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भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के विरोध में नागा समुदाय, मणिपुर के राज्यपाल ने शांति की अपील की

UNC के प्रतिनिधिमंडल और मणिपुर के राज्यपाल के बीच शनिवार को बैठक हुई. इस बैठक में UNC ने फ्री मूवमेंट रीजिम (FMR) के एकतरफा समापन और सीमा पर बाड़ निर्माण को लेकर चिंता व्यक्त की. राज्यपाल ने शांति और संयम बरतने की अपील की है.

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राज्यपाल भल्ला ने शांतिपूर्ण समाधान की अपील की (File Photo: ITG)
राज्यपाल भल्ला ने शांतिपूर्ण समाधान की अपील की (File Photo: ITG)

भारत सरकार भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने की योजना के साथ-साथ मुक्त आवागमन व्यवस्था को समाप्त करने की योजना बनाई है. बाड़ निर्माण का काम भी तेजी से चल रहा है. लेकिन इस बीच मणिपुर के नागा समुदाय समेत पूर्वोत्तर के अन्य समूह ने फ्री मूवमेंट रीजिम (FMR) के एकतरफा समापन और सीमा पर बाड़ निर्माण को लेकर चिंता व्यक्त की. शनिवार को यूनाइटेड नागा काउंसिल (UNC) ने राज्यपाल अजय कुमार भल्ला के साथ इम्फाल में स्थित राज भवन में बैठक की. 

इस बैठक में UNC के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व एनजी लोरहो कर रहे थे. उन्होंने स्पष्ट किया कि वह भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ निर्माण का विरोध नहीं करते हैं, लेकिन जोर दिया कि सीमांकन परंपरागत नागा क्षेत्रों की सीमा के अनुसार होना चाहिए. नागा भूमि पर निर्माण अस्वीकार्य है. उन्होंने राज्यपाल से अनुरोध किया कि इस मुद्दे को केंद्र सरकार के समक्ष उठाया जाए.

राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने प्रतिनिधिमंडल को भरोसा दिलाया कि इस मुद्दे को पहले ही गृह मंत्रालय तक पहुंचा दिया गया. उन्होंने शांति और संयम बरतने की अपील की. अब 19 अगस्त को अगली बैठक होगी. 
UNC अध्यक्ष एनजी लोरहो ने चेतावनी देते हुए कहा कि उनकी संस्था अपनी मांगों को लेकर आंदोलन जारी रखेंगे, चाहे उन्हें अगली बैठक के लिए आमंत्रित किया जाए या नहीं. बता दें कि 11 अगस्त को UNC ने सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर उनके मुद्दों को अनसुना किया जाता है तो बड़ा आंदोलन होगा. 

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क्या है पूरा मामला?

भारत-म्यांमार सीमा के दोनों ओर लंबे समय से नागा समुदाय के परिवार, रिश्तेदार और जातीय समूह बसे हुए हैं. इन क्षेत्रों में कई ऐसे गांव हैं जिनके घर सीमा के दोनों ओर मौजूद हैं, जहां एक कमरे से दूसरे कमरे तक देश बदल जाता है. इन घनी सांस्कृतिक और पारिवारिक कड़ियों को कायम रखने में मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR) ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. FMR के तहत लोग 16 किलोमीटर के दायरे में बिना किसी पासपोर्ट या वीजा के आवाजाही, व्यापार और सामाजिक मेल-मिलाप करते रहे हैं. मणिपुर और म्यांमार के बीच 398 किलोमीटर लंबी सीमा है. इसमें से मोरेह में 9 किलोमीटर बाड़ का निर्माण पूरा हो चुका है, जबकि 21 किलोमीटर और बाड़ और सड़क निर्माणाधीन है.

यह भी पढ़ें: मणिपुर: राज्यपाल अजय भल्ला ने अरामबाई टेंगगोल के नेताओं से की मुलाकात, अवैध हथियार सरेंडर करने पर की चर्चा

लेकिन अब सीमा पर बाड़ लगने और FMR के समाप्त होने से नागा समुदाय के रोजमर्रा के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है. यह न केवल उनके पारिवारिक रिश्तों को काट रहा है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक विरासत को भी जोखिम में डाल रहा है. नागा लोग इसे अपनी एकता और परंपरागत अधिकारों पर हमला मानते हैं, क्योंकि बाड़ लगाकर उनकी ऐतिहासिक पहचान को कमजोर किया जा रहा है.

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राजनीति का आयाम भी गहरा है. नागा समुदाय इसे औपनिवेशिक अन्याय और राजनीतिक घेराबंदी का नया रूप मानता है, जिससे उनकी राजनीतिक आवाज दब सकती है. वहीं, बाड़ लगने से पारंपरिक छोटे व्यापार, शादी-ब्याह, धार्मिक कार्यक्रम समेत स्थानीय संपर्क भी बाधित हो रहे हैं, जो स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी नुकसानदेह है.

सरकार बाड़ लगाने का तर्क सुरक्षा और अवैध तस्करी रोकने के लिए देती है, लेकिन नागा समुदाय दावा करता है कि सुरक्षा के उपायों में स्थानीय लोगों को शामिल कर और संवाद से समाधान निकाला जाना चाहिए, न कि सीमा को कड़ा बंद कर पारिवारिक व सांस्कृतिक संबंधों को तोड़कर.

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