निर्धारित इलाज के विशिष्ट कोड भी दिए गए हैं जो कि लाभार्थियों को उनकी तरफ से उपलब्ध कराया जाना है. मिसाल के तौर M1 कोड आम दवाओं के लिए और M6 कोड रेडिएशन ऑन्कोलॉजी के लिए दिया गया है.
पोर्टल के एक और वेबपेज पर स्पेशिएलिटी इलाज की विस्तारित सूची है. जब इसे क्लिक किया जाता है तो एक्सेल शीट खुलती है. इसमें कार्यक्रम के तहत कवर मेडिकल स्थितियों और बीमारियों का जिक्र है.
डॉक्टर: भारतीय मुफ्त सुविधाएं चाहते हैं
जब इंडिया टुडे की टीम ने पोर्टल को खंगाला तो पाया कि गोल्डन हॉस्पिटल के लिए आयुष्मान पैकेज के तहत एंटेरिक फीवर (टाइफाइड की एक किस्म) का इलाज करना भी निर्धारित है.
लेकिन इस हॉस्पिटल के मेडिकल हेड ने योजना को निरर्थक मुफ्त का तोहफा (फ्रीबी) बताया.
डॉ. दास ने कहा- ‘बड़ी समस्या हमारे देश में ये है कि अगर मुफ्त में ज़हर भी बांटा जाए तो लोग उसके लिए भी कतार लगा लेते हैं. क्या आयुष्मान नहीं होता तो तुम्हारी मेड का इलाज नहीं होता’
इसके बाद इंडिया टुडे की जांच टीम पलवल के सरकारी अस्पताल में आयुष्मान के जिला सूचना प्रबंधक जितेंद्र से मिली. जितेंद्र ने भी योजना के तहत अस्पताल में भर्ती करने से इनकार कर दिया.
जितेंद्र ने दावा किया, मैं मरीज को आयुष्मान के तहत यहां भर्ती नहीं कर पाऊंगा. मैं सिर्फ उसे दवाइयां देने के बाद कहीं ओर रेफर कर सकता हूं.
आयुष्मान अधिकारी ने लगाया भुगतान के मुद्दों का आरोप
जितेंद्र ने गोल्डन हॉस्पिटल की ओर से आयुष्मान मरीजों का इलाज करने से इनकार को भी वाजिब ठहराने की कोशिश की . जितेंद्र के मुताबिक इस हॉस्पिटल को पुराने मामलों में पुनर्भुगतान (रीइम्बर्समेंट) नहीं मिला.
जितेंद्र ने कहा, ‘यहां समस्या है. आपके मामले में वो (गोल्डन हॉस्पिटल) को मरीज पर 1,800 रुपए खर्च करने पड़ते. जो कि वो बचाता उससे ज्यादा हैं. इस अस्पताल को पुराने बकाया जो कि 10,800, 14,400 और 16,200 की रेंज में हैं, अभी मिलने बाकी हैं. कोई कैसे इन बकाया की अनदेखी कर सकता है. मरीजों को पहले ही अस्पतालों से छुट्टी मिल चुकी है.’
इंडिया टुडे SIT ने इसके बाद उत्तर प्रदेश का रुख किया.
बुलंदशहर के राना अस्पताल में अंडरकवर रिपोर्टर्स आयुष्मान भारत के प्रभारी जितेंद्र से मिले.
रिपोर्टर- क्या आप आयुष्मान के तहत मरीजों को भर्ती करते हैं.
जितेंद्र- हां, हम करते हैं.
लेकिन जब टाइफाइड मरीज का पता चला तो जितेंद्र ने पीएम योजना के तहत भर्ती करने से इनकार कर दिया.
जितेंद्र- ‘टाइफाइड? हमारे पास आयुष्मान के तहत 1400 कोड हैं लेकिन उसमें टाइफाइड शामिल नहीं है. ये कोड सिर्फ सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध है.’
अंडर कवर रिपोर्टर- मरीज गंभीर है.
जितेंद्र- ‘अगर ये कोड के तहत निर्धारित होता तो हम इलाज कर देते. आप मरीज को ओपीडी में दिखा सकते हैं. लेकिन वहां पैसे देने होंगे.’
जब इंडिया टुडे ने आयुष्मान के पोर्टल को दोबारा देखा, तो राना हॉस्पिटल को भी जनरल मेडिसिन की श्रेणी के तहत टाइफाइड का इलाज देना निर्धारित पाया.
गाज़ियाबाद के शिवम हॉस्पिटल एंड हार्ट सेंटर ने भी ऐसे ही इलाज करने से मना कर दिया जबकि वो भी आयुष्मान के पैनल पर हैं. अंडर कवर रिपोर्टर ने इस हॉस्पिटल से ब्रोंकाइटिस के मरीज के इलाज की बात की थी. इस हॉस्पिटल के डॉक्टर मुकेश शर्मा ने इलाज के लिए किसी और अस्पताल के नाम का सुझाव दिया. SIT ने पाया कि आयुष्मान के पोर्टल पर ये अस्पताल ब्रोंकाइटिस के इलाज के लिए निर्धारित है.
अंडर कवर रिपोर्टर- मेरी हाउसमेड को ब्रोंकाइटिस से ग्रस्त बताया गया है. वो आयुष्मान के तहत अस्पताल में भर्ती होना चाहती है.
डॉक्टर- ये हमारे पैनल में सूचीबद्ध नहीं है. आप उसे मोहननगर या किसी और अस्पताल में ले जाएं. हमारे यहां जनरल मेडिसिन, ऑर्थोपेडिक, गाइनेकोलॉजी के इलाज उपलब्ध हैं. हम कुल चार स्थितियों को कवर करते हैं. हम फेफड़ों की बीमारी का इलाज नहीं करते.’ ये जो भी कहा गया वो आयुष्मान पोर्टल पर जो कहा गया उससे ठीक उल्टा था.
आयुष्मान चीफ ने कार्रवाई का दिया भरोसा
आयुष्मान भारत के सीईओ डॉ इंदु भूषण से जब इंडिया टुडे ने संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि जिन मरीजों को पैनलबद्ध अस्पताल इलाज से मना करते हैं तो उन्हें उसकी शिकायत दर्ज करानी चाहिए.
डॉ भूषण ने कहा, ‘हर दिन 25,000 लोग लाभान्वित होते हैं. मैं समझ सकता हूं कि कुछ अस्पतालों की ओर से इलाज के लिए मना किया जा सकता है. हो सकता है कि उनके पास उस वक्त वो सुविधाएं नहीं हों. लेकिन हमारा टोल फ्री नंबर है-14555. हम मरीज को इलाज के लिए आश्वस्त करते हैं, अगर हमें ऐसी कोई शिकायत मिलती है. हम लाइव डैशबोर्ड पर चीज़ों को मॉनीटर करते हैं.’