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विपक्ष का नेता न सही भाजपा का सारथी मैं ही: आडवाणी

विपक्ष के नेता पद से मुक्त होने और संसदीय दल का अध्यक्ष बनाये जाने के साथ ही लालकृष्ण आडवाणी ने शुक्रवार को ऐलान किया कि ‘‘ये न समझें कि आडवाणी युग का अंत हो गया है.’’

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विपक्ष के नेता पद से मुक्त होने और संसदीय दल का अध्यक्ष बनाये जाने के साथ ही लालकृष्ण आडवाणी ने शुक्रवार को ऐलान किया कि ‘‘ये न समझें कि आडवाणी युग का अंत हो गया है.’’ उन्होंने राजनीतिक सक्रियता के साथ ही भाजपा के सारथी बने रहने का इरादा साफ कर दिया.

भारतीय जनता पार्टी के संसदीय दल ने अपने संविधान में संशोधन कर आडवाणी को संसदीय दल का चेयरमैन (अध्यक्ष) सर्वसम्मति से निर्वाचित किया. अध्यक्ष की हैसियत से आडवाणी ने अपने पहले फैसले में सुषमा स्वराज को लोकसभा और अरुण जेटली को राज्यसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया. इन नियुक्तियों के साथ ही नववर्ष में भाजपा को नये नेतृत्व की ओर ले जाने की कवायद शुरू हो गयी. शनिवार को होने वाली भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक में राजनाथ सिंह अपना अध्यक्षीय ताज महाराष्ट्र के प्रदेश अध्यक्ष नितिन गडकरी को पहनाने जा रहे हैं. इस तरह से तीनों प्रभावी पदों पर अपेक्षाकृत युवा नेतृत्व (60 से नीचे) आसीन हो जाएंगे. लोकसभा के पिछले चुनाव में हार के बाद पार्टी में जारी कलह के इस परिवर्तन के साथ पटाक्षेप की उम्मीदें संघ परिवार कर रहा है. इस बदलाव की रूपरेखा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने बनायी थी.

अलबत्ता आडवाणी के राजनीति के हाशिये में पहुंच जाने की अटकलें सच नहीं बन पायीं. यह माना जा रहा था कि आडवाणी राजनीति से संन्यास ले लेंगे, इन सबका उन्होंने अपने ही शब्दों में खंडन करते हुए कहा, ‘‘आज अखबारों में ऐसी सुखिर्यां देखीं कि ‘आडवाणी युग का आज अंत’ या ‘रथयात्री आज रथ से उतर जाएगा’. लेकिन अगर वे समझते हैं कि आडवाणी सक्रियता छोड़ देंगे या आडवाणी राजनीति छोड़ देंगे तो वे सब गलत हैं.’’ आडवाणी ने कहा कि वह 14 साल की आयु से ही रथयात्री बन गये थे और ‘‘अगर कोई ये कहेगा कि आडवाणी रथ से उतर गये तो मैं उसे (रथ) छोड़ने वाला नहीं. जीवन भर चलेगी मेरी रथयात्रा.’’

पाकिस्तान यात्रा के दौरान 2005 में जिन्ना के बारे में टिप्पणी के कारण संघ परिवार के सबसे करीबी से किरकिरी बने आडवाणी तमाम उतार चढ़ाव के बावजूद अपना राजनीतिक वजूद बचाये रखने में सक्षम साबित हुए. उन्होंने कहा कि भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष के रूप में ‘‘मेरे जीवन और मेरी राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हुआ है.’’ उन्होंने कहा कि नेता विपक्ष का पदभार छोड़ने पर वह राहत और पूर्ण संतुष्टि का अहसास कर रहे हैं. राहत इसलिए कि सक्रिय राजनीति में रहने के बावजूद अब जवाबदेही उनकी नहीं रहेगी. संघ से अपने रिश्तों को याद करते हुए भाजपा नेता ने कहा कि अगर वह राजस्थान के प्रचारक के रूप में सक्रिय नहीं होते तो शायद आज राजनीति में नहीं होते.

