सारदा चिटफंड घोटाले के साये में हो रहा हावड़ा लोकसभा उपचुनाव जहां ममता बनर्जी सरकार की लोकप्रियता की अग्निपरीक्षा साबित होगा, वहीं कांग्रेस तथा मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी वर्ष 2014 के आम चुनावों से पूर्व पश्चिम बंगाल में अपना आधार मजबूत करने का प्रयास करेंगे.
तृणमूल कांग्रेस ने दो जून को होने वाले इस उपचुनाव में भारत के पूर्व फुटबाल कप्तान प्रसून बनर्जी को चुनावी मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस ने वकील सनातन मुखर्जी और बीजेपी ने हावड़ा के पूर्व जिला सचिव दीप भट्टाचार्य को टिकट दिया है.
पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह के निर्देश पर भाजपा उपचुनाव में भाग नहीं ले रही है. उपचुनाव में जीत दर्ज करने वाले का इस साल जुलाई में तीन चरणों में होने जा रहे पंचायत चुनाव में भी दबदबा रहने की संभावना है.
वर्ष 1999 में जब तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, तब तृणमूल ने इस सीट पर 6535 मतों या 0.64 प्रतिशत मतों से जीत दर्ज की थी. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में, बीजेपी ने इस सीट पर 37723 मत हासिल किये जो कुल डाले गये मतों का 3-8 प्रतिशत थे. बीजेपी को वर्ष 2011 में इस लोकसभा सीट के सात विधानसभा क्षेत्रों में 4-5 प्रतिशत मत मिले.
विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा के चुनाव मैदान से हटने का फायदा ममता बनर्जी की पार्टी को हो सकता है और अटकलें हैं कि भाजपा इस तरह वर्ष 2014 में तृणमूल के लिए दरवाजे खुले रखना चाहती है. पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा कह चुके हैं कि राजनाथ सिंह ने केन्द्रीय नेतृत्व के फैसले की सूचना देने के लिए उनसे बात की है.
ममता बनर्जी ने हालांकि बीजेपी की ओर बढ़ने के कोई संकेत नहीं दिये हैं और उन्होंने अपनी हालिया जनसभाओं में कांग्रेस तथा माकपा के साथ बीजेपी पर भी निशाना साधा है.
तृणमूल कांग्रेस के पिछले साल सितंबर में यूपीए से अलग होने के बाद कांग्रेस के लिए यह चुनाव अपनी मजबूती दिखाने का मौका हो सकता है. पश्चिम बंगाल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा कि हमें आशा है कि हम इस सीट पर कब्जा करेंगे.
उन्होंने कहा कि सनातन मुखर्जी साफ छवि वाले बहुत अच्छे उम्मीदवार हैं. वहीं, माकपा का मुख्य उद्देश्य हार के अंतर को कम करना और कांग्रेस तथा तृणमूल के मतों में फूट पड़ने का फायदा उठाना होगा.
इस साल फरवरी में तीन विधानसभा क्षेत्रों में वाममोर्चे के मत प्रतिशत में गिरावट दर्ज हुई है. वाममोर्चे के लिए इस गिरावट को रोकना चुनौती होगी.