सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने आज साफ किया कि उसने इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) द्वारा गूगल, फेसबुक आदि जैसी कंपनियों की विज्ञापन से होने वाली कमाई को साझा करने की उनकी मांग का समर्थन नहीं किया है. बता दें कि भारतीय अखबारों के संगठन आईएनएस ने मीडिया संस्थानों के कंटेंट के इस्तेमाल के एवज में इन कंपनियों की कमाई में हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग की है.
केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने शुक्रवार को संसद में बताया कि सरकार प्रकाशन उद्योग से लागू दरों के हिसाब से जीएसटी हासिल करती है, और इस संबंध में कानून बनाने को लेकर सरकार की ओर से कोई प्रस्ताव नहीं दिया गया है. वह इस सवाल का जवाब दे रहे थे कि क्या सरकार को वैश्विक नियम-कायदों के अनुसार प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रकाशित भारतीय खबरों के लिए Google जैसी कंपनियों से राजस्व प्राप्त होता है?
सरकार की तरफ से यह जवाब तब सामने आया है जब इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी ने गुरुवार को गूगल से कहा कि वह मीडिया संस्थानों का कंटेंट इस्तेमाल करने की एवज में भुगतान करे.
असल में, INS के अध्यक्ष एल. आदिमूलम ने इस संबंध में गुरुवार को इंडिया गूगल कंट्री मैनेजर संजय गुप्ता को पत्र लिखा था. एल. आदिमूलम ने इस पत्र में कहा था कि गूगल को विज्ञापन से होने वाली कमाई में प्रकाशकों की हिस्सेदारी 85% तक बढ़ानी चाहिए. आईएनएस का दावा है कि प्रकाशक यानी भारतीय मीडिया संस्थान 'बेहद अपारदर्शी विज्ञापन सिस्टम' का सामना कर रहे हैं और उन्हें Google की विज्ञापन मूल्य संबंधी सही जानकारी नहीं मिल पाती है.
जारी बयान में आईएनएस का कहना था, 'सोसाइटी ने जोर देकर कहा कि गूगल को विज्ञापन से होने वाले राजस्व में प्रकाशकों का हिस्सा 85% तक बढ़ाना चाहिए. साथ ही सर्च इंजन की ओर से राजस्व रिपोर्ट को अधिक पारदर्शिता बनाना चाहिए.' आईएनएस का कहना है कि पिछले एक साल से पूरी दुनिया भर में पब्लिशर्स, मीडिया संस्थान अपने कंटेंट के इस्तेमाल को लेकर पारदर्शी भुगतान व्यवस्था बनाने और गूगल के साथ विज्ञापन से होने वाली कमाई में हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत पर जोर दे रहे हैं.
रिपोर्टों का हवाला देते हुए आईएनएस ने बताया कि गूगल यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया में पब्लिशर्स को कमाई में अधिक से अधिक हिस्सेदारी देने पर सहमति जताई है. आईएनएस अध्यक्ष की मांग है कि अखबारों की तरफ से खबर जुटाने की एवज में बेहतर भुगतान किया जाना चाहिए, क्योंकि ग्राउंड से लेकर दफ्तर तक काफी पत्रकारों की मेहनत इसमें लगी होती है और खबरें सत्यापन सहित अनेक प्रक्रिया से गुजरकर पाठकों के लिए तैयार होती हैं.
आईएनएस का कहना है कि भुगतान की दर बढ़ाई जानी चाहिए क्योंकि गूगल को बनी-बनाई खबरें मिल जाती हैं जिनकी विश्वसनीयता, प्रमाणिकता पहले से जांची-परखी गईं होती हैं. प्रकाशकों को लगता है कि वे विश्वसनीय समाचारों, विश्लेषणों और सूचनाएं मुहैया करा रहे हैं. प्रकाशक इसलिए भी ज्यादा हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं क्योंकि डिजिटल स्पेस के चलते विज्ञापनों से होने वाली उनकी कमाई में कमी आई है. ज्यादातर विज्ञानपदाता अपने विज्ञापन के लिए गूगल को चुन रहे हैं.
गौरतलब है कि हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की संसद ने न्यूज मीडिया सौदेबाजी संहिता में अंतिम संशोधन किया था. जिसके मुताबिक गूगल, फेसबुक या यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म अगर किसी मीडिया हाउस के कंटेंट का इस्तेमाल करते हैं, तो उन्हें उसके लिए कीमत अदा करनी होगी. इस मसले पर फेसबुक, गूगल आदि का ऑस्ट्रेलिया की सरकार से टकराव भी देखने को मिला था.
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