उन्होंने आज की पीढ़ी के राजनीतिकों पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, ‘‘आज राजनीति में आने वाले राजनीति को ऐसा कार्य मानते हैं, जिससे धन कमाया जा सके. ताकत बनायी जा सके और प्रभाव बनाया जा सके.’’ उन्होंने कहा, लेकिन यह मानसिकता ‘व्यक्तिगत एजेंडा’ है जबकि आजादी की लड़ाई के समय राजनीतिकों का ऐसा व्यक्तिगत एजेंडा नहीं हुआ करता था. साथ ही उन्होंने स्वीकार किया, ‘‘पर बहुत मुश्किल है ये.’’ आडवाणी ने कहा कि भाजपा में व्यक्तिगत एजेंडा जितना कम होगा, पार्टी उतनी अधिक भारत की सेवा कर सकेगी. उन्होंने पदों के लिए आपसी खींचतान पर परोक्ष टिप्पणी करते हुए कहा कि राजनीति में आज रेलवे कंपार्टमेंट की मानसिकता बन गयी है. साथ ही कहा कि रेल के डिब्बे में जितने लोग चढ़ जाते हैं, वे चाहते हैं कि बाकी लोग उसमें न घुसने पायें, भले ही उसमें सीटें खाली क्यों न हों.

आडवाणी ने पार्टी को आगाह किया कि ऐसी प्रवृत्ति से बचें. परिवर्तन के इस प्रहर में भी आडवाणी का ‘मोदी प्रेम’ एक बार फिर मुखर हुआ. उन्होंने कहा कि शुक्रवार सुबह ही उनकी मोदी से बात हुई है. उन्होंने गुजरात सरकार द्वारा स्थानीय निकायों में अनिवार्य मतदान किये जाने संबंधी कानून बनाये जाने की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि वह 1970 से आज तक चुनाव सुधारों के बारे में अकसर सोचा करते हैं. गुजरात के इस कानून को उन्होंने अच्छा कानून बताया. भाजपा संसदीय दल का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने सुषमा को लोकसभा और जेटली को राज्यसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त करने की घोषणा करने के साथ ही कहा कि दोनों सदनों में उपनेताओं और मुख्य सचेतकों के बारे में वह बाद में निर्णय करेंगे. बाद में सुषमा ने विपक्ष का नेता नियुक्त किये जाने के लिए आडवाणी का आभार प्रकट किया.

सुषमा ने कहा कि नेता विपक्ष बनाये जाने का प्रस्ताव आने पर उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि ऐसी कोई व्यवस्था बने, जिसमें आडवाणी का मार्गदर्शन बना रहे, तभी वह इसे स्वीकार करेंगी. सुषमा ने कहा कि उन्हें खुशी है कि पार्टी के विधान में संशोधन कर आडवाणी को संसदीय दल का अध्यक्ष निर्वाचित कर ऐसी व्यवस्था बनायी गयी. उन्होंने कहा, ‘‘पदों का परिवर्तन जरूर हुआ है लेकिन व्यवस्था पहले जैसी ही चलती रहेगी. आडवाणी जी की छत्रछाया में मैं और जेटली पहले की तरह काम करते रहेंगे.’’

जेटली ने कहा कि वह आडवाणी की इस टिप्पणी से इत्तेफाक नहीं रखते कि अब वह जिम्मेदारी नहीं होने से राहत का अनुभव कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी मौजूदगी हमारे बीच बनी रहेगी और इससे हमें निर्णय लेने में आसानी होगी. इससे पहले बैठक शुरू होने पर अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने पार्टी के विधान 6 (ए) 1-2 में संशोधन कर आडवाणी को संसदीय दल का अध्यक्ष निर्वाचित करने का रास्ता साफ कर दिया. उनके इस प्रस्ताव को बैठक में सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी गयी. इस संशोधन के साथ ही भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष को संसद के दोनों सदनों के विपक्ष के नेता, उपनेता और मुख्य सचेतक चुनने का अधिकार होगा. पार्टी के वरिष्ठ नेता एम वेंकैया नायडू ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन और गोपीनाथ मुंडे ने समर्थन किया. बाद में आडवाणी को अध्यक्ष बनाये जाने के प्रस्ताव का यशवंत सिन्हा ने अनुमोदन और एस एस अहलूवालिया ने समर्थन किया.

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