भारत और डेनमार्क ने एक समझौता किया है, जिसकी बैठक दिल्ली में हुई. मीटिंग में इस मुद्दे पर चर्चा हुई कि प्लास्टिक के इस्तेमाल को इंडस्ट्री में कैसे कम किया जा सकता है. साथ ही जिस प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है, इसके साथ ही प्लास्टिक के री-साइकल और रीयूज को लेकर उपायों पर चर्चा की गई.
TERI के पॉल्यूशन कंट्रोल एंड वेस्ट मैनेजमेंट के डायरेक्टर सुनील पांडे ने कहा कि पर्यावरण को सबसे ज़्यादा नुक़सान पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक से होता है, नदियों के रास्ते होते हुए ये प्लास्टिक अब समुद्र तक पहुंच रही है, समुद्र में पहुंचने वाली प्लास्टिक की मात्रा अब इतनी ज़्यादा हो गई है कि आने वाले समय में समुद्र में मछलियों से ज़्यादा प्लास्टिक होगी. सुनील पांडे ने कहा कि इस प्लास्टिक की वैल्यू ज़ीरो होती है, इसलिए कूड़ा बीनने वाले भी इसे नहीं उठाते.
इस प्लास्टिक को रीसाइकल करके लोग फ़र्नीचर बनाने लगे हैं, ऐसे में सरकार को चाहिए कि इन रैग पिकर्स को अपने साथ जोड़ें और उन्हें ये प्लास्टिक देने के एवज़ में कुछ आर्थिक लाभ दें, ताकि ये प्लास्टिक उन सेंटर्स तक पहुंच सके, जहां इनसे दूसरी चीज़ें तैयार की जा रही हैं.
DRIIV की MD और CEO शिप्रा मिश्रा बताती हैं कि हर साल देश में 3.5 मिट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट पैदा होता है, यह प्लास्टिक वेस्ट अलग अलग सेक्टर से निकलता है. हालांकि पहले प्लास्टिक वेस्ट से निपटने के लिए हमारे पास संसाधन और उपाय कम थे, लेकिन अब धीरे धीरे संसाधन और उपाय दोनों पर तेज़ी से काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस प्लास्टिक वेस्ट को कम करने के लिए कई तरीके अपनाए जा रहे हैं. खासकर इंडस्ट्री में जनरेट होने वाले प्लास्टिक के लिए कई विकल्प मौजूद हैं. ये सच है कि इंडस्ट्री से प्लास्टिक पूरी तरह ख़त्म नहीं किया जा सकता, लेकिन उसे कम करने और जो प्लास्टिक पैदा हो रहा है, उसे से रीयूज करने के तरीक़ों पर सरकार काम कर रही है. इसके लिए डेनमार्क से भी हम सॉल्यूशन शेयरिंग पर काम कर रहे हैं.
उन्होंने कहा कि मौजूदा वक्त में अच्छी बात ये है कि प्लास्टिक वेस्ट से निपटने के लिए कई नए स्टार्टअप सामने आए हैं. इनमें से कुछ प्लास्टिक के विकल्पों पर हम काम कर रहें हैं. कुछ डेली यूज़ की प्लास्टिक को कैसे कम हानिकारक बना सकते हैं, इसके उपायों पर काम कर रहे हैं. नदियों को कैसे प्लास्टिक मुक्त कर सकते हैं, इस पर भी कई स्टार्टअप काम कर रहे हैं. अच्छी बात ये कि भारत सरकार भी इन स्टार्टअप को बढ़ावा दे रही है.