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ओएनजीसी का एफपीओ जून तक टला

सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्‍न कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति में हुई हड़बड़ी के चलते कंपनी का अनुवर्ति सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) फिलहाल जून तक के लिये टाल दिया गया है.

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सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्‍न कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) में स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति में हुई हड़बड़ी के चलते कंपनी का अनुवर्ति सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) फिलहाल जून तक के लिये टाल दिया गया है.

ओएनजीसी में सरकार ने अपनी पांच प्रतिशत हिस्सेदारी का विनिवेश करने का फैसला किया है. यह हिस्सेदारी कंपनी के एफपीओ के जरिये बेची जानी है जिससे सरकार को 12,000 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है.

कंपनी एफपीओ से जुड़े एक अधिकारी ने बताया, ‘ओएनजीसी शेयरों की बिक्री 5 अप्रैल को खुलने वाली थी लेकिन अब इसे आगे के लिये टाल दिया गया है. अब इसके 2011-12 की दूसरी तिमाही में आने की उम्मीद है.’ महारत्न की पात्र कंपनी ने नवरत्न का भी दर्जा खोकर पूंजी बाजार में उतरने से कदम वापस खींच लिये.

सरकार ने एफपीओ लाने की जल्दबाजी में ओएनजीसी निदेशक मंडल से अपने दोनों नामित निदेशकों को वापस बुला दिया. इसका खामियाजा कंपनी को भुगतना पड़ा और उसे अपने नवरत्न के दर्जे से ही हाथ धोना पड़ गया. नवरत्न का दर्जा प्राप्त कंपनी को संयुक्त उद्यम में 1,000 करोड़ रुपये के निवेश और बड़ी परियोजनाओं को मंजूरी देने की स्वायत्ता होती है. {mospagebreak}

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नवरत्न नियमों के अनुसार कंपनी अपने इस अधिकार का इस्तेमाल तभी कर सकती है जब उसके निदेशक मंडल में सरकार द्वारा नामित निदेशक शामिल होंगे. अधिकारी ने कहा, ‘ओएनजीसी निदेशक मंडल से सरकारी निदेशकों को वापस बुलाने का परिणाम गंभीर होगा, इसलिये अब तय किया गया है कि स्वतंत्र निदेशकों की नियमित नियुक्ति की जाये और तब तक एफपीओ आगे के लिये टाल दिया गया है.’

उन्होंने बताया उपयुक्त व्यक्तियों की खोज के लिये समिति बनाई जायेगी और फिर मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति से मंजूरी ली जायेगी. इस प्रक्रिया में दो से तीन महीने का समय लग सकता है. ओएनजीसी निदेशक मंडल में सीएमडी सहित सात पूर्णकालिक निदेशक होते हैं. इसके अलावा दो सरकारी निदेशक भी नियुक्त होते हैं.

कुल मिलाकर कंपनी में नौ निदेशक पूर्णकालिक श्रेणी में आते हैं. इनके मुकाबले कंपनी में इस समय स्वतंत्र निदेशकों की संख्या चार है, सेबी नियमों के अनुसार पूर्णकालिक और स्वतंत्र निदेशकों की संख्या बराबर होनी चाहिये. इस लिहाज से कंपनी को पांच और स्वतंत्र निदेशक चाहिये. {mospagebreak}

पूर्व पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री मुरली देवड़ा ने इनका चयन कर लिया था लेकिन संस्तुति के लिये ये नाम केबिनेट पहुंचते इससे पहले ही देवड़ा के स्थान पर पेट्रोलियम मंत्रालय में जयपाल रेड्डी को भेज दिया गया. रेड्डी ने दो स्वतंत्र निदेशकों के नाम केबिनेट के पास मंजूरी के लिये भेजे. रेड्डी का तर्क था कि ओएनजीसी में सीएमडी का पद खाली है.

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मानव संसाधन निदेशक के स्थानांतरण के बाद उनके स्थान पर भी कोई नियुक्ति नहीं हुई. निदेशक एक्सप्लोरेशन भी सेवानिवृत हो चुके हैं ऐसे में निदेशक मंडल की संख्या नौ से घटकर छह रह गई. उधर, स्वतंत्र निदेशकों की संख्या चार है इसलिये केवल दो की आवश्यकता होगी.

इससे पहले की केबिनेट की नियुक्ति समिति दो स्वतंत्र निदेशकों के नाम को मंजूरी देती ओएनजीसी में एस.वी. राव को निदेशक एक्सप्लोरेशन बना दिया गया. अब तीन स्वतंत्र निदेशकों की आवश्यकता होगी. बिना जांच पड़ताल और नियमों पर गौर किये बिना जिन दो निदेशकों के नाम भेजे गये थे उनमें भी पता चला कि एक की नियुक्ति नहीं हो सकती.

सार्वजनिक उपक्रम में अन्य कंपनियों में कार्यरत कार्यकारी अधिकारी को स्वतंत्र निदेशक नहीं बनाया जा सकता. एक ही स्वतंत्र निदेशक की नियुक्ति हो पाई. एफपीओ जल्द बाजार में लाने की शर्तों को पूरा करने के लिये मंत्रालय ने अपने दोंनो सरकारी निदेशकों को ही वापस बुलाना बेहतर समझा. ताकि पांच-पांच की संख्या बराबर हो जाये. लेकिन इससे कंपनी के नवरत्न का दर्जा बेमानी हो गया.

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