घुड़सवारी करते हुए भी तलवार हाथ में थामे रखना कोई हंसीठट्ठा नहीं है, और इसे सिख नौजवानों से बेहतर कौन कर सकता है.
क्या बूढ़ा, क्या नौजवान. प्रकाशपर्व तो बस सबके लिए हर्ष और उल्लास का चरम पर्व है. अपने गुरु को याद करना.
उनका पग उनके माथे पर कुछ ऐसे शोभता है जैसे वे और पग एक दूसरे के लिए ही बने हों.
तलवार ही नहीं सिख धर्म के बच्चे हर खेल में बस उम्दा होते हैं. वे हमेशा ऊपर से भी ऊपर होते हैं.
क्या नौजवान, क्या बूढ़े. यहां तो बच्चे भी कुछ ऐसे तलवार भांजते हैं जैसे उन्होंने यह सब कुछ गर्भ मेंं ही सीख लिया हो.
तलवार के साथ-साथ ढाल का बेहतर इस्तेमाल तो कोई इन नौजवानों से सीखे. वे हर पल चौकन्ने रहते हैं.
हवा में फीटों ऊपर उठ जाना और अपने सधे कदमों से चलते रहना तो कोई इन रणबांकुरों से सीखे.
सिख धर्म में बच्चे-बच्चे भी तलवार कुछ इस कदर भांजते हैं जैसे वे लाठी भांज रहे हों.
तलवार भांजने और शारीरिक सौष्ठव के मामले में सिख नौजवानों की चपलता बस देखते ही बनती है.
बिहार की राजधानी में मनाए जा रहे प्रकाशपर्व के बीच छोटे-छोटे बच्चों के बीच हर्ष-उल्लास के साथ-साथ तलवारबाजी के हुनर को भी देखा जा सकता है.