एक पुरानी कहावत है कि दुश्मन पर हमला करने से पहले अपना घर दुरुस्त कर लिया जाए. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनकी टीम ऐसा ही जोखिम उठाते प्रतीत हो रहे हैं. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि किसी केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार और घोटालों के इतने आरोप लगे हों और साथ ही देश की शीर्ष अदालत लगातार विभिन्न मामलों पर सरकार की आलोचना कर रही हो. ऐसे में मनमोहन और उनकी टीम द्वारा किया गया यह मंत्रिमंडलीय फेरबदल व्यर्थ ही प्रतीत होता है.
क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यह बता सकते हैं कि आखिर क्यों मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल को दूरसंचार मंत्रलाय का अतिरिक्त प्रभार जारी रखा गया है. एक ऐसा मंत्रालय जिसकी वजह से दो वरिष्ठ कैबिनेट मंत्रियों को अपने पद छोड़ने पड़े, एक ऐसा मंत्रालय जो 70 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा के शर्मनाक घोटाले में उलझा है, एक ऐसा मंत्रलाय जिसके राजनीतिक आका और नौकरशाह सीबीआई जांच के घेरे में हैं.
सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों इस मंत्रलाय को अंशकालिक जिम्मेदारी समझा जा रहा है? स्पष्ट है कि केंद्र सरकार प्रधानमंत्री के उस वक्तव्य को ज्यादा महत्व नहीं दे रही जिसमें उन्होंने कहा था, 'भ्रष्टाचार को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों को कानून के अनुसार सजा मिलेगी.' अगर प्रधानमंत्री या उनकी सरकार वाकई ऐसा चाहती तो किसी साफ सुथरी छवि वाले व्यक्ति को दूरसंचार मंत्री का कार्यभार सौंपा जा सकता था जो कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में श्वेत पत्र ला कर मिसाल कायम करता.
कैबिनेट में शामिल होने वाले नए चेहरे हों या फिर जिन मंत्रियों के विभागों में बदलाव किया गया है, उसमें प्रधानमंत्री की पसंद को तवज्जो दी गई हो, ऐसा लगता तो नहीं है. हां यह जरूर है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगातार आलोचना का शिकार हो रही सरकार ने कानून मंत्रालय का प्रभार सलमान खुर्शीद को सौंपकर कुछ राहत पाने की उम्मीद की है तो वहीं पर्यावरण विद एवं सामाजिक कार्यकर्ता रहीं जयंति नटराजन को पर्यावरण मंत्रालय का कार्यभार सौंपकर कुछ तर्कसंगत बदलाव किए हैं.
जयराम रमेश को ग्रामीण विकास मंत्री और जितेंद्र सिंह को गृह राज्य मंत्री बनाया जाना उत्सुकता जगता है. कुछ राजनीति पर्यवेक्षक इसे राहुल गांधी के खेमे को सरकार में मजबूत भागीदारी दिए जाने के रूप में देख सकते हैं. हालांकि इसके पीछे की वजह स्पष्ट नजर नहीं आती. जयराम रमेश पर्यावरण मंत्री रहते हुए हमेशा ही सुर्खियों या कहें विवादों में बने रहे. लेकिन सभी पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर मुंबई के निकट लवासा प्रोजेक्ट को चुपचाप मंजूरी दिए जाने को शायद ही कोई भूल सकता है. इसके अलावा भी कई ऐसे मामले हैं जिसकी वजह से जयराम रमेश को मंत्रालय से हटना पड़ा.
मिलाजुलाकर यही कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व्यक्तिगत रूप से ईमानदार प्रधानमंत्री बने रहेंगे जबकि उनकी कैबिनेट और उनकी सरकार आजतक की सबसे ज्यादा भ्रष्ट, दिशाहीन एवं प्रभावहीन सरकार है. जब पूरा देश ऊंची महंगाई के बोझ तले दबा जा रहा है, राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा हाशिए पर चला गया है, विदेश नीति का कुछ अता पता नहीं है, सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी और निष्ठा का पूरी तरह लोप हो चुका है और सुप्रीम कोर्ट को सरकार को यह निर्देश देने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि वो अपना काम ठीक से करें. ऐसे में हमे केवल इस बात बर गर्व करना चाहिए कि हमारे प्रधानमंत्री 'ईमानदार' है.