हथियार डालने से मना करते हुए प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) ने कहा है कि वह झारखंड सरकार से बात करने के लिए तैयार है, लेकिन इसके पूर्व उस पर लगा प्रतिबंध हटाया जाए और उसके कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाए.
संगठन के स्वयंभू प्रवक्ता गोपालजी ने एक विज्ञप्ति में कहा, ‘‘फर्जी मुठभेड़ बंद करें और ऐसी मुठभेड़ों के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों को पकड़ा जाए. पीड़ितों को मुआवजा मिले और गांवों से अर्धसैनिक बल हटें.’’ विज्ञप्ति में माओवादी पोलित ब्यूरो के सदस्य सुशील राय, शीला, अमिताभ बागजी समेत अन्य सभी को रिहा करने की भी मांग की गई.
शिबू सोरेन ने 30 दिसंबर को तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की कमान संभालते ही माओवादियों को हिंसा छोड़ने और वार्ता के लिए आगे आने को कहा था. सोरेन के प्रस्ताव की गंभीरता पर प्रश्न उठाते हुए विज्ञप्ति में कहा गया है, ‘‘क्या सोरेन अपनी सहयोगी बीजेपी और केंद्र द्वारा हमारे खिलाफ अभियान छेड़ने के दबाव को सह पाएंगे?’’ इसमें कहा गया है कि सोरेन और गृह सचिव ने कहा कि माओवादियों के खिलाफ अभियान जारी रहेगा और साथ ही वार्ता का प्रस्ताव भी दिया.
विज्ञप्ति के मुताबिक ‘‘इसका मतलब है कि सरकार बंदूक की संभावना के साथ वार्ता की पेशकश कर रही है.’’ मुख्यमंत्री की केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम के साथ 28 जनवरी को हुई बैठक का संदर्भ देते हुए विज्ञप्ति में दावा किया गया है कि सोरेन पर माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज करने का दबाव है. गोपालजी ने मांग की कि जिंदल स्टील, आर्सेलर मित्तल और टाटा स्टील के साथ हस्ताक्षर किए गए सहमति पत्रों को या तो निरस्त किया जाए या फिर उनकी समीक्षा की जाए.
प्रवक्ता ने अन्य नक्सल संगठनों, ‘तृतीय प्रस्तुति समिति’ और ‘झारखंड प्रस्तुति समिति’ के खिलाफ कार्रवाई और ग्राम रक्षा बलों को खत्म करने की भी मांग की. माओवादियों का यह प्रस्ताव मुख्यमंत्री की 9 फरवरी को चिदंबरम के साथ कोलकाता में होने वाली बैठक के पूर्व आया है.