कोरोना वायरस के खिलाफ मुश्किल जंग को हर कोई पूरे हौसले के साथ लड़ रहा है. लेकिन जो Covid-19 मरीज इस जंग को लड़ते लड़ते जिंदगी से हार रहे हैं, उन्हें अंतिम विदाई देना भी घरवालों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं.
चेन्नई में एक ईसाई डॉक्टर की Covid-19 से मौत के बाद आसपास के लोगों ने चर्च की सीमेट्री (कब्रिस्तान) में शव को दफनाने से घरवालों को रोक दिया. इसी तरह भोपाल में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज की मौत के बाद बेटे ने ही मुखाग्नि देने से इनकार कर दिया. वहां तहसीलदार को अंतिम संस्कार करने के लिए आगे आना पड़ा. बेटा और बाकी घरवाले दूर से ही ऐसा होते देखते रहे.
राजधानी दिल्ली में Covid-19 से मौत वाले शवों का अंतिम संस्कार सिर्फ निगमबोध घाट और पंजाबी बाग, दो श्मशान घाटों पर ही करने की इजाजत है. यहीं सीएनजी से दाह संस्कार की व्यवस्था है.
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दिल्ली के सबसे पुराने श्मशान घाटों में से एक निगमबोध घाट पर आजतक/ इंडिया टुडे ने जाकर स्थिति को देखा तो कई हैरान करने वाली बातें सामने आईं.
अंतिम संस्कार के लिए सख्त गाइडलाइन
Covid-19 से मौत पर शवों के अंतिम संस्कार के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने सख्त गाइडलाइंस बना रखी हैं. शव को जहां पूरी निगरानी में एंबुलेंस में तमाम एहतियात बरतते हुए श्मशान घाट तक पहुंचाया जाता है. वहीं अंतिम संस्कार भी लीक प्रूफ प्लास्टिक बॉडी बैग में करना जरूरी है.
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निगमबोध घाट पर ऐसे करीब 70 शवों का अंतिम संस्कार हो चुका है. आजतक/इंडिया टुडे रिपोर्टर के सामने जीबी पंत अस्पताल से एंबुलेंस में दो ट्रेंड लोग पूरे सुरक्षा इंतजाम के साथ Covid-19 मरीज का शव लेकर आए.
इनमें से एक जफर इस्लाम से हमने बात की तो उन्होंने बताया कि एंबुलेंस को सोडियम हाइपोक्लोराइट से डिसइंफेक्ट किया जाता है. इसके अलावा बॉडी बैग की बाहरी सतह को भी 1% सोडियम हाइपोक्लोराइट से डिसइंफेक्ट करने के बाद श्मशान घाट कर्मियों को हैंडओवर किया जाता है.
जफर इस्लाम से जोखिम के सवाल पर बात की तो उन्होंने कहा, 'यह हमारा काम है और हम कर रहे हैं. हमें लगता है कि यह वक्त की जरूरत है. मेरी शादी भी नहीं हुई है. मैंने इस काम में मदद के लिए वॉलिंटियर किया है. हम निशुल्क एंबुलेंस चलाते हैं और जहां भी जरूरत पड़ती है वहां जाते हैं.'
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निगमबोध घाट में Covid मरीजों के शवों के अंतिम संस्कार के प्रभारी पप्पू के मुताबिक वो अभी तक करीब 70 ऐसे शवों का अंतिम संस्कार कर चुके हैं.
उन्होंने कहा, 'डर तो हर किसी को लगता है. मैं अपने घर परिवार को छोड़ कर आता हूं. जब उनके पास वापस जाता हूं तो पूरी तरह से सुरक्षित होकर जाऊं.' ऐसे शवों को हैंडल करते वक्त पप्पू हमेशा PPE किट में रहते हैं.
20 से ज्यादा लोग नहीं
निगमबोध घाट पर Covid-19 से अलग कारणों से हुई मौतों वाले शव भी हर दिन बड़ी संख्या में आते हैं. लेकिन लॉकडाउन ने अपनों की विदाई के तरीके को भी बदल दिया है. संक्रमण के खौफ को देखते हुए बंदिशें यहां भी हैं. अंतिम संस्कार में 20 से ज्यादा लोग हिस्सा नहीं ले सकते.
