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'डाबर का 100 फ्रूट जूस का दावा भ्रामक', FSSAI का दिल्ली HC को जवाब

FSSAI ने डाबर की याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में जून 2024 के अपने नोटिफिकेशन का बचाव किया, जिसमें फूड बिजनेस से जुड़े कारोबारियों (FBO) को फ्रूट जूस के लेवल और विज्ञापन से 100 प्रतिशत फ्रूट जूस जैसे दावे हटाने का निर्देश दिया गया था. 

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सांकेतिक फोटो.
सांकेतिक फोटो.

फूड सेफ्टी एंड स्टेंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (FSSAI) ने डाबर की याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में दिल्ली हाईकोर्ट को बताया है कि फ्रूट जूस को 100% फ्रूट जूस के रूप में विज्ञापित करना कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है. और ये भ्रामक प्रचार की प्रक्रिया है. 

FSSAI ने डाबर की याचिका के जवाब में दायर हलफनामे में जून 2024 के अपने नोटिफिकेशन का बचाव किया, जिसमें फूड बिजनेस से जुड़े कारोबारियों (FBO) को फ्रूट जूस के लेवल और विज्ञापन से 100 प्रतिशत फ्रूट जूस जैसे दावे हटाने का निर्देश दिया गया था. 

इसने तर्क दिया कि खाद्य उत्पादों का वर्णन करने के लिए '100 प्रतिशत' जैसे संख्यात्मक शब्द स्पष्टतः वर्तमान खाद्य कानूनों के दायरे से बाहर हैं तथा इनमें वैधानिक स्वीकृति का अभाव है.

प्राधिकरण ने अपने हलफनामे में कहा, 'फूड बिजनेस ऑपरेटर्स द्वारा 100 प्रतिशत फ्रूट जूस का इस्तेमाल स्पष्ट रूप से मौजूदा नियामक ढांचे के तहत ऐसे दावों के अल्ट्रा वायरिज कैरेक्टर को दिखाता है.'

एफएसएसएआई ने स्पष्ट किया कि उसकी अधिसूचना कोई नया कानूनी दायित्व नहीं लगाती है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 और खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018 के तहत मौजूदा आदेशों को ही दोहराती है.

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इसके अलावा FSSAI ने इस बात पर भी जोर दिया कि कानून खाद्य उत्पादों की प्रकृति और गुणवत्ता को बताने के लिए केवल गुणात्मक विवरणकों की अनुमति देता है. '100 प्रतिशत' जैसे संख्यात्मक दावों का उपयोग स्वाभाविक रूप से भ्रामक माना गया और उपभोक्ताओं को भ्रमित करने की संभावना है जो निष्पक्ष प्रकटीकरण के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है.

FSSAI ने कहा कि इस तरह के दावे उपभोक्ता संरक्षण और खाद्य लेबलिंग और विज्ञापन में पारदर्शिता के लिए बनाए गए कई प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं. नियामक ने कहा, 'ये दावे न केवल भ्रामक हैं, बल्कि उपभोक्ताओं के सूचित विकल्प चुनने के अधिकार का भी उल्लंघन करते हैं.'

डाबर की दलील का विरोध करते हुए FSSAI ने तर्क दिया कि उनकी याचिका मौलिक अधिकारों के किसी भी उल्लंघन का खुलासा नहीं करती है.

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