सब्जी मंडी में ठोकर लगने से जब अंजनी दीक्षित का पैर टूट गया और वे बेहोश होकर गिर पड़े तो देखने वाले असमंजस में थे कि वे कौन हैं, कहां के हैं और क्या किया जाए? भीड़ आगे बढ़ती और कुछ करती, इससे पहले ही एक बुजुर्ग सरयू प्रसाद सिंह वहां पहुंच गए, उन्होंने सब्जीवाले के मोबाइल से अपने साथी को फोन किया और जल्द ही भीड़ को चीरते हुए दीक्षित को रिक्शे पर लेकर अस्पताल के लिए निकल पड़े. जहां पहुंचने पहले से ही कई बुजुर्ग साथी चिकित्सकों के साथ उनके आने का इंतजार कर रहे थे. लिहाजा, तुरंत ही इलाज हो गया. फिर उनके परिजनों को सू्चित कर दिया गया.
दरअसल, बुजुर्गों के इस समर्पण की नींव 2001 में गांधी इंटर विद्यालय के प्राचार्य डॉ. श्रीनंदन शर्मा ने सेवानिवृति के बाद रखी थी. अपनी सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें कई ऐसे बुजुर्ग साथी मिले, जिन्हें पेंशन के लिए कार्यालयों की ठोकरों के साथ ही पारिवारिक प्रताड़ना झेलनी पड़ रही थी.
शर्मा बताते हैं, ''बुजुर्गों के हितों की रक्षा के लिए कुछ साथियों के साथ मिलकर 60 वर्ष पार कर चुके बुजुर्गों की वरीय नागरिक संघ के नाम से एक कमेटी बनाई. शुरुआत पेंशन की परेशानियों के निबटारे से की, लेकिन विस्तार पारिवारिक परेशानियों के निपटारे के रूप में किया.'' समस्या यह थी कि पारिवारिक रिश्ते भी प्रभावित न हों और बुजुर्ग अपना एकाकीपन भी दूर कर सकें.
शुरुआत रेडक्रॉस भवन में बैठने से की गई, जहां हर रोज प्रार्थना सभा और महापुरुषों के जीवन दर्शन पर चर्चा, कथा-कहानी, गीत, संगीत होने लगा. लोग एक-दूसरे के करीब आने लगे और साथियों के साथ मिलकर घरेलू समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने लगे. आज बुजुर्गों का यह परिवार 1,061 सदस्यों का हो चुका है. इसकी आजीवन सदस्यता 120 रु. है.
न्यू एरिया के कपिलदेव सिन्हा बताते हैं, ''बेटों ने पेंशन की खातिर घर से बाहर कर दिया था, जिस कारण तीन साल तक किराए के मकान में रहना पड़ा था, लेकिन बुजुर्ग साथियों की पहल से सपरिवार एक छत के नीचे रह रहे हैं.'' रोचक यह कि नई और पुरानी पीढ़ियों के बीच तारतम्यता को बनाए रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर अभिभावकों का ख्याल रखने वाली पांच संतानों को श्रवण पुरस्कार और परिवार में सराहनीय भूमिका निभाने वाले ग्यारह अभिभावकों को वरीय नागरिक पुरस्कार देने की परंपरा शुरू की गई है.
बुजुर्गों की बाहरी दुनिया की परेशानियों के निबटारे में वरीय नागरिक परिवार अहम भूमिका अदा कर रहा है. बुजुर्गों के लिए बैंक में अलग काउंटर और अस्पताल में दो बेड आरक्षित हैं.
प्रत्येक माह निःशुल्क चिकित्सा शिविर आयोजित होता है, जिसमें शहर के प्रसिद्ध चिकित्सक और दवा एजेंसियां योगदान करते हैं. बुजुर्गों के सामूहिक प्रयास से नगर में उपेक्षित बुजुर्गों के आसरे के लिए 20 लाख रु. की लागत से प्रशासन के जरिए ओल्ड एज होम का निर्माण कराया जा रहा है.
बुजुर्गों ने पांच-पांच अशिक्षितों को साक्षर करने और वृद्ध स्मृति वृक्ष लगाने की नई जिम्मेदारी ली है. कार्यानंद शर्मा कहते हैं, ''इस जीवन ने और अधिक जीने की इच्छा जगा दी है. तभी तो दुनिया से नाता जोड़ते हुए साठ सदस्यों ने स्वैच्छिक नेत्रदान किया है, और कतार अभी काफी लंबी है.'' बहरहाल, सरकार और समाज के लिए बुजुर्गों की अनदेखी बड़ी चुनौती है, ऐसे में बुजुर्ग परिवार की अनूठी कार्यप्रणाली निस्संदेह जीने की नई राह दिखाती है.