कोरोना ने देश के मजदूरों को अपने ही देश के अलग-अलग राज्यों की सीमाओं के भीतर रिफ्यूजी यानी शरणार्थी सा बना दिया है. गुरुवार को गुजरात से एमपी में प्रवेश कर रहे यूपी के मजदूरों के साथ एमपी की शिवराज सरकार के व्यवहार तो यही साबित होता है.
गुजरात-एमपी के बॉर्डर पर बैठै यूपी के मजदूरों की कहानी भी दुखभरी है. वह गुजरात में लॉकडाउन में फंसे थे. जब खाना-पीना ओर नकदी खत्म हो गई तो फिर वापस अपने यूपी राज्य की ओर निकल पड़े लेकिन एमपी बॉर्डर पर आते ही पुलिस ने इन सभी को रोक दिया और वापस गुजरात लौटने का फरमान सुना दिया.
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गुजरात से आई यूपी की श्रमिक सोना ने बताया कि हम वडोदरा से आए हैं. हम यूपी के आजमगढ़ जाना चाहते है. हम रोज कमाने खाने वाले हैं. वहां पर हमको दिक्कत हो गई तो अब हमें अपने गांव जाना है. हमारी बाइक हमको साथ में दीजिए जिससे हम चले जाएं. हमारे बच्चे भी साथ में हैं और सास की भी उम्र ज्यादा है.
इन मजदूरों की दशा देखने के बावजूद अफसरों ने अपना अमानवीय चेहरा दिखाया. इसी बॉर्डर पर गुजरात से आए एमपी के निवासी मजदूरों को उनका आधार कार्ड देखकर आने दिया गया. उनको खाना देकर और मेडिकल जांच के बाद उनके जिलों के लिऐ तैयार बसों मे बैठा दिया गया.
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गुजरात से आए एमपी के एक मजदूर नरेंद्र ने बताया कि हम गुजरात से पैदल आ रहे है. पैदल ही एमपी में भिंड जा रहे थे. बस में बैठकर दो घंटा हो गया है. बस मिल गई तो अच्छा लग रहा है पर अब कब तक अपने घर भिंड पहुंचेंगे, पता नहीं.
इस संबध में आजतक ने झाबुआ एएसपी विजय डावर से पूछा कि यूपी के मजदूरों को क्यों एमपी के रास्ते नहीं आने दिया जा रहा है. इस पर अफसरों ने खुद ही कबूल लिया कि यूपी के मजदूरों के लिए उनके पास बसें उपलब्ध है लेकिन उनको बॉर्डर से वापस गुजरात की गोधरा पुलिस या उनके अधिकारियों के हवाले करने के लिए.
कोरोना यानी कोविड 19 ने देश के मजदूर वर्ग को अपने ही देश मे रिफ्यूजी यानी शरणार्थी बना दिया है. राज्य सरकारें उनको भारतीय मानने की बजाय क्षेत्रीय भावनाओं के आधार पर उनसे व्यवहार करती दिख रही हैं.