बसपा मुखिया मायावती ने भले ही पूरी तरह से गठबंधन न तोड़ने की बात कही, मगर अब समाजवादी पार्टी ने तय कर लिया है कि वह 2022 का विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी. यह समाजवादी पार्टी के सूत्रों का कहना है. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से बीते दिनों हुई एक बैठक में विधानसभा चुनाव के लिए अभी से जुट जाने को कहा है. शहर से लेकर गांव तक नई-नई कमेटियों का गठन कर पार्टी में जान फूंकने की तैयारी है. दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी करारी हार के बाद अब समाजवादी पार्टी के सामने 2022 के विधानसभा चुनाव में अस्तित्व बचाए रखने की चुनौती है. वहीं अखिलेश यादव के सामने भी अपनी नेतृत्व क्षमता को साबित करने की चुनौती है.
अकेले दम पर सरकार बनाएगी सपा
आजतक डॉट इन से बातचीत में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आईपी सिंह कहते हैं कि उनकी पार्टी किसी जाति-मजहब की राजनीति की जगह सर्वसमाज की बात करती है. 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाकर दिखाएगी. नतीजों के सवाल पर सिंह का कहना है कि उनकी पार्टी बिल्कुल हताश नहीं है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनावी नतीजों के बाद से लगातार दौरों पर दौरे कर कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार कर रहे हैं. लचर कानून-व्यवस्था से पीड़ित परिवारों से मुलाकातें कर रहे हैं. प्रदेश में लगातार हो रही हत्याओं पर अखिलेश यादव मुखर हैं. हाल में पार्टी अध्यक्ष अखिलेश ने राज्यपाल से भी मिलकर उनसे कानून-व्यवस्था पर बोलने की अपील कर चुके हैं.
यादवों को पसंद नहीं बसपा का साथ
बीते चार जून को बसपा मुखिया मायावती ने सपा का वोट शिफ्ट न होने की बात कहते हुए प्रेस कांफ्रेंस कर उपचुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया था. इसी के साथ गठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान लग गए. मायावती ने शर्तें थोपते हुए कहा था कि गठबंधन तभी जारी रहेगा, जब अखिलेश पार्टी में कुछ बदलाव लाएं. प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने समाजवादी पार्टी के कोर वोटर 'यादवों' पर भितरघात करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि उनका पूरा वोट गठबंधन को नहीं मिला. समाजवादी पार्टी के सूत्र बताते हैं कि गठबंधन फेल होने का ठीकरा खुद पर फोड़े जाने से यादव वर्ग में खासी नाराजगी है. वे इसे अपने लिए अपमानजनक मानते हैं.
सपा को थोक के भाव में वोट देने वाला यादव समाज अब आगे किसी भी सूरत में बसपा से गठबंधन होते नहीं देखना चाहते हैं. सपा के खांटी समर्थक यादवों का कहना है कि उनके ही वोट की बदौलत बसपा शून्य से दस सीटों तक पहुंची, फिर भी तोहमत लग रही कि यादवों ने वोट नहीं दिया. जब इस कदर विश्वास का संकट है तो फिर समाजवादी पार्टी अकेले ही क्यों न लड़े. सूत्र बताते हैं कि अपने कोर वोटर्स के बीच से मिले फीडबैक के बाद अखिलेश यादव ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है. इससे पूर्व भी मायावती के बयानों के बाद अखिलेश यादव अकेले चुनाव लड़ने के संकेत दे चुके हैं.
जमीनी गतिविधियां बढ़ाएंगे अखिलेश
सूत्र बताते हैं कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सपा की हार के पीछे जमीन पर कम सक्रियता भी प्रमुख वजह रही. जिस तरह से 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी आंदोलन मूड में थी. पूरे प्रदेश मे बंपर पैमाने पर साइकिल यात्राएं निकालकर माहौल पार्टी नेता माहौल बनाते थे. पार्टी ने उतनी आक्रामता न 2017 के विधानसभा चुनाव में दिखाई और न ही 2019 के लोकसभा चुनाव में. अखिलेश घर का झगड़ा ही ठीक करने में जुटे रहे. बाहर लड़ने के लिए वह ठीक से बिसात ही नहीं बिछा पाए. बीजेपी की आक्रामक कैंपेनिंग का माकूल जवाब अखिलेश के पास नहीं रहा. नतीजा दोनों चुनावों में पार्टी की करारी हार हुई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ तो लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन फेल हो गया.
ऐसे में पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि अकेले चुनाव लड़ने से समाजवादी पार्टी को सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा. जिससे पार्टी के कार्यकर्ता भी उत्साहित होंगे. वहीं गठबंधन की सूरत में वह खतरा भी नहीं होगा कि कोई आपके कार्यकर्ताओं और संसाधनों के इस्तेमाल के सहारे खुद के नंबर बढ़ा ले. ऐसे में समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव तक लगातार एक्शन मोड में रहने की तैयारी में है.