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अरुण जेटली: दलगत राजनीति से उठकर निभाई दोस्ती, हर पार्टी में बनाए दोस्त

अरुण जेटली के व्यक्तित्व का एक खास गुण यह था कि उनके दोस्त लगभग हर पार्टी में हुआ करते थे. यहां तक कि उनके राजनीतिक विरोधी भी उनकी रणनीति की तारीफ किया करते थे. संसद में उनसे जबर्दस्त बहस करने वाले नेता भी उन्हें अपना साथी मानते थे. ऐसा दोस्त जो जरूरत के वक्त हर मतभेद दरकिनार कर मदद के लिए खड़ा रहता था.

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अरुण जेटली
अरुण जेटली
स्टोरी हाइलाइट्स
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया याद
  • अमित शाह ने भी दी श्रद्धांजलि
  • बीजेपी में जेटली का योगदान अहम

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के कद्दावर नेताओं में शुमार और पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली की आज पुण्यतिथि (24 अगस्त) है. देश की राजनीति में जिन लोगों ने अहम भूमिका निभाई, उनमें जेटली का भी एक नाम है. अर्थव्यवस्था से लेकर कानून और राजनीति से लेकर रणनीति की गहराई तक समझ रखने वाले नेताओं में जेटली का नाम हमेशा शुमार किया गया. अरुण जेटली विद्वान और दूरदर्शी नेता होने के साथ एक कुशल संगठनकर्ता भी थे. अपने पूरे राजनीतिक करियर में उन्होंने संगठन को जोड़े रखा और सरकार बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.


आदर्शों की कद्र
अरुण जेटली के व्यक्तित्व का एक खास गुण यह था कि उनके दोस्त लगभग हर पार्टी में हुआ करते थे. यहां तक कि उनके राजनीतिक विरोधी भी उनकी रणनीति की तारीफ किया करते थे. संसद में उनसे जबर्दस्त बहस करने वाले नेता भी उन्हें अपना साथी मानते थे. ऐसा दोस्त जो जरूरत के वक्त हर मतभेद दरकिनार कर मदद के लिए खड़ा रहता था. उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर लोगों से रिश्ते निभाए और यही वजह है कि हर दल में उनके आदर्शों की कद्र होती रही.


छात्र नेता से लेकर वित्त मंत्री तक
बतौर नेता उनके करियर की शुरुआत दिल्ली यूनिवर्सिटी से हुई. 1974 में वे छात्र संघ के अध्यक्ष बने और उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वे जेपी आंदोलन से भी जुड़े और कांग्रेस के खिलाफ आवाज उठाने को लेकर जेल भी गए. यह वक्त आपातकाल का था जिसमें कई नेता सलाखों के पीछे डाल दिए गए थे. इनमें एक अरुण जेटली भी थे. करियर के तौर पर एक सफल वकील की भी भूमिका निभाई. बाद में वित्त मंत्री तक का सफर तय किया. इस पद पर आसीन रहते हुए उन्होंने ऐसा काम किया जिसकी आस देश को वर्षों से लगी थी. कर सुधार प्रणाली को अहमियत देते हुए उन्होंने देश में जीएसटी का शुभारंभ कराया. इसके अलावा उनके खाते में दिवालिया कानून और बैंकों का एकीकरण भी शामिल है. ये ऐसे काम हैं जिसने देश की आर्थिकी को नई दशा और दिशा प्रदान की.

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अरुण जेटली साल 2000 में अटली बिहारी वाजपेयी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे. बाद में उन्होंने राज्यसभा में नेता विपक्ष की भूमिका निभाई और सभी दलों के साथ मिलकर सार्थक बहस की परंपरा को बनाए रखा. यहां भी अन्य दलों के नेताओं से उनकी दोस्ती काम आई और उन्होंने ऐसे-ऐसे बिल पास कराए जिसके बारे में सोचना भी मुश्किल था. सबको भरोसे में लेते हुए उन्होंने सरकारी कामकाज को आगे बढ़ाया. कांग्रेस के साथ-साथ देश की अन्य क्षेत्रीय पार्टियों से भी उनके अच्छे संबंध थे. इसका असर संसद में भी दिखा जब वे आसानी से हर मुश्किल विधेयक को पास करा ले गए. 

दूसरे दलों से रिश्ता
जेटली के दूसरे दलों के नेताओं से रिश्ते राजनीतिक ही नहीं बल्कि पारिवारिक भी थे. उनकी शादी भी कांग्रेस के एक कद्दावर नेता की पुत्री से हुई थी. जेटली कांग्रेस के पूर्व सांसद और जम्मू कश्मीर के मंत्री रहे गिरधारी लाल डोगरा के दामाद थे. उनकी ससुराल कठुआ जिले के हीरानगर के पैया गांव में है. उनकी शादी में बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी तो शामिल हुए ही, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी आशीर्वाद देने पहुंची थीं. ये वो समय था जब जेटली को राजनीति में आए कुछ ही साल हुए थे. 

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भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली का पिछले साल लंबी बीमारी के बाद दिल्ली के एम्स में 66 वर्ष की उम्र में निधन हो गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें अपना खास दोस्त मानते थे. जेटली के निधन पर उनका यह बयान कि 'सपनों को सजाना और सपनों को निभाना ऐसा लंबा सफर जिस दोस्त के साथ पूरा किया, वो दोस्त अरुण जेटली ने आज ही अपना देह छोड़ दिया', दोनों की दोस्ती समझने के लिए काफी है. बता दें, जिस वक्त अरुण जेटली का निधन हुआ, प्रधानमंत्री यूएई दौरे पर थे. आज जब जेटली की पुण्यतिथि है तब प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर पर एक वीडियो जारी कर अपने परम दोस्त जेटली को याद किया.

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