पीयूसीएल के नेता विनायक सेन की निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए दायर याचिका और जमानत अर्जी पर सोमवार को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर उच्च न्यायालय में सुनवाई हुई जो मंगलवार को भी जारी रहेगी.
राजद्रोह मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता विनायक सेन की अर्जी पर आज दोपहर बाद बिलासपुर उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति टीपी शर्मा और न्यायमूर्ति आर एल झंवर की खंडपीठ में सुनवाई शुरू हुई.
विनायक मामले की सुनवाई को देखते हुए यहां सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए गए थे तथा अदालत परिसर के चप्पे चप्पे पर पुलिस के जवान तैनात किए गए थे.
विनायक की अर्जी पर सुनवाई के दौरान विनायक सेन की ओर से वरिष्ठ वकील रामजेठमलानी, सुरेंद्र सिंह और महेंद्र दूबे अदालत में उपस्थित थे तथा राज्य शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता किशोर भादुड़ी वहां मौजूद थे. रामजेठमलानी आज सुबह यूरोपियन यूनियन के कार्यकर्ताओं के साथ बिलासपुर पहुंचे थे. यूनियन के कार्यकर्ता सुनवाई के दौरान अदालत में मौजूद थे.
अदालत परिसर के बाहर रामजेठमालानी ने संवाददाताओं के साथ बातचीत के दौरान कहा कि छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून सवालों के घेरे में है तथा विनायक सेन पर राजद्रोह का आरोप भी राजनीति से प्रेरित लग रहा है.{mospagebreak}
रामजेठमलानी ने अदालत में लगभग दो घंटे तक बहस कर याचिका के पक्ष में दलील दी.
इससे पहले यूरोपीय यूनियन के कार्यकर्ता जब उच्च न्यायालय की ओर आ रहे थे तब उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों के विरोध का सामना करना पड़ा. परिषद के कार्यकर्ताओं ने यूनियन के खिलाफ नारे लगाए तथा उन्हें काले झंडे भी दिखाए. जिला प्रशासन ने यूनियन के कार्यकर्ताओं की सुरक्षा बढ़ा दी है.
छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले की अदालत ने 24 दिसंबर वर्ष 2010 को पीयूसीएल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनायक सेन, कलकत्ता के व्यापारी पीयूष गुहा और नक्सली नेता नारायण सान्याल को राजद्रोह के मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. सेन और गुहा ने राज्य के उच्च न्यायालय में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए जमानत के लिए अर्जी लगाई है.