जनलोकपाल के लिए आंदोलन करने वाले अन्ना हजारे अब अकेले नहीं हैं बल्कि अन्ना को मिल गया है एक साथी. अन्ना का एक मोम का पुतला बनाया गया है, जो हूबहू अन्ना की तरह है. इतना मिलता-जुलता है, जैसे अन्ना एक नहीं बल्कि दो-दो हों.
रालेगण में जब मंच पर एकसाथ दिखे दो-दो अन्ना तो किसी की समझ में नहीं आया कि असली कौन है और पुतला कौन. अगर अन्ना हिलते नहीं तो शायद उन्हें पहचान पाना मुमकिन नहीं था. खुद अन्ना भी हूबहू अपने जैसा पुतला देखकर हैरान थे. इसीलिए मंच पर बैठे अन्ना ने बार-बार पुतला छूकर देखा. अन्ना ने कभी पुतले के गाल छुए तो कभी उसका हाथ. शायद अन्ना भी यकीन कर रहे थे, कि ये मोम का बना पुतला ही है, कहीं कुछ और तो नहीं.
अपने पुतले के अनावरण के बाद अन्ना ने कहा कि अलग-अलग क्षेत्रों में बड़ा काम करने वालों के ऐसे पुतलों से प्रेरणा मिलती है. अन्ना का ये मोम का पुतला लोनावला में वैक्स म्यूजियम चलाने वाले सुनील कंडलूर ने बनाया है. हूबहू अन्ना का पुतला बनाने के लिए पहले अन्ना से इजाजत और फिर उनके शरीर की माप ली गई और तब करीब महीने भर की मेहनत के बाद तैयार हुआ ये पुतला.
अन्ना अब मोम के भी हो गए हैं. हालांकि ये अलग बात है कि मोम के होने का बावजूद अन्ना के तेवरों में कोई फर्क नहीं है. अपने मोम के पुतले का अनावरण करने के बाद अन्ना ने कहा है कि वो मोम के भी हैं और लोहे के भी. अन्ना हजारे ने साफ कर दिया है कि मोम का ये पुतला तो उनके मन का दर्पण है. लेकिन जरूरत पड़ने वाले वो लोहे को भी झुकाने के तेवर रखते हैं.
शायद यही अन्ना की खासियत भी है. मोम के पुतले के सामने मोम जैसे नजर आए, तो कैमरे के सामने आते ही अपने सख्त तेवरों में आ गए. अपने सख्त तेवर दिखाने से पहले अन्ना अपना मोम का पुतला बनाने वाले की तारीफ करते रहे. उसकी तुलना विदेशी कारीगरों से करते रहे. फिलहाल अन्ना का मोम का पुतला बनकर तैयार है. अब अन्ना एक नहीं दो-दो हो गए हैं. लेकिन ये साफ है कि मोम के पुतले में सिर्फ एक कमी है और वो ये कि मोम के इस पुतले में अन्ना जैसे तीखे तेवर नहीं हैं.