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लॉकडाउन: राजस्थान में ग्रेजुएट और MA पास कर रहे मनरेगा में मिट्टी ढोने का काम

राजस्थान सरकार के अनुसार कोरोना काल में मनरेगा के तहत रोजगार देने के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं. अब तक करीब 40 लाख लोगों ने मनरेगा में काम मांगा है.

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40 लाख लोगों ने मनरेगा के लिया किया अप्लाई
40 लाख लोगों ने मनरेगा के लिया किया अप्लाई

  • 40 लाख लोगों ने मनरेगा के लिया किया आवेदन
  • लोग कर रहे मनरेगा में मिट्टी काटने-ढोने का काम

कोरोना वायरस की वजह से बीमारी के साथ-साथ बेरोजगारी भी बड़ी समस्या बनकर सामने आई है. शहरों में रोजगार नहीं मिलने की वजह से लोग गांव में मनरेगा में रोजगार मांग रहे हैं. ऐसा पहली बार हो रहा है कि राजस्थान में बड़ी संख्या में MA, B.A और B.Ed करने वाले लोग मनरेगा में काम के लिए रजिस्ट्रेशन करा रहे हैं और यही नहीं कड़ी धूप में मिट्टियां ढो रहे हैं. राजस्थान सरकार के अनुसार कोरोना काल में मनरेगा के तहत रोजगार देने के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं. अब तक करीब 40 लाख लोगों ने मनरेगा में काम मांगा है.

जयपुर से 50 किलोमीटर दूर हसलपुर गांव में मनरेगा मजदूर सीता वर्मा भी मिट्टी ढो रही है. 30 साल की सीता वर्मा ने बताया कि उनके पति सीमेंट फैक्ट्री में काम करते थे जहां काम बंद है. घर में दो बच्चे हैं इसलिए मनरेगा में मिट्टी काटने का काम कर रही हैं. ग्रेजुएशन करते वक्त कभी सोचा नहीं था कि इस तरह की परिस्थितियां आएंगी.

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सीता कहती हैं कि कोरोना काल मे लॉकडाउन में पति को काम मिल नहीं रहा है और घर पर बच्चे हैं, तो मुझे ही घर से निकलना पड़ा. गांव में मनरेगा काम चलता था मगर कभी सोचा नहीं था कि मुझे भी करना पड़ेगा. पढ़ाई लिखाई करने के बाद मिट्टी काटने का काम मुश्किल है मगर करना तो पड़ेगा ही.

इसी तरह सुमन ने भी इतिहास में ग्रेजुएशन किया है. पति बाहर कमाने गए हुए हैं मगर वहां काम बंद है इसलिए घर चलाने का जिम्मा उठाने के लिए खुद ही मिट्टी ढोने निकल गई हैं. 44 डिग्री के तापमान में मिट्टी ढो रही सुमन का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से परिवार का हाल बुरा हो रखा है. घर चलाने के लिए पैसे चाहिए इसलिए पहली बार मनरेगा में गांव की औरतों के साथ काम करने आई है.

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यहां पर मनरेगा के काम में लगे राम अवतार राव तो मार्च के पहले तक निजी स्कूल में टीचर थे. M.A. और B.Ed करने के बाद बच्चों को पढ़ाते थे. मगर लॉकडाउन के दौरान डायमंड स्कूल से नौकरी चली गई और 2 महीने की तनख्वाह भी नहीं मिली तो खुद को मनरेगा में रजिस्टर करवा लिया. 5 लोगों का परिवार है वहां पर 15000 की तनख्वाह थी यहां पर 236 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मिल जाता है.

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यह हालात अकेले एक गांव के नहीं है बल्कि पूरे राजस्थान की है. जब से मनरेगा बना है तब से अब तक इस तरह के हालात नहीं हुए कि पूरे राजस्थान में 40 लाख लोग मनरेगा के तहत काम मांगे. जो भी शहर से लौट रहा है वह मनरेगा के तहत काम मांग रहा है. राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट का कहना है कि शहरों से जो लोग आ रहे हैं उन सब को मनरेगा के तहत हम रोजगार देंगे राजस्थान मनरेगा में देश में नंबर वन हो गया है.

नियम के अनुसार सरकार मनरेगा के तहत 100 दिन काम की गारंटी देती है मगर जिन गांव में डेढ़ सौ लोग काम करते थे उन गांव में 600 लोग काम मांग रहे हैं. ऐसे में कार्य दिवस को घटाने की भी मजबूरी हो गई. हालांकि केंद्र सरकार ने 40 हजार करोड़ रुपए का बजट अकेले मनरेगा के लिए दिया है. मगर राजस्थान सरकार ने केंद्र को चिट्ठी लिखी है कि मनरेगा के तहत कार्य दिवस को 100 दिन से बढ़ाकर 200 दिन तक किया जाए.

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