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कैम्ब्रिज परियोजना दुर्लभ भारतीय भाषाओं की हिफाजत करेगी

भारत तथा दुनिया के किसी भी हिस्से में विलुप्ति की कगार पर खड़ी तथा बोलचाल में इस्तेमाल से दूर हो रही भाषाओं को लोगों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिये कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने एक विशेष परियोजना शुरू की है.

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भारत तथा दुनिया के किसी भी हिस्से में विलुप्ति की कगार पर खड़ी तथा बोलचाल में इस्तेमाल से दूर हो रही भाषाओं को लोगों तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिये कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने एक विशेष परियोजना शुरू की है.

इस डाटाबेस को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं ने वर्ल्ड ओरल लिटरेचर प्रोजेक्ट की वेबसाइट डब्लूडब्लूडब्लू डॉट ओरल लिटरेचर डॉट ओआरजी पर तैयार किया है.

इस परियोजना के तहत केरल के पलक्कड जिले के मुदुगर और कुरूम्बर समुदायों के साहित्य और संस्कृति को डीजिटल वीडियो, आडियो और फोटोग्राफी को शामिल किया गया है.

भारत आधारित अन्य परियोजना में राजस्थान के बूंदी जिले के थिकारदा गांव में नाग देवता ‘तेजाजी’ के जीवन के बारे में माली समुदाय द्वारा गाई जाने वाली 20 घंटों वाली स्तुति की रिकार्डिंग भी शामिल है.

इसमें राजस्थान के हदोती क्षेत्र में तेजाजी परंपरा पर वृत्तचित्र बनाया जाना भी शामिल है.

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इस रिकार्डिंग को हदोती से हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद किया जाएगा और इसे एक पुस्तिका तथा डीवीडी के रूप में बांटा जाएगा.

विश्वविद्यालय के सूत्रों ने बताया कि इस परियोजना में विश्व की 3,524 भाषाओं को रिकार्ड को शामिल किया गया है.{mospagebreak}

एशिया आधारित अन्य परियोजनाओं में तोरवाली मौखिक साहित्य को पाकिस्तान स्थित समुदाय की पूर्ण भागीदारी के जरिये संग्रह करने, रिकार्ड करने और इसका मुद्रण शामिल है. यह परियोजना एक साल की है. इसके तहत नेशनल ज्योग्राफिक के समर्थन से तोरवाली शब्दकोष भी तैयार किया जाना है. नेपाल में नुबरी के नगाडाग लमास मौखिक साहित्य को रिकार्ड करना और मुद्रित किया जाएगा.

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि यह डाटाबेस उन्हें दुनिया की भाषाओं तथा इनमें मौजूद कहानियों, गीतों, मिथकों, लोकगीतों और अन्य परंपराओं के लिये एक विशाल स्रोत तैयार करने में सक्षम बनायेगा.

वर्ल्ड ओरल लिटरेचर प्रोजेक्ट के निदेशक डा. मार्क तुरीन ने बताया, ‘मौजूदा समय में दुनिया में 6,500 से अधिक भाषाएं सक्रिय हैं, इनमें से आधी भाषाएं सदी के अंत तक लोगों की जुबान से दूर हो जाएंगी.’ उन्होंने बताया कि ज्यादातर मामलों में उनकी विलुप्ति वैश्वीकरण, तीव्र सामाजिक या आर्थिक बदलाव का परिणाम है.

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