दिल्ली के बीएल कपूर अस्पताल से Covid-19 संदिग्ध 80 वर्षीय शांता देवी के अंतिम संस्कार के लिए परिवार के चंद सदस्य ही निगमबोध घाट पहुंचे. इनमें सुदेश शर्मा और रविकांत ने बताया कि परिवार पूरे प्रोटोकॉल का पालन कर रहा है.
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सुदेश शर्मा ने कहा, 'हमारी फैमिली से सिर्फ 4 लोग आए. हमें पता था कि लोगों की संख्या पर पाबंदी है हम सारी पाबंदियां फॉलो कर रहे हैं. पर यहां पर हम देख रहे हैं कितनी भीड़ है. लोग गाइडलाइंस फॉलो नहीं कर रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा है कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में हर किसी को जिम्मेदारी निभानी चाहिए.'
शांता देवी के दामाद रविकांत ने कहा, 'हमने तमाम रिश्तेदारों को आने से मना कर दिया. यहां पर भी हम आए हैं तो पूरे एहतियात के साथ. घर पर भी हमने लोगों को आने से मना किया और दूर से ही उनकी श्रद्धांजलि स्वीकार कर ली.'
सारे लॉकर्स फुल
निगमबोध घाट पर एक नोटिस बोर्ड ने सबसे ज्यादा चौंकाया, वो था कि अस्थियां रखने के सारे लॉकर्स फुल हैं. 15 दिन में अस्थियों को यहां से ले जाना जरूरी होता है. लेकिन कई अस्थियां महीना बीत जाने के बाद भी इन लॉकर्स में ही प्रवाह होने के लिए रिश्तेदारों का इंतजार कर रही हैं.
सारे लॉकर्स फुल
जैसा कि पहले बताया गया कि निगमबोध घाट पर Covid-19 से अलग कारणों से मौत वाले शव भी हर दिन अंतिम संस्कार के लिए आते हैं. निगमबोध घाट प्रबंधन के लिए अस्थियों के लॉकर्स का खाली ना होना भी समस्या बन गया है.
अस्थि गृह के प्रभारी राजेंद्र कश्यप के मुताबिक ऐसी स्थिति उन्होंने भी पहली बार देखी है. कश्यप ने कहा, 'हमारे पास 228 लॉकर्स हैं और सभी फुल हैं. लॉकडाउन के बाद लोग अस्थियां लेने नहीं आ रहे. मैं अब रिश्तेदारों को फोन कर कह रहा हूं कि अस्थियां ले जाएं. हरिद्वार जाने का इंतजार ना करें, अस्थियों को यमुना में ही प्रवाह कर दें. हरिद्वार जाना संभव नहीं है. अस्थियां रखने का 15 दिन अधिकतम वक्त निर्धारित है लेकिन एक महीने से अधिक हो रहा है.'
परिजन अस्थियां लेकर नहीं जा रहे
कर्मवीरों के जज्बे को सलाम
निगमबोध घाट के मुख्य प्रबंधक सुमन कुमार बताते है कि चुनौतियां कई तरह की हैं. ये आसान नहीं है. एक तरफ Covid-19 शवों के लिए सख्त प्रोटोकॉल्स, और दूसरे अपने स्टाफ की सुरक्षा की जिम्मेदारी. PPE किट्स, ग्लव्स, सैनिटाइजेशन हर चीज का ध्यान रखना होता है.'
कुल मिलाकर कोरोना के खौफ ने मौत को भी अब पहले जैसा नहीं रहने दिया. Covid-19 मरीजों के अंतिम संस्कार के लिए बेशक उनके करीबियों के कंधे अब कम हैं, लेकिन उन कर्मवीरों के जज्बे को सलाम जो इस काम के लिए अपने कंधे आगे कर रहे हैं.