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लौह पुरुष के नेतृत्व का दुनिया ने माना लोहा

आजादी के बाद भारत को एक अखंड स्वरूप देने में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान को भुलाया नही जा सकता और माना जाता है कि उनके जैसे धैर्यवान और दूरदर्शी नेतृत्व के कारण ही छोटी छोटी रियासतों में बंटे भारत को एकजुट किया जा सका था.

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वल्लभ भाई पटेल
वल्लभ भाई पटेल

आजादी के बाद भारत को एक अखंड स्वरूप देने में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता और माना जाता है कि उनके जैसे धैर्यवान और दूरदर्शी नेतृत्व के कारण ही छोटी-छोटी रियासतों में बंटे भारत को एकजुट किया जा सका था.

सरदार पटेल के बारे में बताते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर डॉक्टर शरदेंदु मुखर्जी कहते हैं, ‘पटेल दूरदर्शी सोच और व्यवहारिक दृष्टिकोण वाले नेता थे. तभी वे भारत के एकीकरण की बड़ी समस्या को इतने कम समय में हल कर सके थे.’

एक अनुशासित व्यक्तित्व के स्वामी सरदार पटेल ने वी पी मेनन समेत कई सहयोगियों की मदद से 500 से भी ज्यादा रियासतों को भारतीय संघ में शामिल होने के लिए मना लिया था. इनमें से अधिकांश रियासतों ने आजादी की पूर्व संध्या से पहले ही ‘भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947’ पर हस्ताक्षर कर दिए थे. इस ऐतिहासिक एकीकरण के चलते ही भारत को आजादी खंडित टुकड़ों के बजाय एक अखंड राष्ट्र के रूप में मिल सकी.

आजादी की घोषणा होने के बाद भारत में मौजूद सैंकड़ों छोटी-बड़ी रियासतों को एकसाथ मिलाना सबसे मुश्किल काम था. इस मुश्किल की तीन मुख्य वजहें थीं, अधिकांश रियासतों में खुद को स्वतंत्र देश बनाने की चाह, नेहरू के नेतृत्व के प्रति राजाओं में संशय और पाकिस्तान के साथ मिल जाने का विकल्प मौजूद होना.

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इस मुश्किल स्थिति में पटेल के व्यक्तित्व की एक-एक खूबी काम में आई और उन्होंने इन रियासतों के एकीकरण के लिए अपनी हर तरकीब लगा दी. वे एक ओर इन राजाओं के लिए विशेष भोज आयोजित कर रहे थे वहीं दूसरी ओर राजकीय फैसलों में दखल रखने वाले दीवान लोगों को पत्र लिखकर राजा को मनाने के लिए जोर डाल रहे थे.

इंग्लैंड से वकालत पढ़कर आए पटेल गुजरात के प्रसिद्ध वकीलों में शुमार थे. गांधी जी के व्यक्तित्व और उनके विचारों से प्रभावित होने के बाद वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे. असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने अपने तमाम अंग्रेजीदां कपड़ों को आग के हवाले कर पूरी तरह से खादी अपना ली थी.

उनके नेतृत्व के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1946 में कांग्रेस प्रेसीडेंसी के चुनावों में उन्हें राज्यों के 16 प्रतिनिधियों में से 13 का समर्थन मिला था. इन चुनावों को जीतने वाले का आजाद भारत का प्रधानमंत्री बनना लगभग तय था लेकिन पटेल ने गांधी जी के कहने पर प्रधानमंत्री बनने का विचार छोड़ दिया.

इस पूरे दौर में ही पटेल और नेहरू के बीच कई मसलों को लेकर मतभेद रहे लेकिन उन्होंने राष्ट्रहित में इन मतभेदों को दरकिनार किया था. इस बारे में राजनैतिक विश्लेषक और सामाजविद् धीरूभाई शेठ कहते हैं, ‘अगर पटेल चाहते तो वे देश के पहले प्रधानमंत्री बन सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसी किसी महत्वाकांक्षा को राष्ट्रहित पर हावी नहीं होने दिया. देश के पहले गृह मंत्री व उप प्रधानमंत्री बनकर उन्होंने देश को एक संगठित राष्ट्र की विरासत दी.’

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भारत निर्माण में पटेल के योगदान के कारण उन्हें भारत का अब तक का सफलतम गृह मंत्री और लौह पुरुष कहा जाता है.

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